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सौन्दर्य और जीवन

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 सौन्दर्य में बासी को ताजा करने की अद्भूत क्षमता होती है। जीवन को उत्साह और उल्लास से भरने में उत्सवों और सौन्दर्य की भूमिका बहुत ही विशिष्ट होती है। इसी कारण भारतीय परम्परा में हर दिवस किसी न किसी त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। प्रथमा तिथि से लेकर अमावस्या एवं पूर्णिमा तक उत्सव की धूम बनी रहती है। सुहागन महिलाएँ विशेष रुप से व्रतों और उत्सवों का पालन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ करतीं हैं। सोलह श्रृंगार करके अपने आस-पास के समग्र परिवेश को खुशनुमा कर देतीं हैं। भारतीय परम्परा ऋंगार और सौन्दर्य का विशेष महत्व है।  हमारे यहाँ मनाये जाने उत्सवों का मूल उद्देश्य ही यही है कि जीवन की एकरसता को दूर कर नवीन ऊर्जा और ऊष्मा का संचार किया जाये। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में जीवन नित्य नवीन बनाने जो कला है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।  आज के समय में जिस तरह से लोगों के बीच निराशा और तनाव बढ रहा है ऐसे समय में उस भाव बोध की महती आवश्यकता है जो हमारी परम्परा में अनादि काल से चली आ रही है। इसी भाव बोध पूरित कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है - तुम एक पूरी कायनात हो  तन से ही नहीं, मन से...

प्राकृतवाद

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प्राकृतवाद प्राकृतवाद अंग्रेजी के नेचरलिज्म का हिन्दी रूपान्तर है। यह प्रकृतिवाद से भिन्न है जिसका अर्थ प्रकृति-सम्बन्धी काव्य और साहित्य से होता है। साहित्य और कला के अन्य अनेक आन्दोलनों के समान इस आन्दोलन का भी प्रारम्भ और विकास फ्रान्स में हुआ। यह एक प्रकार से यथार्थवादका समकक्ष आन्दोलन है। इसकी मान्यताओं के अनुसार आत्मा या अन्य कोई अलौकिक सत्ता नहीं है। जो कुछ हो रहा है वह सब प्रकृति के द्वारा ही संचालित है, पारलौकिक सत्ता या शक्ति के द्वारा नहीं प्राकृतवादी विचारधारा का आरम्भ सन् 1830 की फ्रान्सीसी क्रान्ति के बाद हुआ यथार्थवाद की अपेक्षा यह सामाजिक परिवेश को लेकर चला और इसके द्वारा पूँजीवादी वैभव विलास के वातावरण में मानव प्रकृति के अन्दर समाविष्ट विकृतियों का विश्लेषण भी किया गया। यथार्थवाद केवल उतना ही चित्रण करता है। जितना प्रत्यक्ष होता है। उसका दृष्टिकोण तटस्य रहता है और अपनी निजी भावनाओं का चित्रण कवि उसमें नहीं करता, परन्तु इसके विपरीत प्राकृतवादी कलाकारों की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व भी उभरकर आता है। इसके साथ ही साथ साहित्यकार का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण होता है वह भी ...