मेरी संवेदना

कुछ कहा करो 
कुछ सुना करो 
कहने सुनने से 
दु:ख कम हो जाते हैं
कभी-कभी किसी को 
सिर्फ सुन लेना 
हो सकता है कोई 
मुरझाया शख्स 
मुस्कुरा दे और 
कभी-कभी कह देने मात्र से 
मन हल्का महसूस करता है। 
इसलिए कुछ कहना
और सुनना जरुरी है 
और हाँ! 
बहुत आसान है 
कहना-सुनना
कहने-सुनने से ही 
बनतीं हैं बातें और
चलती है दुनिया। 
(अमरेन्द्र)

याद है मुझे अब भी 
वो सर्दियों की बरिश 
चाय की चुस्कियां
तेरे नर्म हाथों की
आलू के पराठे, 
और गर्मियों की लू 
वो रिक्शे की सवारी 
वो तेरी जुल्फों का लहराकर 
मेरे मन को बहकाना 
वो तेरी खुशबू का 
मेरे सांसों में उतरना । 
याद है मुझे अब भी , 
वो आखिरी बार मिलना 
चाय से शुरू हुई मोहब्बत का 
स्वीटकार्न सूप पर खत्म होना। 
ना जाने कितनी  याद होंगी तुम्हें-
उन लम्हों की बातें और बहुत सी बातें। 
वो एक कहानी -
जो अधूरी खत्म हो कर भी 
एहसासों जिन्दा है।
(अमरेन्द्र)
कुछ एहसास लिखने हैं मुझे
लेकिन जब भी लिखना चाहा- 
अक्सर शब्द उस एहसास को 
लिखने से मुकर गए । 
और वो एहसास लिखे ही नहीं 
जा सके -
और ना ही कहे जा सके। 
क्या ऐसे एहसास 
रह जायेंगे हमारे भीतर /
और उन एहसासों से भरकर 
हम खाली होते रहेंगे। 
या कोई ऐसा भी होगा 
जो एहसासों को 
महसूस कर सकेगा /
हूबहू वैसे ही 
जैसा मैं लिखना चाहता हूँ/
या जैसा मैं जीना चाहता हूँ। 
काश! कोई होता 
जो समझ सकता 
वो सब कुछ जो 
ना कभी कहा गया 
और ना ही कभी लिखा गया।
(अमरेन्द्र)

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