कर्म, आस्था, एवं आध्यात्मिकता की अद्भूत गाथाः प्रहलाद एक महाकाव्य (डा. अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव & डा. तरु मिश्रा)
भारतीय सामाजिक जीवन में परम्परा से चली आ रही मान्यताओ का विशेष स्थान है। परम्परा और आधुनिकता का जितना सुन्दर संयोजन भारत में देखने को मिलता है उतना सुन्दर संयोजन अन्यत्र दुर्लभ है। सामाजिक जीवन में परम्परा के निर्वहन के साथ-साथ हमारे सांवकृतिक एवं साहित्यिक जीवन में भी हमारी परम्परागत मान्यताओं को स्थान मिलता है। प्राचीन काल से लेकर आज तक हमारे यहाँ जितना भी साहित्य रथा गया है, उनकी प्रेरणा कहीं न कहीं वेदो, पुराणों और रामायण एवं महाभारत से ही ली गयी है। ’प्रहलाद एक महाकाव्य’ शीर्षक भी विष्णु पुराण की एक कथा को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया है। देश को नई और दिशा की ओर ले जाने की दृष्टि पुराणों और पौराणिक ग्रन्थों का विशेष महत्व है। इसे रेखांकित करते हुए सच्चिदानन्द हीरानन्द वाताययन अज्ञेय के अपने निबन्ध ’पुराण और संस्कृति’ में लिखा है कि - “बिना पुराणों के अध्ययन के किसी भी देश के जीवन की सांस्कृतिक भित्ति तक नहीं पहुंचा जा सकता, और इसलिए उस जीवन के प्रति अपना दायित्व भी नहीं निभाया जा सकता। ग्रीक दार्शनिकों ने ग्रीक पुराणों का नया मूल्यांकन किया था तो वे प्रचलित धार्मिक रूढ़ियों की नैतिक, भौतिक अथवा ऐतिहासिक व्याख्या करने लगे थे। उन्होंने देखा था कि पुराणों द्वारा प्राचीनकाल के मनीषियों ने अंधकार वृत्त जनता को रूपको और संकेतो को सहारे शिक्षित करके एक सामाजिक सूत्र में बंधने का प्रारम्भिक प्रयत्न किया था।
पौराणिक आख्यानों के सन्दर्भ में उपरोक्त पंक्तियों से यह स्पष्ट है कि इन
कथाओं में जीवन जगत का सार संचित है। और उनको इस आख्यानों से हम आज भी बहुत कुछ
जान एवं सीख सकते है। आगे इसी निबन्ध में पुराणों के सन्दर्भ में अज्ञेय जी कहते
हैं कि- “ किसी भी देश के जीवन के गहनतम रहस्य तक पहुंचने के लिए उसका पुराण
साहित्य हो सबसे अच्छे कुंजी है, कि उसी में
समष्टिगत आदर्षों और जातिगत आकांक्षाओं में वे रूप स्वानचित्र मिल सकते हैं,
कि जिनका कि विभिन्न व्यक्ति अपनी-अपनी
रूचि.दीक्षा, योग्यता और संस्कारों के
आधार पर परिष्कार करते हैं। पुराण ही पहली सांस्कृतिक इकाई है जिसमें के जीवन
विभिन्न बहुरूपता प्रस्फुटित हुई है। “
वानविल के रवि ने उसी सांस्कृति की पहली इकाई को उपजीव्य बनाकर ही महाकाव्य का
सृजन किया है।
प्रहलाद: एक महाकाव्य की कथा लोक जीवन से लेकर पुराणों तक फैली है। और इसे
साहित्य के अत्यन्त प्राचीन काल से कहा एवं सुना जा रहा है। कहने और सुनने की
परम्परा में प्रत्येक कथा में कुछ नया जुड़ जाता है और कुछ पुराना छूट जाता है।
ग्रहलाद: एक महाकाव्य ’ हमें जीवन जगत के प्रति जागरूक करता तो है ही इसके साथ-साथ
कवि ने इसमें पाश्चात्य सन्दर्भों को जोड़कर इसे और भी जीवन्त एवं प्रासंगिक का बना
दिया है। भाव एवं भाषा की सहजता आपकी साहित्यिक लोकप्रियता का आधार है। वान विल के,
रवि ने पौराणिक एवं लोक जीवन की कथाओं को अपना
