मातृभाषा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: एक अध्ययन-प्रो. सतीश कुमार पांडेय, डीन , शिक्षा संकाय, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास
भारत एक विशाल देश है ,यहाँ
की विविधता में एकता देखते ही बनती है । भाषा ,संस्कृति और जीवन
पद्धति में भिन्नता के बाद भी हमारी राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय चेतना हमें विशिष्ट
बनाती है । इस चेतना के संवहन में हमारी मातृभाषा का
विशेष महत्व होता है । मातृभाषा हमारे व्यक्तित्व के विकास की प्रथम सोपान है,
जिसके द्वारा हम अपने विचारो को लोगों तक पहुचने में समर्थ होते हैं और हमारे
मौलिक चिन्तन की प्रक्रिया के विकास में मददगार होती है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति
2020 के माध्यम से भारतीय भाषाओँ को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करने पर
जोर दिया गया है । मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा का शिक्षा माध्यम के रूप में प्रयोग
कर हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को एक नए आयाम तक पहुचने में समर्थ होंगे ।
शिक्षा व्यक्ति के जन्म से
लेकर मृत्यु तक चलने वाली एक सतत प्रक्रिया है । अपने जीवन कल में हम जो कुछ
भी सिखाते हैं उसे हम दो भागों में बटकर देख सकते हैं । औपचारिक और
अनौपचारिक । अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से हम अपने आस-पास के परिवेश, भाषा ,समाज
, एवं सांस्कृतिक विरासतों के अध्ययन अनायास ही करते हैं । जन्म से लेकर
ज्ञानार्जन की जो प्रक्रिया आरम्भ होती है ,उसमें सबसे पहले भाषा और संस्कार को ही
हम सिखाते हैं ,उसमें हमारे विचार और चिन्तन क्षमता के विस्तार की अभूतपूर्व
क्षमता होती है । जिसे मातृभाषा कहा जाता है ,मातृभाषा हमारे व्यक्तित्व का
मूलाधार है । शिक्षा और भाषा का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है । इन दोनों के सामंजस्य
से ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है ।
शिक्षा और भाषा के
सन्दर्भ में यह बात ध्यान देने की है कि सामान्यतः व्यक्ति अपने जीवन काल में
कितनी भाषाएँ सीख सकता है । शिक्षा के माध्यम की भाषा और भाषा सीखने- सिखाने की
प्रक्रिया को सामान्यतः एक मान लिया जाता है , दोनों का अंतर जानना और समझना जरुरी
है । शिक्षा की सतत चलने वाली प्रक्रिया में भाषा निरंतर हमारे व्यक्तित्व को
विकसित और परिवर्तित एवं परिवर्धित करती चलती है । औपचारिक प्रक्रिया के अतिरिक्त
हम भाषा ,संस्कार ,सभ्यता और संस्कृति से जुडी जानकारी का निरंतर बोध होना भी
शिक्षा का अभिन्न अंग है ,जिसे हम अनुकरण एवं समाजबोध के साथ-साथ अर्जित करते हैं, और यह
जाने-अन-जाने ही हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन जाता है । इसमें हमारी
मातृभाषा का विशेष महत्व होता है ,मातृभाषा के माध्यम से ही हम अपने आस-पास के
परिवेश से बहुत कुछ सीखते हैं ।
भारतीय परम्परा में
औपचारिक के साथ-साथ अनौपचारिक शिक्षा का समानांतर महत्व है , जिसे हम लोक के
प्रांगण में सीखते हैं । मातृभाषा द्वारा हम लोक जीवन में फैले बहुत से तथ्यों से
अवगत होते हैं । लोक भाषाओँ द्वारा ही हम लोक में प्रचलित अनगिनत रीती-रिवाजों के
संक्षरण की दिशा में हम अग्रसर होते हैं । ये लोक-व्यवहार हमारे जीवन का अधर होता
है ,जिसके माध्यम से हम बहुत कुछ अनायास ही जान एवं समझ जाते हैं । इस दृष्टि से
मातृभाषा या मातृबोली का विशेष महत्व है ,हमारे सामाजिक परम्परा में बहुत सी ऐसी
चीजें हैं जो सिर्फ इन्हीं लोक भाषाओँ में अनौपचारिक से मौजूद हैं । इस सभी का
संक्षरण इन भाषाओँ के माध्यम से ही किया जा सकता है । आज के समय में भाषाबोध का
भाव लोगों में नहीं है ,और भाषाओँ के लेकर लोगों में बहुत सी कुण्ठायें हैं । लोग
लोक भाषा का व्यवहार करने में संकोच करते हैं ,और भाषा विशेष बोलने में गर्व का
अनुभव करते हैं । ये भाषा और हमारे व्यक्तित्व दोनों दृष्टि से ठीक नहीं है, ये
बोध ही हमारी भाषाओँ के लिए खतरा बना हुआ है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषा को लेकर जो प्रावधान
किये गये हैं ,वह निश्चय ही भारतीय भाषाओँ के संजीवनी साबित होंगे ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शिक्षा को भारतीय
परिप्रेक्ष्य में देखने और समझने की कोशिश की गई है, और भारतीय भाषाओँ को विशेष
