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आचार्य शुक्ल के निबंध

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 आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी के थे महारथी अनुपम लेखक उनकी रचनाएं अनुवादित संपादित और मौलिक  वह ग्राम अगौना चंद्रबली के पुत्ररत्न, आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के इतिहास आलोचक, निबंधकार, इतिहासकार एवं संपादक के रूप में जाने जाते हैं। रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को बहु विद समृद्ध किया। हिंदी साहित्य का इतिहास आपके द्वारा रचित सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रमाण इतिहास ग्रंथ माना जाता है, अपने हिंदी साहित्य के इतिहास के माध्यम से आपने हिंदी साहित्य का व्यवस्थित इतिहास प्रस्तुत किया इतिहास को इतिवृतात्मकता से ऊपर उठा कर आलोचनात्मक दृष्टि से इतिहास को प्रस्तुत किया। इतिहास लेखन के साथ-साथ आप की आलोचनात्मक कृतियां और आप के निबंध संग्रह हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। आप की प्रमुख कृतियां हैं हिंदी साहित्य का इतिहास विश्व प्रपंच, चिंतामणि के दो भाग , भ्रमरगीत सार की भूमिका, जायसी ग्रंथावली की भूमिका और त्रिवेणी। इन कृतियों के माध्यम से आपने ना सिर्फ हिंदी साहित्य को संबोधित किया वरन साहित्य को एक दिशा भी दिया ।आपकी विचारात्मक निबंध हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। भाव एवम मनोव...

भाषा व्यवहार

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  भाषा हमारे जीवन का मूल आधार है। भाषा का माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। भाषा को लेकर बहुत से आग्रह लोगों के मन में देखने को मिलते हैं, भारत एक बहुभाषी देश है । विविधता में एकता हमारे संस्कृति और सभ्यता प्राण तत्व है और यही वह सूत्र है जिसके द्वारा हम सदियों से अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान समय में भाषा को लेकर लोगों के मन में बहुत ह भ्रांतियां हैं। भाषाई कुलीनता ने हमारे भाषिक और सामाजिक ताने-बाने को बहुत हद तक प्रभावित किया है। भाषिक कुलीनता कोई नई बात नहीं है, समाज में कुछ लोग अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए कुलीन भाषाओं का प्रयोग करते हैं, लेकिन यहां यह समझना आवश्यक होगा कि भाषा जब भी कुलीनता के दायरे में बंधी है तो तो वहां उसकी गति प्रभावित हुई है भाषा की प्रकृति ही प्रभावमान है। भाषा के बारे में कुछ बुनियादी बातें हैं,जो निम्नलिखित है-.              1. भाषा विचार विनिमय का साधन है। 2. भाषा अर्जित संपत्ति है हम समाज में रहकर भाषा सीखते हैं और व्यवहार करते हैं। ...

सोशल मीडिया और नागरिक पत्रकारिता

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 सोशल मीडिया और नागरिक पत्रकारिता ने समाज को एक नई दिशा की ओर ले जाने का कार्य किया है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से कोई भी अपनी बात समाज के समक्ष रख सकने में सक्षम है ऐसे में हमारे समक्ष झूठ भी प्रस्तुत हो रहा है और सच भी यह हमारे विवेक पर निर्भर है कि हम सच की पड़ताल करें और उसे जाने और माने। वैसे भी सोशल मीडिया ने अफवाहों को नागरिक जीवन में घोल कर रख दिया है, और ऐसे समय में हमें और भी सजग होने की जरूरत है क्योंकि सच को जानना आज के समय में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है। झूठ और फरेब का प्रसार तेजी से हो रहा है और कहीं ना कहीं लोग उसे सच मानते जा रहे हैं। मीडिया ने हमारी राजनीतिक व्यवस्था को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है।  आज के समय में अधिकांश चुनाव प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे वर्ष भर चलते रहते हैं और वह लोग राजनीति में ज्यादा सफल होते जा रहे हैं जो सोशल मीडिया को बेहतर ढंग से प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे समय में तटस्थ और निरपेक्ष विचारों का वातायन खड़ा करना बहुत ही मुश्किल और कठिन हो गया है। राजनीति को नई दिशा देने में सोशल मीडिया का विशेष योगदान है इस वर्चुअल ...

असाध्य वीणा के अभिव्यक्ति पक्ष पर प्रकाश डालिए .