उपजीव्य बनाकर साहित्य सृजन किया है। योद्धा लड़की कुइली की गाया गीत और प्रहलाद के
महाकाव्य में आपने जिसक विषय वस्तु को प्रस्तुत किया है वह हमारे लोक जीवन में बड़े
विश्वास के साथ कहा एवं सुना जाता रहा है। लेकिन जिस तरह से हमारा लोक साहित्य और
लोक भाषाएं लुप्त हो रहीं है इस लिए लोक जीवन में प्रचलित इन गाथाओं को संजोना एक
समर्थ साहित्यकार और रचनाकार का मौलिक दायित्व है। और दायित्व का निर्वहन आपके
साहित्य में देखा जा सकता है।
प्रहलाद: एक महाकाव्य बारह खण्ड में विभक्त एक कथा है जिसका आरम्भ देवाधिदेव
महादेव शिव के पुत्र और विधनहर्ता गणेश की वन्दना से होता है। गणेश जी का आहवान
करते हुए कवि कहती है कि-
‘I pray to
land vigneswara
To bless
me with the inner light
And guide
une in my passion
To write
the divine history
of courage and pure devotion Mol, of a seer] Mon of a sage
But of a child- young in-
The first
revolt against&
Confinement in the genetic cage-
कवि विधानहर्ता से प्रार्थना करते हुए कहते है कि हे प्रभु हमें शक्ति और संबल
प्रदान करे जिससे मैं एक धार्मिक आख्यान को लिख सकूँ यह आख्यान किसी साधु या
सन्यासी का नहीं है यह एक बालक की कथा है जो कम उम्र में ही अपने परिवार में चल
रही गलत परम्परा का विरोध करता है।.
मंगलाचरण से ही भारतीय परम्परा मे किसी भी महाकाव्य का आरंभ होता है। प्रहलाद
एक महाकाव्य का आरंभ ही उसी महाकाव्य की परम्परा में देखने को मिलता है। आगे कवि
भारतीय भाषा परम्परा मे प्रचलित ओंकार के महत्व को बताते हुए लिखता हैः-
0m
is not a sound, hot a syllable either-
It’s
a pulse, a swell,] a throb;
An
Intense yearning to open up;
The
Seed of life’s longing for itself;
A
call to expand incessantly;
An
urge to break all the barriers,
Refusing
to be bound; – Yes,
om
is not a mere sound !
ओम और ओंकार की महत्ता भारतीय भाषा परम्परा में अनादि काल से चली आ रही है। यह
सिर्फ एक शब्द नही है वह ब्राह्मणीय ध्वनि है। जिससे हमारे आस-पास सकारात्मक ऊर्जा
का संचार होता है। गणेश से शक्ति के आह्वान के पश्चात् कवि ओम के महत्त्व को हमारे
और जीवन मे उसकी आवश्यकता को बताता है।
महाकाव्य के दूसरे खंड मे कवि महापुरुषों के बारे मे बताते हुए कहता है कि
महापुरुषों का जीवन सिर्फ एक कहानी या कल्पना नहीं है। वो हमारे लिए आदर्श उपस्थित
करते है। उनके संदर्भ मे लिखते हुए कवि की ने बताया है-
They are
not projections of a
single
human mind-
They
reflect the essence of History,
Of the
entire mankind,
Springing
from an ancient
Memory of
the society - they’re Stored,
expressed and distracted
To be discerned carefully5
काव्य के अगले खंड मे
पूर्वद्वीप्ति शैली (Flash back style) मे कवि कथा की पृष्ठभूमि बताते हुए लिखता है कि-
‘Jaya and
Vijaya’ are the two
Guards
with loyal devotion
To their
Master Lord Vishnu,
Always in
attention!
Once there
came four little boys
Who were
denied permission
By the two
loyal guards, thus
causing
some commotion.
