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जमानत पत्र

 जमानत-पत्र-आपराधिक मामलों के विचारण में कुछ समय लग ही जाता है। इस दौरान कुछ आवश्यक प्रकृति के कार्य  करने पड़ जाते है जैसे- चोरी गये माल को सुपुर्दगी पर प्राप्त करना, जमानत पर छूटना, अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करना, जमानत जब्त हो जाने पर जमानत पेश करना आदि। इन सबके लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करने होते है। यहाँ ऐसे ही कतिपय प्रार्थना-पत्रों के प्रारूप दिये जा रहे हैं। (1) जमानत पर मुक्त होने के लिये दण्ड प्रक्रिया की धारा 437 के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र न्यायालय श्री न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग सरकार..................................अभियोगी विरूद्ध अ आत्मज ब, आयु 35 वर्ष निवासी रेलवे कालोनी, लखनऊ (उत्तर प्रदेष)..............अभियुक्त (प्रार्थी)  जमानत पर मुक्त होने के लिए प्रार्थना-पत्र प्रकरण क्रमांक......................सन्.............. अभियुक्त प्रार्थी का सविनय निवेदन है कि- 1. अभियुक्त को दिनांक.........को पुलिस अधिकारी श्री...................ने चोरी के संदेह में गिरफ्तार कर उसके विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की...

साम्राज्ञी का नैवेद्य दान:अज्ञेय

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यह कविता जापानी लोक में प्रचलित एक कथा को आधार बना कर लिखी गयी है।बुद्ध हो जाना अपने आप में विशिष्ट है, बुद्ध से प्रेरित होकर इस कविता की जो भाव भूमि अज्ञेय ने तैयार की है वह अनुकरणीय है। ऐसी पूजा जिसमें फूल को क्षति पहुंचाए अपने प्रभु को अर्पित करने का भाव देखने को मिलता है रानी बुद्ध के मंदिर में खाली हाथ आती है और कहती है की हम उस कली को डाली से अलग ना कर सके, और उसे वहीं पर बिना क्षति पहुंचाए वहीं से आप को समर्पित करती हूँ। कविता की पंक्तियां इस प्रकार हैं हे महाबुद्ध!  मैं मंदिर में आई हूँ  रीते हाथ :  फूल मैं ला न सकी।  औरों का संग्रह  तेरे योग्य न होता।  जो मुझे सुनाती  जीवन के विह्वल सुख-क्षण का गीत—  खोलता रूप-जगत् के द्वार जहाँ  तेरी करुणा  बुनती रहती है  भव के सपनों, क्षण के आनंदों के  रह:सूत्र अविराम—  उस भोली मुग्धा को  कँपती  डाली से विलगा न सकी।  जो कली खिलेगी जहाँ, खिली,  जो फूल जहाँ है,  जो भी सुख  जिस भी डाली पर  हुआ पल्लवित, पुलकित,  मैं उसे वहीं पर  अक्षत, अन...

समलैंगिकता : जीववैज्ञानिक और हारमोन विसंगति

वर्तमान समय में समलैंगिकता को लेकर भारत में एक व्यापक विमर्श जारी है। जहाँ समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात चल रही है वहीं भारतीय न्याय व्यवस्था का भी इस विशेष जोर है। ऐसे समय में हमें सच्चिदानन्द जोशी जी की कहानी पुत्रकामेष्ठी के पाठ की आवश्यकता के साथ- साथ उस संवेदन को समझना होगा जो इस कहानी में है। विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण प्राकृतिक हे, लेकिन कभी -कभी हमारे जीव वैज्ञानिक संरचना के विपरीत हमारा हार्मोन्स सक्रिय हो जाता है ऐसे में समलिंगी के प्रति जुडाव हमारे व्यक्तित्व में आ जाता है। आज के समय में हमें यह विचार करना होगा कि  इस समस्या के मूल में वो कौन से कारक हैं, जिनके कारण इस तरह की विसंगति होती है। हमारे शरीर में शारीरिक बनावट के साथ ही साथ बहुत से कारक होते हैं, जिनके प्रभाव में हमारा व्यक्तित्व निर्मित और विकसित होता है। हमारे शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोन्स पाये जाते हैं और वो हार्मोन्स ही सक्रिय होकर हमारी जीववैज्ञानिक संरचना को मुकम्मल बनाते हैं। कभी- कभी हार्मोन्ल असन्तुलन के कारण हम अपनी जैविक संरचना के विपरीत लक्षणों से युक्त हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप...

असाध्य वीणा :अज्ञेय

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अज्ञेय हिन्दी प्रयोगवादी काव्य परम्परा के प्रवर्तक कवि के रूप में सर्व-स्वीकृत हैं । 1943 में आपने तार सप्तक का प्रकाशन कर हिन्दी साहित्य में एक नए तरह की संवेदना और शिल्प का विकास किया । प्रयोगवाद और प्रयोग के सन्दर्भ में अज्ञेय ने स्पष्टीकरण भी दिया लेकिन यह नाम चल पड़ा और चल पड़ने के कारण प्रयोगवाद काव्य परम्परा आज भी अपने प्रयोगों के लिए जानी एवं मानी जाती है ।अज्ञेय सिर्फ कवि या संपादक ही नहीं वरन एक बहुआयामी व्यक्ति हैं । आप कवि, आलोचक, उपन्यासकार ,संपादक होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी हैं । आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता भी की और देश को पराधीनता से मुक्ति के निरंतर संघर्षरत रहे । मुक्ति आपके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है । मुक्ति आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का अभिन्न हिस्सा है ,कविता को आपने नए प्रतिमानों से समृद्ध करने के लिए जो उद्यम किया वह विशिष्ट है । इसी मुक्ति का स्वर आपकी रचनाओं में देखने को बराबर देखने को मिलता है । हरी घास पर क्षण भर कविता में उन्मुक्त और स्व से आच्छादित भाव को प्रस्तुत किया है । व्यक्ति की स्वतंत्रता की आकांक्षा अच्छी कुंठा रहित इकाई ,मैं व...

