छोड़ना था मुझे एक ही इंसान को : प्रीति

 छोड़ना था मुझे

 एक ही इंसान को

और छोड़ना था 

एक शहर एक गली

जहां से गुजरते हुए 

बहने लगतीं थी मेरी आंखें 

भूल जाना था मुझे 

एक ही इंसान की बेवफाई 

किसी की बेहयाई 

और बढ़ जाना था मुझे आगे

चले जाना था मुझे दूर

बहुत दूर 

बस एक ही इंसान से

चली थी मैं दूर बहुत दूर 

उस शहर से उस गली से

उस इंसान से

पर फिर भी वो मुझसे ही रहा

बस थोड़ा सा 

बहुत थोड़ा सा

और चुभता रहा 

एक छोटा टुकड़ा उसकी यादों का

मेरे दिल में 

ना जाने क्यों वो मुझ मे से

पूरा नही गया 

चुभता ही रहता है वो अब तलक

जो एक टुकड़ा रह गया 

मुझमें थोड़ा सा

जी चाहे निकाल फेंकूं 

मै खुद से उसको

या कि निकाल ही दूं 

दिल अपना

छोड़ना था एक इंसान को

अब तो दिल छोड़ना होगा

छोड़ना था मुझे 

एक ही इंसान को

बस एक ही इंसान को।

# बस यूं ही



Comments

  1. धन्यवाद आपका 🙏

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