जय और विजय ब्रह्म के पुत्रों के अभिशाप से राक्षस कुल मे जन्म लेते है।
विष्णु पुराण की कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप मे दोनों भाई का
जन्म होता है। वाराह रूप मे अवतार लेकर विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध किया और नरसिंह
अवतार में हिरण्यकशिपु का महाकाव्य के अगले भाग मे कवि ने पृथ्वी और ब्राह्मण के
रहस्यों के बारे मे बताया है। ऐसी बात प्रचलित है कि पृथ्वी की उम्र तीन हजार या
उससे पहले की है। और पूरे ब्रहमाण्ड में बहुत से ऐसे रहस्य है। जिन्हें अभी भी
जाना था समझा नही जा सका है। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जय और ’विजय का
जन्म होता है और वह अपनी पिछली बाते ’भूलकर विष्णु से दुश्मनी लेते है’। और
हिरण्याक्ष पृथ्वी को में समुद्र छिपा देता है। उसे भगवान जब वाराह अवतार मे खत्म
करते हैं उसका बहुत ही भव्य वर्णन कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों मे किया है –
After a
Battle
that lasted.
Thousands
of years.
From the
Depth of
the Galactic
Space, the
Ocean - He
Brought
out the earth with compassion!
Avesiting
A cosmic
disaster
As the
real Master
His
victory was thundering
‘Hail Lord
Vishnu & om
Namo
Narayana’-
The Angels
were all singing. 8
’ओम नमो नारायणाय’ भारतीय जीवन पद्धति का अभिन्न अंग है क्या के विस्तार मे
रचनाकार, रामायण और महाभारत के राम,
रावण, कृष्ण एवं कंस के प्रसंग को भी संर्दभित कर कथा को व्यापक आधार प्रदान करता
है।
यह मानव जीवन की विडंबना ही है कि हम अपने अतीत को भूलकर नियति के कठोर जाल मे
फँस जाते है-
is a real
irony that
Not &
believers too & are
Characters
in His drama & like
Kansa to lord
Krishna- and
Ravana to
Rama 13
&
He is
their handler, they act
Unaware of
this
The
intrigue continues but the hidden
Truth we
should never miss!
य के माध्यम से कवि ने हमारी नियति के कठोर चक्र को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया
है। इस महाकाव्य के सृजन में भारतीय परम्परा का निर्वहन देखने को मिलता है।
पूर्वा-पर संबंध के निर्वहन के साथ-साथ कथानक विडम्बना का प्रयोजन भी इसमें देखने
को मिलता है। प्रहलाद की पूरी कथा का वर्णन समग्र रूप के करने की परम्परा के कारण
ही कवि ने जय-विजय के कथा सूत्र को जोड़ा है और यह भी बताया है कि हमारे जीवन में
कर्म और प्रारब्ध की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में
किसी की घटना को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा एवं समझा जाता है। हमारे जीवन
में घटित होने वाली सभी घटनाओं के पीछे एक निश्चित कारण होता है।
’हिरण्यकशिपु“ के
राक्षस कुल में जन्म लेने और उसके मन में विश्णु के प्रति बैर भाव अकारण नहीं है।
यह सब उसे शाप से मुक्ति में विष्णु के प्रति बैर भाव का मार्ग है जिसे उसके पूर्व
जन्म में ब्रहमा के मानस पुत्रों ने दिया था। ऐसे बालक का जन्म होना जो अलौकिक हिरण्यकशिपु
के कुल भे शक्ति से परिपूर्ण है। उसके तेज और आध्यात्मिक समर्पण के कारण उसका पिता
दण्ड पर दण्ड देता है लेकिन उस बालक का कुछ भी नहीं होता है इसका बहुत ही सुन्दर
वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि -होती है। यहाँ पर कविन इसका बहुत लिखा है कि-
“The whip can tear the skin but not the spirit inside was proved.”
