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रेणु की कहानियाँः लोक रंग एवं लोक भाषा का आख्यान

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हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक काल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस युग में साहित्य का जनतंत्रीकरण हुआ। जिसे साहित्य के नायकत्व की अवधारणा अब तक राजा-रानी तक या पौराणिक व्यक्तित्व तक सीमित थी, उसके केन्द्र में अब समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलने लगा। इसके साथ-साथ आधुनिक काल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि साहित्य की विविध विधाओं में लेखन का आरम्भ। पद्य के साथ-साथ गद्य की विविध विधाओं में लेखन आरम्भ हुआ। नाटक, निबन्ध, कहानी, उपन्यास आदि में लेखन आधुनिक काल की सबसे बड़ी देन है। आधुनिक काल में पत्रकारिता का विकास हुआ। पत्रकारिता के विकास के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में खड़ी बोली हिन्दी में लेखन आरम्भ हुआ। नाटक, कहानी और उपन्यास आदि के लेखन का प्रसार तेजी से हिन्दी प्रदेश में हुआ। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके मण्डल के लेखकों ने न केवल नाटक लेखन का कार्य किया, वरन उसके मंचन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का भी निर्वहन किया। पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के माध्यम से इस काल में लिखे जाने वाले साहित्य हिन्दी जनमानस के बीच तेजी से पढ़ा एवं सुना जाने लगा...

भाषा बोध और बहुभाषिकता

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भाषा का संसार अपने आप में बहुत ही व्यापक और विस्तृत है । भाषा अपने व्यक्तित्व में बहुआयामी एवं वैविध्यपूर्ण है । भाषा के होने की सबसे बड़ी सार्थकता उसके चेतन होने में है । भाषा अपने स्वरूप में चर है, जो निरंतर समय और समाज के अनुरूप प्रवाहित होती रहती है । आज के तकनीकी और प्रचंड भौतिकता के दौर में भाषा बहुरूपी होती जा रही है ,क्योंकि भाषा एक साथ कई स्तरों पर सक्रिय रहती है । भाषा की यही सक्रियता उसे समय की यात्रा में आगे जाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थतंत्र के मोर्चों पर भाषा का नियोजन एक महत्वपूर्ण भाषा कार्य है । इन सभी आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए हिंदी भाषा निरंतर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है । हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा लोक जगत के अनुभवों का सामंजस्य ई-जगत के बड़ी आसानी से कर रही है । हिंदी वर्तमान में तेजी से विकसित हो रही है ,इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हिंदी की उदारता है । भाषिक अधिग्रहण के कारण आज हिंदी में दुनिया भर की भाषाओँ के शब्द अटे पड़े हैं । भाषिक उदारता और निरंतर परिवर्तन की प्रकृति ने...

भाव शून्य होने की प्रक्रिया

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  भाव शून्य होने की प्रक्रिया खत्म होती उम्मीदों से होती है , हमारे जीवन में एक ऐसा समय आता है जब हमें यह एहसास होने लगता है कि इस भौतिक जगत संबंध कितने भी प्रगाढ क्यूँ ना हों वह भौतिकता पर ही निर्भर रहता है . जीवन में हम कभी - कभी इस तरह की अपेक्षा कर लेते हैं जो इस दुनियादारी से नितान्त परे होती है . कुछ भी हो दुनिया ज्यों ज्यों आगर है . आप इस जगत को ना तो जान सकते हैं और ना ही समझ सकते हैं . खुद को जान लें यही बेहतर है . खुद के दोष को तलाश लें और उसका परिमार्जन कर लें यही श्रेयस्कर होगा . कुछ लोग धन संपदा को अपना सब कुछ मान लेते हैं और उसके भीतर ही बंधकर रह जाते हैं . हमारी दृष्टि कम से कम इतनी उदार तो होनी ही चाहिए कि हम अपनी सीमाओं को जान और समझ सकें और उनसे पार पाने की चेष्टा करें . धन संपदा और पत्ति - पत्नी और बच्चों को ही अपनी दुनिया समझने से परे जाकर वास्तविक द ुनिया को समझने की दरकार है . माँ - पिता जब अपने बच्चों का लालन - पालन करते हैं तो दुनिया की सबसे बेहतरीन परवरिश करने की चेष्टा करते हैं और उन्हीं की इच्छाएँ एक समय के बाद हमें बोझ लगने लगतीं हैं . फिर हम बेहिसाब हसर...