आइए ना कभी: प्रीति श्रीवास्तव
आइए ना कभी
दिसंबर की धूप बनकर
हम बैठें कुछ देर आपके साथ
कुछ बातें करें
कुछ अपनी कहें कुछ आपकी सुनें
मत करिएगा आप मुहब्बत की बातें
मत देखिएगा मुझे ऐसे
जैसे तितलियां निहारतीं हैं
गुलाब के फूल को
कुछ देर बतियाएंगे हम
और याद करेंगे
कुछ दादी नानी की कहानियां
कुछ पुरानी कहावतें
कुछ पुराने स्वाद
जो खो गए हैं कहीं
याद करेंगे
कच्ची आंगन में आपका आना
वो मंडियां पर बैठकर
घंटो बतियाना
आइए ना कभी
कोई भूले बिसरे गीत की तरह
हम गुनगुना लेंगे कुछ पल के लिए
और साथ में रखेंगे
एक पुरानी सी मउनी में
कच्चे पक्के बेर
कुछ खट्टी कुछ मीठी
जैसे हमारा लड़कपन हो
थोड़ा कच्चा थोड़ा पक्का सा रिश्ता
कच्ची पक्की सी मुहब्बत अपनी
ना पाने की आरजू थी
ना बिछड़ने का डर
बस उस पल हां उसी पल में
बड़े सुकून से जीते थे हम
आइए ना फिर से आप
भूली बिसरी मुहब्बत साथ लेकर
अंजुरी पर बेर लेकर
साथ बैठेंगे
और गुजार लेंगे अंधेरी ठिठुरती रात भी
आपके तपन से
प्रेम की ऊष्मा से
आइए ना।
# यूं ही
प्रीति 😍
शुक्रिया अमरेन्द्र जी 🙏
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