महत्व दिया गया है । नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम
मातृभाषा ही हो इस पर बात की गई है ।नई शिक्षा नीति में भाषा सम्बन्धी प्रावधानों को
समझाने से पहले आइये हम देखते हैं मातृभाषा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है । मातृभाषा के सन्दर्भ में एक सर्वाधिक
महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जितना अधिक समग्र लेखन और चिन्तन मातृभाषा में हो सकता है , उतना किसी अन्य भाषा नहीं । दुनिया में आज भारत की पहचान
भारतीय भाषा संस्कृत में लिखित वेद, पुराण , उपनिषद , ब्रह्मसूत्र , योगसूत्र,
रामायण , महाभारत और नाट्यशास्त्र आदि से है , जो मौलिक रचनाएँ हैं । समाज की रचनात्मकता और मौलिकता
उसकी अपनी भाषा से जुडी होती है ।
मातृभाषा के सन्दर्भ में एक तथ्य यह भी है कि यदि हम अपनी मातृभाषा के साथ उपेक्षा का भाव नहीं रखेंगे और मातृभाषा का प्रयोग करेंगे तो मातृभाषा के साथ-साथ समाज की अन्य भाषाएँ भी सीख सकेंगे । विदेशों में रहने वाले बच्चों जो अपने घर-परिवार वालों के साथ मातृभाषा में बात करते हैं ,वह ज्यादा बुद्धिमान होते हैं । एक अध्ययन में यह बात प्रमाणित भी हुई है । ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ता ने अपने शोध में पाया कि- “जो बच्चे स्कूल में अलग भाषा बोलते हैं और परिवार में अलग भाषा का व्यवहार करते हैं ,वे बच्चे बुद्धिमता जाँच में उन बच्चों के मुकाबले अच्छे अंक लाये जो सिर्फ गैर मातृभाषा जानते हैं । इस अध्ययन में ब्रिटेन में रहने वाले तुर्की के सात से ग्यारह साल के लगभग दो हजार (2000) बच्चों को शामिल किया गया । इस आईक्यू जाँच में दो भाषा बोलने वाले बच्चों के साथ मुकाबला ऐसे बच्चों के साथ किया गया जो सिर्फ अंग्रेजी बोलते हैं।”
उपरोक्त शोध का निष्कर्ष यह बताता है कि मातृभाषा का
ज्ञान हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए कितना आवश्यक है । यहाँ हम कुछ भारतीय महापुरुषों के
मातृभाषा सम्बन्धी विचारों का विविचन करेंगे । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का
मातृभाषा के सम्बन्ध में कथन है –“ बच्चों के मानसिक
विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही आवश्यक है, जितना शारीरिक विकास के लिए माँ का दूध।” इस कथन से मातृभाषा और
हमारे मन के संबंधों का बोध होता है ।
इसी तरह प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के राष्ट्रपति
रहे डॉ. अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कहा है कि- “मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित
और विज्ञान की शिक्षा अपनी मातृभाषा में प्राप्त की”(धरमपेठ कॉलेज, नागपुर के व्यख्यान में ) ।”मातृभाषा में अध्ययन के माध्यम से हमारा मानसिक विकास
अपेक्षाकृत तीव्र गति से होता है ।
मातृभाषा माध्यम में अध्ययन-अध्यापन के वैश्विक सन्दर्भों पर यदि हम दृष्टिपात करें तो यह देखने को मिलता है कि जिन देशों में वहां के जनसामान्य की ही वहां की शिक्षा एवं शासन-प्रशासन की भाषा है वह राष्ट्र आर्थिक और बैद्धिक दृष्टि से संपन्न और समृद्ध हैं । जैसे- अमेरिका ,रशिया, चीन, जापान, कोरिया, इंग्लैंड, फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, इजरायल इत्यादि । भारतीय शिक्षा व्यस्था में अब तक भारतीय भाषाओँ को वह स्थान नहीं मिला ,जो स्वाधीनता आन्दोलन के समय दिया गया था । मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हमारे अस्तित्व, अस्मिता और संस्कृति का आधार है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषाओँ को लेकर भारतीय दृष्टि से विचार किया गया है , इस शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मातृभाषा पर जो देने के साथ ही साथ बहुभाषिकता पर भी विशेष जोर दिया गया है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के भाग एक – स्कूल शिक्षा में स्थानीय भाषाओँ और मातृभाषा पर विशेष रूप से विचार किया गया है । बहुभाषावाद और भाषिक शक्ति पर विचार करते हुए यह पाया गया कि बहुत सी भाषाएँ जानना हमारे मानसिक स्वास्थ के लिए बहुत ही कारगर है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस पर विचार किया गया है कि – “छोटे बच्चे अपनी घर की भाषा /मातृभाषा में सार्थक अवधारणाओं को अधिक तेजी से सीखते हैं और समझ लेते हैं । घर की भाषा आमतौर पर मातृभाषा या स्थानीय समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है । हालाँकि कई बार बहुभाषी परिवारों में , परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बोली जाने वाली एक घरेलू भाषा हो सकती है , जो कभी मातृभाषा या स्थानीय भाषा से भिन्न हो सकती है । जहाँ तक संभव हो, कम से कम ग्रेड 5 तक लेकिन बेहतर यह होगा कि यह ग्रेड 8 और उससे आगे तक भी हो, शिक्षा का माध्यम घर की भाषा /मातृभाषा /स्थानीय भाषा /क्षेत्रीय भाषा होगी । इसके बाद घर /स्थानीय भाषा को जहाँ भी संभव हो भाषा के रूप में पढाया जाता रहेगा । सार्वजानिक और निजी दोनों तरह के स्कूल इसका अनुपालन करेंगे।”
