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मैं अब तक :सारिका साहू

मैं अब तक  उसके साथ की गई मुलाकातों में सोई हुई थी । महज़ एक मुलाकात में उसको जानने के ऊहापोह में खोई हुई थी।  क्या यह वही शख्स  था, जिसको  पाने की ज़िद की हुई थी । या महज़  दिल ने उस को ही हबीब मानने की ज़िद की हुई थी।। वो जाना है या अनजाना,ये कैसे पशोपेश में उलझ कर रह गई थी  कुछ जानकर कुछ अनजाने में ही धीरे धीरे सुलग कर रह गई थी। उसकी आंखों में मैंने,अपने लिए बेइंतहा मोहब्बत पाई थी।। दिल मेरा उफ़क में था, और मैं  तबाह-ओ-बर्बाद   हो गईं थी।

उपन्यास का अर्थ एवं कथा साहित्य का विकास

 उपन्यास का अर्थ एवं कथा साहित्य का विकास उपन्यास विशद् गद्य कथा है। यह कथा साधारण जीवन जैसी, पर प्रकृति में संवेदना एवं प्रभावकारिणी होती हैं इसके पात्र मनुष्य सरीखें होते हुए भी विलक्षण होते हैं। साधारण जीवन में वैविध्य व बिखराव है और कार्य-कारण सम्बन्ध अस्पष्ट सा होता है, उपन्यास में व्यक्त जीवन अनुभूत ओर विश्लेषित होता है। हर उपन्यासकार अपने निजी अनुभव को विस्तृत सामाजिक परिदृश्य देना चाहता है जहाँ निजी अनुभव को वह ऐतिहासिक सामाजिक परिस्थिति से जोड़ने की जरूरत होती है। मनुष्य जीवन जीता है अकेला नहीं दूसरों के साथ, कभी वह दूसरों के साथ सहयोग करता है और कभी असहयोग, कभी उसकी संगति समाज से वही बैठती है, और कभी मन से इन उलझनों से उसके जीवन में गतिरोध उत्पन्न होता है। गतिरोध को दूर करने के लिए उसे विशेष गतिशील होना पड़ता है। उपन्यास मुख्यतः जीवन के ऐसे पक्ष या ऐसे गतिमय जीवन को उभारता है, जो उपन्यास में जीवन के उलझनों को चुनौती और पत्रों के पुरूषार्थ को गति देता हैं। ऐसा जीवन ही उपन्यास में काल के आयाम में फैलकर कथा बनता है, और पात्रों का चरित्र उद्घाटित करता है। उपन्यास साधारण जीवन

सफर : सारिका साहू

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ऐसा रहा सफ़र, न कोई हमराह , न कोई  हमसफर । तन्हा ही रह गए, अकेलेपन को लगाकर गले।। अपनी खामियों से रूबरू हो, चल दिए हम। अब न रहे ,किसी से कोई शिकवे ,न कोई गिले।। सफ़र में चुन _चुन कर कांटे लोग  बिछाते  गए। मंजिल पाने के जुनून में हम सब नकारते चले।। कईं मुश्किलों भरा  पल पल सफ़र तय कर । हम हर मुश्किल से दो दो  हाथ करते चले ।। अपेक्षा न की, अपनों से ,न की परायों से। खुद अकेले ही ये सफर तय करते चले।। मंजिल को पास पाकर भी न भरा दम। आज फिर सफ़र में खुद से मिलते चले।।  साथ जो न मिला हमे किसी का। खुद अपनी बुनियाद हम रखते चले ।। तूफानों से लड़कर भी अडिग खड़े रहे। हर हार  को पार करके आगे बढ़ते चले ।।