निराला के काव्य में व्यंग्य
'निराला' काव्य में छायावादी चेतना की शुभता और सूक्ष्मता से हटकर प्रगतिशील चेतना का यथार्थवादी रंग भी उपलब्ध है। इसी रंग में वे कभी व्यंग्य से और कभी विनोद से भी काम लेते रहे हैं। उनके व्यंग्य भाव में सामाजिक विषमता के प्रति विद्रोह भी प्रतिध्वनित है और मानव जाति के प्रति व्यापक सहानुभूति भी। "कुकुरमुत्ता" और "नए पत्ते" व्यंग्य और विनोद की प्रवृत्तियों को उजागर करती है। यों यह प्रवृत्ति उनके काव्य में आकस्मिक नहीं है, इसका आभास हमें “अनामिका” और "परिमल की कविताओं से होने लगता है। "अनामिका" की "उक्ति", "दान" और "वनवेला" कविताएँ इसका प्रमाण हैं। उनके परवर्ती काव्य में व्यंग्य का स्वर तोखा और मर्मभेदी है। उनके व्यंग्य का आधार सामाजिक वैषम्य, निर्धनों का शोषण एवं उत्पीड़न तो है ही, साथ ही राजनीतिज्ञों और साहित्यकारों तक को उन्होंने अपने व्यंग्य का निशाना बनाया है। "मानव जहाँ बैल, घोड़ा, कैसा तन मन का जोड़ा" जैसी पंक्तियों में न केवल वैषम्य पर बल है, अपितु भौतिकता से उपजी विकृतियों की ओर स्पष्ट संकेत भी है। “अनामिका" की "दान" शीर्षक कविता में तेल- फुलेल पर पानी-सा पैसा बहाने वाले अमीरों, ढोंगी और पाखण्डी मनुष्यों की हीनता तथा दम्भी प्रकृति पर तीखा व्यंग्य किया गया है। 'मानव भूख से पीड़ित है, पर विप्रवर की दया-दृष्टि उसे नहीं मिल पाती है। वह तो वानरों को मालपुए खिलाते रहते हैं।'
इसी प्रकार खण्डहर के प्रति", "मित्र के प्रति और आदि ने भी मानव का हृदय विदारक और घृणास्पद रूप उसका है। करुणा के कुन्दन से चमकती सरोज और पर किया गया है। "बनवेला" में राष्ट्रीय गीत बेचने वालों और गर्द करने वाले व्यक्तियों पर प्रहार किया गया है। इस ★ "रानी और कानी", "गर्म पकोड़ी", और "प्रेम संगीत" व "डिप्टोसाह आये" आदि कविताओं का व्यग्य भी नश्तर चुभाने वाला है। इन सभी रचनाओं में सबसे अधिक तीखा व्याय "कुकरमुता" में है। धनी-मानी लोगों के प्रतीक बने हुए गुलाब के माध्यम ने जो व्याय किया है, वह व्यक्ति को भीतर तक हिला डालता है। देखिये
भूल मत जो पाई खुशबू रंगो आव
खून चूसाखाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा है तू कैपिटलिस्ट
सर्वहारा वर्ग को अत्यधिक प्रचारवादी वृद्धि और डोगी पूँजीवादी संस्कृति दोनों पर देखे व्याय संस्कृति—दोनों "कुकुरमुता" में देखे जा सकते हैं। वास्तव में निराला ने उन सभी को व्यंग्य का निशाना बनाया है जो तत्कालीन साहित्य और समाज में विकृतियों के रूप में फैल रहे थे तथा जिनमें तथ्य कम दोग अधिक था, असलियत कम और दिखावा और प्रचारात्मकता अधिक थी। 'निराला' के काव्य में प्रयुक्त व्यंग्य का समग्रतः अध्ययन करने के पश्चात् कतिपय ठोस निष्कर्ष सामने आते हैं जो इस प्रकार है:-
(1) 'निराला' के व्यंग्य-प्रयोग सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक अनुभवसत्यों पर आधारित है। उनका व्यंग्य गम्भीर, मार्मिक और तीक्ष्ण रहा है। हो, कहीं-कहीं उसमें हास्य और विनोद का पुट भी आ गया है, पर आक्रोश एवं पूणा उनके व्यंग्यों का प्राण-तत्त्व है।
(2) कुकुरमुत्ता" एवं "नये पत्ते" में व्यंग्य पर्याप्त व्यापक भूमिका पर दिखाई देता है। इनमें समाज का शोषण करने वाले सामन्तों, जमींदारों, साहूकारों, राजनीति एवं साहित्यिकों पर तीखे प्रहार किये गए हैं। इन कृतियों में मुखौटेबाज राजनीतिज्ञों, रूढ़िवादी योगियों और मानवता के विरोधी उच्चवर्गीय व्यक्तियों को अच्छी खबर ली गई है।
(3) निराला के व्यंग्य कहीं-कहीं वैयक्तिक भी लगते हैं ,किन्तु निराला का उद्देश्य सदैव सर्वजनहिताय ही रहा है । वास्तव में व्यंग्य- प्रयोग की दृष्टि से निराला क्रांतिद्रष्टा कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं ।
Nice
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