राष्ट्रीय शिक्षा
नीति 2020 में इस पर भी विचार किया गया है कि यदि स्थानीय भाषा /मातृभाषा /घर की
भाषा /क्षेत्रीय भाषा में पाठ्य सामग्री उपलब्ध नहीं होंगीं उन्हें उपलब्ध कराया
जायेगा । इसके साथ ही साथ शिक्षक और छात्रों में बेहतर संवाद का वातावरण तैयार
किया जायेगा । द्विभाषी शिक्षण-अधिगम सामग्री सहित द्विभाषी एप्रोच का उपयोग कर
छात्रों में बहुभाषिकता को प्रोत्साहित किया
जायेगा ।
जैसा कि अनुसंधान स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि बच्चे 2 और 8 वर्ष की आयु के बीच बहुत जल्दी भाषा सीखते हैं और बहुभाषिकता से इस उम्र के विद्यार्थियों को बहुत संज्ञानात्मक लाभ होता है, फाउंडेशन स्टेज की शुरुआत और इसके बाद से ही बच्चों को विभिन्न भाषाओँ में (लेकिन मातृभाषा पर विशेष जोर देने के साथ ) एक्स्पोजर दिए जायेंगे । सभी भाषाओँ को एक मनोरंजक और संवादात्मक शैली में पढाया जाएगा, जिसमें बहुत सारी संवादात्मक बातचीत होगी ,और शुरूआती वर्षों में पढ़ने और बाद में मातृभाषा में लिखने के साथ ग्रेड 3 और आगे की कक्षाओं में अन्य भाषाओँ में पढ़ने और लिखने के लिए कौशल विकसित किये जायेंगे ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषा को लेकर लागु त्रिभाषा फार्मूला को जैसे
का तैसे स्वीकार किया गया है । और यह भी प्रावधान किया गया है कि आठवीं अनुसूची
में वर्णित भाषाओँ के शिक्षकों की बड़ी संख्या में भर्ती की जाएगी । राज्य, विशेष
रूप से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के राज्य अपने-अपने राज्यों में त्रिभाषा
फार्मूले को अपनाने के लिए और साथ ही साथ देश भर में भारतीय भाषाओँ के अध्ययन को प्रोत्साहित
करने के लिए आपस में द्वि-पक्षीय समझौते कर सकते हैं । निश्चय ही राष्ट्रीय शिक्षा
नीति 2020 ने बहुभाषावाद के महत्व को समझते हुए एक भारतीय परिप्रेक्ष्य में भाषा
शिक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए उसके प्रयोग का रोड मैप तैयार किया है ।
भारतीय भाषाओँ के साथ ही साथ कलाओं और संस्कृति के संवर्धन की दिशा में भी यह शिक्षा नीति सार्थक और महत्वपूर्ण है । भाषाएँ दुनिया को भिन्न तरीके से जोड़तीं हैं ,इसलिए बहुभाषिकता का विकास बहुत सी दूरियों को कम करने की दिशा में कारगर होगा , अनुभवों को साझा करना और दूसरों के विचारों को समझना राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत ही आवश्यक है । भाषा के माध्यम से विभिन्न प्रकार के बहुआयामी सम्बन्ध विकसित होंगे । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में यह भी चिन्हित किया गया की विगत 50वर्षों में हमने 220 भाषाओँ को खो दिया है यूनेस्को ने 197 भाषाओँ को लुप्तप्राय घोषित किया है। विभिन्न भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर हैं ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भारत सरकार
ने भारतीय भाषाओं और शास्त्रीय भाषाओँ को संजीवनी प्रदान की है । इससे राष्ट्रीय एकता का ताना-बाना
मजबूत होगा और हमारे मौलिक चिन्तन क्षमता का भी विकास होगा । राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पूर्णतः
लागू होने से शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित परिवर्तन होंगे ,जिससे भारत को एक
नयी पहचान मिलेगी –
1.
मातृभाषा /क्षेत्रीय
भाषा /स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन मिलेगा ।
2.
बहुभाषावाद का विकास
होगा ।
3.
मौलिक चिन्तन क्षमता के
विकास के साथ-साथ शिक्षाण और अधिगम के नये आयाम स्थापित होंगे ।
4.
भारतीय भाषाओँ का
संक्षरण होगा ।
5.
बच्चों के शिक्षण अधिगम
की प्रक्रिया सुगम होगी ।
6.
विभिन्न भारतीय भाषाओँ
में सामंजस्य स्थापित होगा ।
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