स्मृतियों में तुम

 एक समय था जब मैं बहुत खुश रहता था और हंसता भी खूब था। मेरे आस-पास के लोगों मैं खूब हंसता था। फिर जिन्दगी में एक ऐसा दौर आया कि मैं से मैं कब हम में बदल गया मालूम ही नहीं हुआ। उस हमने ना जाने कब मुझे फिर से मैं पर छोड़ दिया। अब ना तो मैं हूँ और ना ही हम। 

     एक अर्सा बीत गया बात और मुलाकात हुए। बात का तो याद नहीं लेकिन हमारी आखिरी मुलाकात 15 मार्च 2020 को हुई थी। उस दिन मुझे यह कतई अन्दाज नहीं था कि यह हमारी आखिरी भेंट है। काश! फिर मिल पाते उनसे एक बार अजनबी की तरह.......। 

     अजनबी होना कितना अच्छा होता है। स्मृतियों में जीना सुखद लगता है। समय का पता ही नहीं चलता।

कभी-कभी जिन्दगी में ऐसा मोड आता है कि व्यक्ति का पूरा व्यक्ति ही विलोम हो जाता है । हमेशा एकांत से दूर भागने वाला एकांत को अंगीकार कर लेता है, और एकांतवासी होकर उस आनंद को तलाश लेता है जो उसे दुनिया और दुनियादारी से कदापि नहीं मिल सकती।

अक्सर अकेले में घेर लेतीं हैं 

साथ बिताये क्षणों की स्मृतियाँ 

वह तुम्हारा सुवर्ण रक्तिम चेहरा

तुम्हारी मुख से आने वाली ध्वनि 

का वह संगीत जो भी मन में 

गुंजित होता रहता है। 

वो खुशबू और सुगंध 

जो हवाओं में घुल जाती थी 

तेरे वदन से छिटक कर । 

जब अकेले में होता हूँ -

जी लेता हूँ वो हर लम्हा 

जो गुजारे थे तेरे साथ 

रह रहकर मन में उभर आतीं  हैं 

तुम्हारी बातें - वो दिन 

काश! फिर लौट आते 

जैसे लौटते हैं 

ख्वाबों - ख्यालों में 

वैसे ही लौट आते 

हकीकत में 

काश!

(यायावर)

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