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कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती

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कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती | कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काती॥ नयन, सजल, कागद अति कोमल, कर अँगुरी अति ताती।  परसत जरै, बिलोकत भीजै दुहूँ भाँति दुख छाती ॥ क्यों समुझे ये अंक सूर सुनु कठिन मदन-सर-धाती। देखे जियहिं स्यामसुंदर के रहहिं चरन दिनराती ॥ प्रस्तुत पंक्तियों सूरसागर के भ्रमरगीत प्रसंग से ली गई है । जब कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा आ जाते हैं तो वहां उनकी मुलाकात उद्धव होती है । ऊधौ श्री कृष्ण को समझते हैं तब कृष्ण गोपियों गोपियों की याद में परेशान रहते हैं । उद्धव निर्गुण ज्ञान का उपदेश कृष्ण को देते हैं कृष्ण उद्धव को गोकुल भेजते हैं  कि हे उद्धव आप गोपियों को समझा दो उड़ उठाओ कृष्ण का संदेश लेकर गोकुल पहुंचते हैं और वहां पहुंचने के बाद गोपिया उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अपने लोक ज्ञान से ऐसी तर्क देती है कि उद्धव निरंतर हो जाते हैं ऐसे ही जब उद्धव गोपियों को कृष्ण का सन्देश देना चाहते हैं तो गोपियों कहतीं है की ब्रज में कोई पत्र नहीं पढ़ पाता है और कहती हैं कि कोई ब्रज में चिट्ठी पत्री नहीं पढ़ पाता ऐसे में कृष्ण क्यों इस कठिन विरह की पाति को लिख लिख कर भेज रहे हैं आगे गोपि

सूरदास का वात्सल्य मनोभाव

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सूरदास हिन्दी के एक ऐसे कवि के रुप में ख्यतिलब्ध हैं जिन्होंने वात्सल्य एवं श्रृंगार का बहुत ही सूक्ष्म एवं व्यापक चित्रण किया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मानना है कि वो वात्सल्य और श्रृंगार का कोना कोना झांक आये हैं। यह सच भी है।  गोकुल में रहते हुए कृष्ण ने जो भी बाल लीला की है उसे सूरदास ने बहुत ही सूक्ष्म एवं यथार्थ पूर्ण रुप में प्रस्तुत किया है।  घुटुरुन चलत का पद हो या यशोदा हरि को पालने झुलावें पद इन सब जो अंकन है उसमें अवगाहन करके हमारा मन आह्लादित हो उठता है। मातृ ह्दय की ममता हो या बाल मन का हठ और तर्क दोनों बेजोड अंकन सूरदास के सूरसागर में देखा जा सकता है। वास्तव में सूरसागर सागर से कम नहीं है। वात्सल्य मनोभाव एक ऐसा मनोभाव है जिससे रुबरु होते हुए हम सब कुछ भूलकर एक बच्चे के ह्दय से तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।  जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥ मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै। तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥ कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥ इहिं अंतर