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लिपि की उपयोगिता

भाषा का सम्बन्ध ध्वनियों से हैं। ध्वन्यात्मक भाषावता के मुख ने निकालতা श्रोता के कान तक पहुँचकर अपना प्रभाव प्रकट करती हैं। यह वाचिक भाषा है। वहा ह मुख से निकलने के कुछ क्षों बाद इसका स्वरूप नष्ट हो जाता है। मानव की प्रवृति है कि वह अपने कार्यों और विचारों को स्थायित्व प्रदान करना चाहता है। इसके लिए वाह ऐसे साधनों का उपयोग करता है, जिससे उसके विचार आगे की पीढ़ी तक पहुँच सकें। इन्हीं गूढ़ विचारों ने लिपि को जन्म दिया। इसका प्रारम्भिका रूप क्या था, यह आज बताना संभव नहीं है, परन्तु अनुमान है कि अपने भाों को स्थायित्या प्रदान करने का लिाए सर्वप्रथम चित्रात्मक लिपि का प्रयोग हुआ, तत्पश्वात् भावलिपि और अन्ततः ध्वनिलिपि। भाषा और लिपि की अपूर्णता यह अनुभव-सिद्ध है कि मानव के संवेदनात्मक भावों को भाषा पूर्णतया अभिव्यक्त नहीं कर पाती है। हर्ष, शोक, मिठास, कड़वापन आदि भाव भावा से पूर्णतया व्यक्त नहीं हो पाते हैं। लिपि भागा कर ही स्कूल रूप है। लिपि भी मनोभावों को व्यक्त करने में असमर्थ है। भाषा और लिपि में मुख्य अन्तर यह है कि (१) भाषा सूक्ष्म है, लिपि स्थूल है। (२) भाषा की व्यनियों में अस्थायित्व