मैं लिखूंगी मेरा एक ख़्वाब:सारिका साहू
अदृश्य पर अंकित अनुराग
मैं लिखूंगी मेरा एक ख़्वाब,
जिसकी हक़ीक़त तुम रहोगे जनाब।
उन सूखे दरखास्त हुए दरख़्त पर,
मैं लिखूंगी मेरी एक खास बात।
अनदेखी हवाओं की तपती लहर पर,
मैं लिखूंगी अपना वो अथक प्रयास।
उस तीव्र सूरज की रश्मि पर,
मैं लिखूंगी तुम्हें प्राप्त करने का परिश्रम।
उस वन की उठती दावानल की तेज लौ पर,
मैं लिखूंगी विरह में जलती मेरी तपिश।
रेगिस्तान की गर्म रेतीली ज़मीन पर,
मैं लिखूंगी कई बार तुम्हारा नाम।
बंजर धरती की जर्जर मिट्टी पर,
मैं लिखूंगी तड़पन की दरार।
प्रकृति की हर चुभती नेमतों पर,
मैं लिखूंगी तुम्हें और पूछूंगी,
क्या तुम एक हक़ीक़त हो या ख़्वाब।
सारिका साहू
बहुत बहुत आभार आपका रचना को अपने पेज पर जगह देने हेतु
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