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संवेदना एवं भाषा की नव्यता के कवि : नरेश सक्सेना

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  संवेदनाओं से रिक्त होते समय में कविता का दायित्व अत्यन्त गुरुत्तर होता जा रहा है । आज के समय में जब मानवता और संवेदना के समक्ष गहराते संकट के बीच कविताओं के माध्यम से समाज को में संवेदना संरक्षित करने की दिशा में नरेश सक्सेना का महत्वपूर्ण स्थान है । नरेश सक्सेना की कविताओं में भाषा, संवेदना और तकनीकी का समन्वय तो है ही साथ ही साथ भावी पीढ़ी के लिए सन्देश भी है । विज्ञान और तकनीकी की पढाई और पेशे से अभियन्ता होने कारण आपकी कविताओं में एक नए किस्म की भाषाई चेतना देखने को मिलती है। आपकी की ख्याति खामोश कलाकार एवं रचनाकार के रूप में है । कविता के अलावा उनकी रचनात्मक सक्रियता के अन्य क्षेत्रों में भी है । आपने फिल्म, टेलीविज़न और रंगमंच के लिए लेखन किया है। नरेश सक्सेना जी ने भाव और भाषा के प्राथमिक स्तर से लेकर शीर्ष तक की संभावना पर विचार करते हुए कविता की रचना की है उनकी यही खासियत उन्हें समकालीन कवियों अलग पहचान दिलाती । आपकी ‘शिशु’ शीर्षक कविता में जीवन के आरम्भिक संगीत का अद्भुत अंकन देखने को मिलता है – शिशु लोरी के शब्द नहीं संगीत समझता है , बाद में सीखेगा भाषा अ...

पुल पार करने से :नरेश सक्सेना

  पुल पार करने से पुल पार होता है नदी पार नहीं होती नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना नदी में धँसे बिना पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता नदी में धँसे बिना पुल पार करने से पुल पार नहीं होता सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है कुछ भी नहीं होता पार नदी में धँसे बिना न पुल पार होता है न नदी पार होती है। (नरेश सक्सेना)