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  अभिव्यक्ति पक्षः भाषा अज्ञेय ने मानवीय व्यक्तित्व की व्याख्या में भाषा को अनिवार्य तत्व माना है। भाषा उनके लिए माध्यम नहीं अनुभव भी है। अज्ञेय के अनुसार  सर्जनात्मकता की समस्या से सतत् जूझने वाले रचनाकार के लिए यह उचित है कि वह भाषिक सर्जन की क्षमता को गहरे ढंग से समझे। अज्ञेय की अधिकांश कविताओं मे भाषा और अनुभव के अद्वैत को व्याख्याथित करने का प्रयास देखने को मिलता है। असाध्य वीणा इसका अपवाद नहीं है। असाध्यवीणा की भाषा का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है यहॉं बिम्बों का प्रयोग, लोक भाषा के शब्दों का प्रयोग, मौन की सार्थक अभिव्यक्ति और संस्कृत निष्ठ शब्दावली  से परिपूर्ण भाषा दृष्टिगत होती है। भाषा के संबन्धा में अज्ञेय ने स्वयं लिखा है- मै उन व्यक्तियों में से हूॅं और ऐसे व्यक्तियों की संख्या शायद दिन-प्रतिदिन  घटती जा रहीं है, जो भाषा का सम्मान करते हैं, और अच्छी भाषा को अपने आापमें एक सिद्धि मानते है। अज्ञेय के लिए अच्छी भाषा का अर्थ अलंकृत या चमकदार भाषा नहीं है, वरन् अच्छी भाषा की अच्छाई यही है  िकवह भाषा  और अनुभव के अद्धैत का स्थापित करे और ऐसी हमें अज...

1. असाध्यवीणा के कथ्य पर प्रकाश डालिए।

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 1. असाध्यवीणा के कथ्य पर प्रकाश डालिए। उत्तरः- असाध्यवीणा अज्ञेय द्वारा रचित पहली लम्बी कविता है। जो जापानी कथा पर आधारिता कथात्मक कविता है। असाधवीणा में अज्ञेय एक ऐसे विषय वस्तु को करते हैं जिसमें रहस्यवाद ओर अंह के विसर्जन संदेश देखने को मिलता है। कविता का आरम्भ में प्रियबंद केश कम्बकी राजा के दरबार में आते है। राजा इनका अपने यहां स्वागत करते हैं और उन्हें वीणा के बारे में बताते हैं। राजा कहते हैं कि यह वीणा उत्तराखण्ड  के गिरि प्रान्तर से बहुत समय पहले आयी थी। आगे राजा बताते हैं कि इसका पूरा इतिहास तो हमें पता है लेकिन इतना सुना है कि वज्रकीर्ति ने इसे गढ़ा था- किन्तु सुना है बज्रकीर्ति ने मत्रपूत जिस  अति प्राचीन किरीटी तरू से इसे गढ़ा था- आगे राजा प्राचीन किरीटी तरू को विशेषताओं को बताते हैं कि उसे कानों में हिम शिखर अपने रहस्य कहा करते थे हिमबर्षा से बचा लेते थे और उसके कोटर में भालू बसते थे ओर उसकी जड़ पाताल लोक तक जा पहुॅंची थी और उसके गन्ध और शीतलता से फन टीका का बासुकि नाग सोता था बज्रकीर्ति ने सारा जीवन इस वृक्ष से वीणा की निर्माण किया। और वीणा पूरी होते ही उ...

अनुच्छेद लेखन

  अनुच्छेद लेखन के महत्वपूर्ण बिन्दु - 1.अनुच्छेद लेखन के लिए हमें शब्दों का बेहतर संयोजन आना चाहिए. 2. भाषा और व्याकरण का व्यवहारिक बोध आवश्यक है. 3. अनुच्छेद लेखन के लिए बहुत से पाठों का अध्ययन आवश्यक है. 4. पढना ही लिखने की सफलता की कुंजी है.

प्राकृतवाद

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प्राकृतवाद प्राकृतवाद अंग्रेजी के नेचरलिज्म का हिन्दी रूपान्तर है। यह प्रकृतिवाद से भिन्न है जिसका अर्थ प्रकृति-सम्बन्धी काव्य और साहित्य से होता है। साहित्य और कला के अन्य अनेक आन्दोलनों के समान इस आन्दोलन का भी प्रारम्भ और विकास फ्रान्स में हुआ। यह एक प्रकार से यथार्थवादका समकक्ष आन्दोलन है। इसकी मान्यताओं के अनुसार आत्मा या अन्य कोई अलौकिक सत्ता नहीं है। जो कुछ हो रहा है वह सब प्रकृति के द्वारा ही संचालित है, पारलौकिक सत्ता या शक्ति के द्वारा नहीं प्राकृतवादी विचारधारा का आरम्भ सन् 1830 की फ्रान्सीसी क्रान्ति के बाद हुआ यथार्थवाद की अपेक्षा यह सामाजिक परिवेश को लेकर चला और इसके द्वारा पूँजीवादी वैभव विलास के वातावरण में मानव प्रकृति के अन्दर समाविष्ट विकृतियों का विश्लेषण भी किया गया। यथार्थवाद केवल उतना ही चित्रण करता है। जितना प्रत्यक्ष होता है। उसका दृष्टिकोण तटस्य रहता है और अपनी निजी भावनाओं का चित्रण कवि उसमें नहीं करता, परन्तु इसके विपरीत प्राकृतवादी कलाकारों की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व भी उभरकर आता है। इसके साथ ही साथ साहित्यकार का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण होता है वह भी ...