अंतिम अभिहार: सारिका साहू
हमारी वो अंतिम अभिहार थी ।
दोनों के हृदय में कितनी मनुहार थी ।।
विरह की अकल्पनीय कठोर अंतिम वृष्टि थी।
अपने अनुभवों से भरी चमचमाती अद्भुत दृष्टि थी ।।
जब तक सफ़र में रहें ये कितनी सुंदर अभिव्यक्ति थी।
दोनों को ही परस्पर ,एक दूसरे के सानिध्य की आसक्ति थी।।
आपको वह अंतिम भेंट कहां सहजता से स्वीकार थी ।
हमारा मन में भी भयभित होती चित्कार थी।।
मुझे आश्वासन देती ,आपकी जिह्वा भी लड़खड़ाई थी।
अपना हृदय कठोर कर हमे दी ,अंतिम विदाई थी।।
परंतु डबडबाई आंखें वेदना अभिव्यक्त कर गई थी ।
हृदय भीतर उठती यह दावानल बुझा दी गई थी ।।
संस्कारों के नाम पर प्रणय गाथा की बलि दी गई थी ।
अपनी अन्तिम भेंट के साथ वह विरह बेला आई थी ।।
हमारी वो अंतिम अभिहार थी।
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