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तेरे बूते का नही: प्रीति श्रीवास्तव

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तेरे बूते का नही तू इश्क समझे मेरे दिल में है मैं तो इश्क करूंगी तुमसे  तेरे बूते का नही तू खुशबू पहचाने मेरे दिल मे है बयार से पहचान लूं तूझे तेरे बूते का नही तू नजर मिलाए मेरे दिल में हैं मै अर्थी तक निहारूंगी तूझे तेरे बूते का नही तू याद भी रखे मुझे मेरे दिल में है जन्मों तक पुकारूंगी तूझे तेरे बूते का नही मैं कहीं भी रहूं तूझमे मेरे दिल में है बस तू ही तू रहे मुझमे # बस यूं ही प्रीति  (फोटो फेसबुक गैलरी) अकेले हो या अकेलापन पसंद है तुम्हे भीड़ ना सही  हमें तो साथ लेलो ना बोलेंगे  ना टोकेंगे बस साथ चलेंगे मत कहना  नही डरता मैं रास्तों से अरे रास्ते डरतें हैं  अकेले चलने वालों से माना कि अंधेरों से डरते नही तुम पर जुगनुओं को राह दिखाने तो दो कदमों के नीचे  ना आ जाए कोई  बस इतना साथ निभाने तो दो इक ही राह के मुसाफिर फिर क्यों चले अकेले डर रहे हो तुम  पास साथी ना कोई आवे कहीं हिल ना जाएँ होठ तेरे खुल ना जाए कोई भेद दिल का चुप रह लेना ना मेरे साथी बस साथ मुझको लेले सब हाल मुझे पता है तु बोलना ना मुख से मैं मौन ही सुनुगी तुम मौन ही ...

मेरी संवेदना

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कुछ कहा करो  कुछ सुना करो  कहने सुनने से  दु:ख कम हो जाते हैं कभी-कभी किसी को  सिर्फ सुन लेना  हो सकता है कोई  मुरझाया शख्स  मुस्कुरा दे और  कभी-कभी कह देने मात्र से  मन हल्का महसूस करता है।  इसलिए कुछ कहना और सुनना जरुरी है  और हाँ!  बहुत आसान है  कहना-सुनना कहने-सुनने से ही  बनतीं हैं बातें और चलती है दुनिया।  (अमरेन्द्र) याद है मुझे अब भी  वो सर्दियों की बरिश  चाय की चुस्कियां तेरे नर्म हाथों की आलू के पराठे,  और गर्मियों की लू  वो रिक्शे की सवारी  वो तेरी जुल्फों का लहराकर  मेरे मन को बहकाना  वो तेरी खुशबू का  मेरे सांसों में उतरना ।  याद है मुझे अब भी ,  वो आखिरी बार मिलना  चाय से शुरू हुई मोहब्बत का  स्वीटकार्न सूप पर खत्म होना।  ना जाने कितनी  याद होंगी तुम्हें- उन लम्हों की बातें और बहुत सी बातें।  वो एक कहानी - जो अधूरी खत्म हो कर भी  एहसासों जिन्दा है। (अमरेन्द्र) कुछ एहसास लिखने हैं मुझे लेकिन जब भी लिखना चाहा-...

Break- Up

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Break Up (I have switched off my feelings. You should also do so) अमन बाबू अब तक अपने आप एकांत के लिए साध चुके थे।रुचि के छोडने के बाद  उस भावदशा और मनोदशा में एक अर्से तक रहे । फिर धीरे-धीरे एकांत और मौन उनके चरित्र में रच गया था। अब वो जरूरी होने पर ही संवाद करते थे। संवेदना के नाम पर कुछ यादें ही थीं जो उनके समग्र बजूद को झकझोरने के पर्याप्त थीं। इसके अलावा सब कुछ पहले से ठीकठाक था। यादों और बातों का विचित्र संयोग है।ये दोनों ही आपके बजूद को स्याह कर देतीं हैं। आज अमन बाबू फिर से स्याह और व्यथित मन के साथ अपने बिखरे हुए और ना समेटे जा सकने वाले बजूद को फिर निहार रहे हैं।आखिर रुचि के जाने के उस बन्द भाव जगत को किसी के दस्तक पर खोले ही क्यूँ? सामने यादें बिखरी हुईं पडीं थी - लिपस्टिक लगी  डिस्पोजल गिलास  और ऐसी ही पलास्टिक की गिलास, आंसू से भिगे और फिलहाल सुखे टिस्सू पेपर और ना जाने कितनी चीजें। बिखरी चीजें तो सिमट जायेंगी मगर .........................। का जाने अब खलिहर अमन बाबू का क्या होगा ?बातें बकवास और पागलोंवाली करता है अब ये अमनवा। Feelings thi Relation nahi. ...