तेरे बूते का नही: प्रीति श्रीवास्तव

तेरे बूते का नही
तू इश्क समझे
मेरे दिल में है
मैं तो इश्क करूंगी तुमसे 
तेरे बूते का नही
तू खुशबू पहचाने
मेरे दिल मे है
बयार से पहचान लूं तूझे
तेरे बूते का नही
तू नजर मिलाए
मेरे दिल में हैं
मै अर्थी तक निहारूंगी तूझे
तेरे बूते का नही
तू याद भी रखे मुझे
मेरे दिल में है
जन्मों तक पुकारूंगी तूझे
तेरे बूते का नही
मैं कहीं भी रहूं तूझमे
मेरे दिल में है
बस तू ही तू रहे मुझमे
# बस यूं ही
प्रीति 
(फोटो फेसबुक गैलरी)
अकेले हो
या अकेलापन पसंद है तुम्हे
भीड़ ना सही 
हमें तो साथ लेलो
ना बोलेंगे 
ना टोकेंगे
बस साथ चलेंगे
मत कहना 
नही डरता मैं रास्तों से
अरे रास्ते डरतें हैं 
अकेले चलने वालों से
माना कि अंधेरों से
डरते नही तुम
पर जुगनुओं को राह दिखाने तो दो
कदमों के नीचे 
ना आ जाए कोई 
बस इतना साथ निभाने तो दो
इक ही राह के मुसाफिर
फिर क्यों चले अकेले
डर रहे हो तुम 
पास साथी ना कोई आवे
कहीं हिल ना जाएँ
होठ तेरे
खुल ना जाए
कोई भेद दिल का
चुप रह लेना ना मेरे साथी
बस साथ मुझको लेले
सब हाल मुझे पता है
तु बोलना ना मुख से
मैं मौन ही सुनुगी
तुम मौन ही सुनाना
बस साथ मुझको लेले
बस साथ मुझको लेले।
# बस यूं ही 
प्रीति 

Comments

  1. बहुत आभार आपका अमरेन्द्र जी आपका।🙏🙏

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व