लोक रंग के कुशल चितरे :रेणु

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 हिन्दी साहित्य के इतिहास में अंचल की पहचान और अंचल के चित्र को अंकित करने की दृष्टि से रेणु का अपना विशिष्ट स्थान है । रेणु ने आंचलिक उपन्यासों के साथ साथ अपनी कहानियों के माध्यम से भी अंचल के चित्र को बखूबी कथा के फलक पर उभारने का कार्य किया है। रेणु की आंचालिकता को अब तक ज्यादातर उनके उपन्यास मैला आंचल से ही जोड़कर देखा और समझा गया है। मैला आंचल के साथ ही उनकी कहानियों में भी आंचल अपने समग्र विशेषता और विवशता के साथ मौजूद है । रसप्रिया, लाल पान की बेगम, ठेस, आदिम रात की महक , तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम, नैना जोगिनिया और ठुमरी कहानी संग्रह में रेणु ने आंचलिक जीवन को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि कहानियों को पढ़ते हुए अंचल का चित्र ही हमारे समक्ष उभर आता है । रेणु के कथा साहित्य में लोक जीवन का व्यापक और यथार्थपरक रूप देखने को मिलता है। आज के समय में लोक जीवन से बहुत सी चीजें और परमपराएं लुप्त होती जा रहीं हैं,लेकिन यदि हमें इन लुप्त होती चीजों और परमपराओं को संजोना और समझना है तो रेणु की कहानियों से बेहतर परिचायक और कुछ नहीं हो सकता । रेणु मूलतः कथाकार हैं ,लेकिन अपनी कहानियो...

निराला के काव्य की छायावादी विशेषताएं

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    सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" ' निराला ' सार्वभौम प्रतिभा के शुभ्र पुरुष थे। उनसे हिन्दी कविता को एक दिशा मिली जो द्विवेदीयुगीन इतिवृत्तात्मकता , उपदेश-प्रवणता और नीरसता के कंकड़-पत्थरों के कूट-पीसकर बनाई गई थी। वे स्वयं इस राह पर चले और अपने काव्य-सृजन को अर्थ-माधुर्य , वेदना और अनुराग से भरते चले गये। यही वजह है, कि उनका काव्य एक निर्जीव संकेत मात्र नहीं है। उसमें रंग और गंध है , आसक्ति और आनन्द के झरनों का संगीत भी है ,तो अनासक्ति और विषाद का मर्मान्तक स्वर भी है। उसे पढ़ते समय आनन्द के अमृत-विन्दुओं का स्पर्श होता है, और मन का हर कोना अवसाद व वेदना की धनी काली परतों से घिरता भी जाता है। इतना ही क्यों , उनके कृतित्व में "नयनों के लाल गुलाबी डोरे" हैं , " जुही की कली" की स्निग्ध , भावोपम प्रेमिलता भी है ,तो विप्लव के बादलों का गर्जन-तर्जन भी है। "जागो फिर एक बार" का उत्तेजक आसव भी है और जिन्दगी की जड़ों में समाते-जाते खट्टे-मीठे करुण-कोमल और वेदनासिक्त अनुभवों का निचोड़ भी है। वे यदि एक ओर "किसलय वसना नव-वय लतिका" के सौं...

आभासी कक्षा(Virtual Class)

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 आभासी कक्षा  (Virtual Class)   वर्तमान समय में हमारा समाज एवं हम एक नये तरह की दुनिया में जीवन जीने के लिए विवश है। सन् 2019  तक हमने यह सोचा भी नहीं था कि हम इतनी जल्दी एक आभासी जगत में प्रवेश कर जायेंगे। कोविड 19 ने दुनिया मंे भीषण तबाही मचायी और हमें घरों में रहने के लिए विवश कर दिया। इसका सर्वाधिक प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा व्यवस्था पर पड़ा। इस प्रभाव के परिणाम स्वरूप हमारी शिक्षा में आनलाइन माध्यम में शिक्षण आरम्भ हुआ। आनलाइन शिक्षण एवं आभासी कक्षाओं में भारतीय शिक्षण व्यवस्था में एक ऐसा नवाचार है जिसे प्र्रचलन में आने में अभी समय था लेकिन कोविड़ 19 के प्रभाव के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति देखने को मिलती है। आभासी क्लासेज के माध्यम से शिक्षण काम का प्रसार जिस तेजी से हो रहा है, उससे हिन्दी का विकास तो हो रहा है, इसके अलावा हिन्दी के क्षेत्र में लिखने पढ़ने वालों को ज्यादा अवसर प्राप्त हो रहा है। इन अवसरों के साथ-साथ वर्चुअल दुनिया के माध्यम से हम कमाई कर सकते हैं यू-ट्यूब, जूम, गूगलमीट और माइक्रोसाफ्ट टीम्स, फेसबुक, इस्टाग्राम आदि...