लोक परम्परा के गहन संवेदना का आख्यान : रसप्रिया
हिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह देखने को मिलता है कि हिन्दी का मन लोक में खूब रमता है । लोक के ही प्रांगण में हमारा भक्ति साहित्य पल्लवित एवं पुष्पित हुआ । हिन्दी साहित्य में लोक जीवन और लोक भाषाओँ के साथ-साथ लोक परम्परा का अजस्र प्रवाह आदि काल से लेकर अब तक अनवरत रूप से देखने को मिलता है । इसी परम्परा में हिन्दी कथा साहित्य भी विकसित हुआ , आम जीवन की विविध भंगिमाओं के अंकन की दृष्टि से हिन्दी कथा साहित्य अपने आरम्भिक काल से ही महत्वपूर्ण रहा है ।कथा सम्राट प्रेमचंद ने इस परम्परा को अपने साहित्य के माध्यम से मजबूत आधार दिया और बाद के कथाकारों ने आपसे प्रेरणा ग्रहण कर जीवन जगत के यथार्थ को साहित्य के फलक पर उकरने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया । प्रेमचंद की परम्परा में ही फणीश्वर नाथ रेणु का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । रेणु ने अंचल एवं लोक के यथार्थ को ना सिर्फ अपने लेखनी से कथा फलक पर प्रस्तुत किया ,वरन उसे संरक्षित की आवश्यकता और चिंता से भी लोगों को वाकिफ कराया । हिन्दी कथा साहित्य के विकास में फणीश्वर नाथ रेणु का विशेष योगदान है । प्रेमचन्द...