प्रफुल्लित हृदय संग: सारिका नारायण


प्रफुल्लित हृदय संग आई जो पहली बारिश 

झम-झम बरस गई बूंदों की ख्वाहिश 

चमकती दामिनी ने गड़गड़ाहट बादलों की घोषणा की

तरल _तरल हो गई सुखी वसुंधरा की रंजिश 

विचलित मन और ये गरमी की तपिश 

निष्ठुर मौसम ने आखिरकार तोड़ी अपनी बंदिश 

अब तीव्र तपिश से झुलसा ह्रदय भी धुल गया 

जो रिमझिम फुहारों के साथ आई पहली बारिश 

हर धार से जलनिधि का संचय संभव होगा 

बादलों ने भी अब बंद की अपनी साज़िश, 

झूम झूम कर बादल बूंदे बरसा रहें हैं 

कैसे घटाओं से भी स्वत: छूट गई वो कशिश। 

Comments

  1. Thankyou so much to space mine write-up through your blog.

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