हमारे
अन्दर के भाव को कुछ भी नष्ट नहीं कर सकता बाह्य जगत की समस्याएँ हमारा कुछ भी
बिगाड़ नहीं सकतीं। दिन-प्रतिदिन प्रहलाद के पिता का अत्याचार बढ़ता जा रहा था और यह
अकारण नहीं था जैसे-जैसे हिरण्यकशिपु का अत्याचार बढ़ रहा था वैसे-वैसे प्रहलाद की
भक्ति भी बढ़ती जा रही थी। यहां कवि इस महाकाव्य के माध्यम से धर्म के आधार पर हो
रही हिंसा का विरोध किया है और लिखा है कि-
“violence
has no religion
Religion
can be violent
Mone Can
Justify terror and
claim he
is god - Sent
Everyone
made by god-so
None can
kill another.”
समर्थ रचनाकार पैराणिक
आख्यानों का भी अपने युग के अनुसार पुनर्नवित करके प्रस्तुत करता है। धार्मिक
हिंसा,
मिथ्या आचरण मिथ्या
अहंकार और भौतिक संसाधनों में लिप्त लोगों को कवि इस काव्यगाथा के माध्यम से बहुत
ही सशक्त सन्देश दिया है। कवि ने ईगो के सन्दर्भ में बहुत ही सुन्दर एवं तर्क
पूर्ण बात कहा है। और बताया है अहंकार से व्यक्ति को साधारण - से- साधारण सत्य भी
नहीं दिखाई पड़ता।
Ego is
wall that blocks
Even the
simplest truth-
Creates
illusions] nurtures fear-the
Fear of
one’s own death.
The fear
which makes one forget that
Death and
birth are twins & with a
leg on
this, the other on that,
Life constantly
spins-
इस
तरह अहंकार से ग्रस्त हिरण्यकशिपु भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करता है। और
अपने पुत्र को मारने का प्रयास करता है लेकिन अन्ततः वह प्रहलाद का खुद को असमर्थ
पाता है। और इस महाकाव्य के वह महत्वपूर्ण पल आ ही जाता है जब विष्णु नरसिंह अवतार
में प्रकट होतें हैं-
Jumped
Frome within, what was that?
A man? A
Lion? No neither
…The lion
placed the
Speechless
king on it lap-with
claws it this
torso -blood
Splashed
and stained the floor and walls
इस तरह विष्णु अपने भक्त
प्रहलाद की रक्षा करते हैं और हिरण्यकशिपु को भी मुक्त करते हैं। वानविल के रवि
आध्यात्मिक चेतना से सम्पन्न कर रचनाकार है। विश्वास और कर्म में विश्वास रखने की
परम्परा का निर्वहन आपके कृतित्व एवं व्यक्ति का अभिन्न अंग है है, सब शास्त्र और लोक का समन्वय आपकी शक्ति और इस
महाकाव्य में भी इसका निर्वहन देखने को मिलता है। सहजता इस महाकाव्य के माध्यम से
आपने कर्म के फल के दैवीय और ब्रह्माण्डीय नियम पर जोर देते हुए लिखा है कि-
In the web
of cosmic events
Everything
is connected-
The chain
of causes, the law of Karma
if
correctly interpreted
One may
see the gardener of the
Cosmic
Internet & the
One who
can is the sear -like
Naradha,
the adept.
आस्था,आध्यात्मिकता और कर्मफल को अद्भूत सामंजस्य इस महाकाव्य में देखने को
मिलता है। वानविल को रवि ने एक पैराणिक आख्यान को आधार बनाकर लिख गये. इस महाकाव्य
माध्यम से लोगों अहंकार रहित होकर अपने कर्मों को सात्विक मन से करने का सन्देश
दिया है। भाव एवं भाषा की काव्यात्मकता सहज ही मन को आकर्षित करती है। यह महाकाव्य
आज के उत्तर आधुनिक समय में भी हमें अर्थपूर्ण सन्देश देता है। हमें इसके साथ-साथ
हमें हमारे पौराणिक ग्रन्थों से भी बहुत कुछ सीखने एवं समझने की प्रेरणा प्रदान
करता है। प्रहलाद की पौराणिक कथा को कवि ने युगानुरूप प्रस्तुत किया है। हम आज भी
अपनी परम्परा के प्रचलित मानदण्डों से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
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