मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी :सारिका साहू
मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी क्या तुम हर बार मुझे पठन करोगे? तुम्हारे विलक्षण रूप को अपनी रचना में गढ़ूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय रूप को जान पाओगे? तुम्हारे संग का वह अलौकिक उपहार उजागर करूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय उपहार का स्वरूप समझ जाओगे? तुम्हारे साथ सुसज्जित स्वपन सलोने लिखूंगी क्या हर बार वही संगी - साथी बने रहोगे। तुम्हारे सुंदर चरित्र को कवितामय लिखूंगी। क्या तुम वो सुंदर चरित्र चरितार्थ कर पाओगे? मैं हर बार अपनी कविता का विषय तुम्हें ही लिखूंगी। क्या तुम हर बार मेरे चयन को स्वीकार कर पाओगे? हमारे संवाद को कविता में संजोकर रखूंगी क्या बदलते वक्त के साथ तुम भी स्मरण रख पाओगे? मैं हर दिन तुम्हें अपनी रचना में प्रश्न करूंगी। क्या तुम सब प्रश्नों के हल बन जाओगे? जीवन के उतार चढ़ाव में ,मैं कईं उदासीन कविता लिखूंगी। क्या तुम मेरे भीतरी वेदनाओं को सहजता से समझ पाओगे। मैं हर दिन तुम्हारे नाम पर एक कविता प्रेषित करूंगी। क्या तुम अपने हिय में उन रचनाओं को उतार पाओगे? मैं शायद हर बार उतनी सुंदर रचना न कर सकूं क्या फ़िर भी मेरी कविताओं को श्रवण कर पाओगे कईं बार विभिन्न सा