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सौन्दर्य और जीवन

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 सौन्दर्य में बासी को ताजा करने की अद्भूत क्षमता होती है। जीवन को उत्साह और उल्लास से भरने में उत्सवों और सौन्दर्य की भूमिका बहुत ही विशिष्ट होती है। इसी कारण भारतीय परम्परा में हर दिवस किसी न किसी त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। प्रथमा तिथि से लेकर अमावस्या एवं पूर्णिमा तक उत्सव की धूम बनी रहती है। सुहागन महिलाएँ विशेष रुप से व्रतों और उत्सवों का पालन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ करतीं हैं। सोलह श्रृंगार करके अपने आस-पास के समग्र परिवेश को खुशनुमा कर देतीं हैं। भारतीय परम्परा ऋंगार और सौन्दर्य का विशेष महत्व है।  हमारे यहाँ मनाये जाने उत्सवों का मूल उद्देश्य ही यही है कि जीवन की एकरसता को दूर कर नवीन ऊर्जा और ऊष्मा का संचार किया जाये। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में जीवन नित्य नवीन बनाने जो कला है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।  आज के समय में जिस तरह से लोगों के बीच निराशा और तनाव बढ रहा है ऐसे समय में उस भाव बोध की महती आवश्यकता है जो हमारी परम्परा में अनादि काल से चली आ रही है। इसी भाव बोध पूरित कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है - तुम एक पूरी कायनात हो  तन से ही नहीं, मन से...

कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती

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कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती | कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काती॥ नयन, सजल, कागद अति कोमल, कर अँगुरी अति ताती।  परसत जरै, बिलोकत भीजै दुहूँ भाँति दुख छाती ॥ क्यों समुझे ये अंक सूर सुनु कठिन मदन-सर-धाती। देखे जियहिं स्यामसुंदर के रहहिं चरन दिनराती ॥ प्रस्तुत पंक्तियों सूरसागर के भ्रमरगीत प्रसंग से ली गई है । जब कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा आ जाते हैं तो वहां उनकी मुलाकात उद्धव होती है । ऊधौ श्री कृष्ण को समझते हैं तब कृष्ण गोपियों गोपियों की याद में परेशान रहते हैं । उद्धव निर्गुण ज्ञान का उपदेश कृष्ण को देते हैं कृष्ण उद्धव को गोकुल भेजते हैं  कि हे उद्धव आप गोपियों को समझा दो उड़ उठाओ कृष्ण का संदेश लेकर गोकुल पहुंचते हैं और वहां पहुंचने के बाद गोपिया उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अपने लोक ज्ञान से ऐसी तर्क देती है कि उद्धव निरंतर हो जाते हैं ऐसे ही जब उद्धव गोपियों को कृष्ण का सन्देश देना चाहते हैं तो गोपियों कहतीं है की ब्रज में कोई पत्र नहीं पढ़ पाता है और कहती हैं कि कोई ब्रज में चिट्ठी पत्री नहीं पढ़ पाता ऐसे में कृष्ण क्यों इस कठिन विरह की पाति को लिख लिख...