आत्मिक संबल : सारिका साहू

 आत्मिक संबल 
आज से मैंने अपने भीतर से 
उन सभी नकारात्मकता को  
बाहर कर दिया। 
"तुम सदा खुश रहा करो "!
इनके शब्दों ने 
मुझे आत्मिक संबल दिया और 
मुझे सम्भाल लिया। 
ऐसा कह सुनकर मुझमें
एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। 
उन शब्दों ने मेरे एकाकीपन को 
दूर बहुत दूर कर दिया। 
घुट घुट कर लड़ते- लड़ते
हमने जीने का अंदाज बदला। 
उसके इतना कहने भर से, कि
"शक्ति से भरी हो तुम"! 
मैंने खुद को बनते देखा ।।
उस मिथ्या आभास से बाहर 
हमने यथार्थ का सामना किया। 
और एक दुनिया थी -
मेरे सामने- ऊर्जावान और 
मेरे आत्मविश्वास से लबरेज! 
अब तक के अकेले सफ़र में 
मेरे डगमगाते, कांपते कदमों को 
उसने देखा 
और मुझे मुझ से मिलाया। 
 यह कहते हुऐ," डरकर नौका पार नहीं होती"! 
मेरा हौसला बढ़ते देखा।।
मेरी गति में कहीं ठहराव न आ जाए, 
मुझे अपनी ही परछाई के साथ देखा ।
मेरा हौसला बढ़ाया और
हम साथ हो गए 
सदा के लिए 
लीन होना है मुझे उसमें 
और उसे समेट लेना है 
अपनी आरज़ू में 
जो है वर्षों से अधूरी।।



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