Posts

Showing posts with the label उपन्यास

प्राकृतवाद

Image
प्राकृतवाद प्राकृतवाद अंग्रेजी के नेचरलिज्म का हिन्दी रूपान्तर है। यह प्रकृतिवाद से भिन्न है जिसका अर्थ प्रकृति-सम्बन्धी काव्य और साहित्य से होता है। साहित्य और कला के अन्य अनेक आन्दोलनों के समान इस आन्दोलन का भी प्रारम्भ और विकास फ्रान्स में हुआ। यह एक प्रकार से यथार्थवादका समकक्ष आन्दोलन है। इसकी मान्यताओं के अनुसार आत्मा या अन्य कोई अलौकिक सत्ता नहीं है। जो कुछ हो रहा है वह सब प्रकृति के द्वारा ही संचालित है, पारलौकिक सत्ता या शक्ति के द्वारा नहीं प्राकृतवादी विचारधारा का आरम्भ सन् 1830 की फ्रान्सीसी क्रान्ति के बाद हुआ यथार्थवाद की अपेक्षा यह सामाजिक परिवेश को लेकर चला और इसके द्वारा पूँजीवादी वैभव विलास के वातावरण में मानव प्रकृति के अन्दर समाविष्ट विकृतियों का विश्लेषण भी किया गया। यथार्थवाद केवल उतना ही चित्रण करता है। जितना प्रत्यक्ष होता है। उसका दृष्टिकोण तटस्य रहता है और अपनी निजी भावनाओं का चित्रण कवि उसमें नहीं करता, परन्तु इसके विपरीत प्राकृतवादी कलाकारों की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व भी उभरकर आता है। इसके साथ ही साथ साहित्यकार का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण होता है वह भी ...

त्यागपत्र : एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास ( जैनेन्द्र)

Image
     साहित्य , भाषा और समाज का अत्यन्त घनिष्ट संबंध रहा है समाज के चितवृत्ति के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य और उसकी भाषा पर भी पड़ता है। यह प्रभाव साहित्यिक विधाओं का रूप परिवर्तन भी तय करता है। हमारी वैदिक - पौराणिक परम्परा में जहां संवादों , महाकाव्यों का महत्व रहा है। वहीं आज साहित्य का रूप बहुत बदल चुका है। आख्यायिका परम्परा का साहित्य आज निबन्ध , कहानी , कविता , उपन्यास आदि जैसी अनेक विधाओं में परिवर्तित हो चुका है यह परिवर्तन सामाजिक चितवृत्ति में होने वाले परिवर्तन के कारण ही होता रहा है। समाज की भावदषा एवं मनोदशा में परिवर्तन के साथ-साथ भाषा का रूप भी परिवर्तित होता रहता है।               साहित्य , भाषा और समाज के इन्हीं संबंधों के परिणाम स्वरूप भाषा भी अपनी यात्रा तय करती है अपने आरम्भिक रूप से लेकर अब तक हिन्दी भाषा , के रूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं। यह परिवर्तन काव्य भाषा एवं गद्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठा के साथ-साथ सूक्ष्म भावात्मक अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में भी दृष्टिगत होती है। गद्य भाषा के...