गुण्डा –कहानी: एक अभिनव संवेदना डा0 वीना सिंह (असिस्टेंट प्रोफेसर) महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धुषण ,गोरखपुर
(चित्र साभार-गूगल )
हिन्दी
साहित्य के इतिहास में जयशंकर प्रसाद एक ऐसे विशिष्ट रचनाकार के रूप में जाने जाते
हैं, कविता, नाटक,
उपन्यास, कहानी और निबन्ध लेखन के साथ –साथ सम्पादन का कार्य किया। जयशंकर प्रसाद और प्रेमचन्द्र समकालीन लेखक थे।
प्रेमचन्द्र युग में ही प्रसाद भी कहानियाँ लिख रहे थे लेकिन कहानी लेखक के रूप में जयशंकर प्रसाद जी की प्रकृति प्रेमचन्द से बिल्कुल भिन्न है। जहाँ प्रेमचन्द का रूझान जीवन के चारों ओर फैले यथार्थ में था, वहीं प्रसाद जी रूमानी स्वभाव के थे। उनकी कहानियों में जीवन के सामान्य यथार्थ को कम और स्वर्णिम अतीत के गौरव, भावुकता, कल्पना की ऊॅंची उड़ान तथा काव्यात्मक चित्रण का अधिक महत्व मिला है। शायद इसका प्रमुख करण उनका कवि हृदय होना भी है। आपकी इन
विशेषताओ को रेखांकन करते हुए डा0 नागेन्द्र लिखते हैं कि “उनकी कुछ कहानियां तो आधुनिक कहानी की तुलना में संस्कृत गद्य काव्य के निकट हैं। .................यद्यपि प्रसाद की कहानियों में प्रेम और करूणा का, त्याग और बलिदान का दार्शनिकता और चित्रात्मकता का प्राधान्य है’’
जयशंकर प्रसाद जीवन के विविध रंगों के कुशल चितेरे के रूप में माने जाते हैं। निबन्ध, नाटक उपन्यास के साथ-साथ आपकी कहानियों में समाज का विविध और बहुआयामी रूप देखने को मिलता है। आपकी प्रमुख कहानियॉं हैं - इन्द्रजाल, करूणा की विजय, कला, पुरस्कार, रसिया बालम, मधुआ, आकाशदीप, आंधी, संदेह, हिमालाय का पथिक, विराम चिन्ह, गुंडा गुलाम इत्यादि। नाटक और कविताओं के साथ-साथ आपकी कहानियाँ भी अधिक मर्मस्पर्शी और भावप्रवण हैं। आपकी प्रमुख कहानियों में ‘गुण्डा’ कहानी बहुत ही लोकप्रिय और संवेदनशील हैं।
‘गुण्डा’ कहानी नन्हकू सिंह के व्यक्तित्व पर आधारित कहानी है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका हृदय कुसुमादपि कोमल भी है और ब्रजादपि कठोर भी है। सहजता नन्हकू सिंह के व्यक्तित्व की अन्यनतम विशेषता है।
कहानी के आरम्भ में नन्हकू सिंह के दृढ़ व्यक्तित्व से पाठकों का परिचय होता है। नन्हकू सिंह के संन्दर्भ में प्रसाद जी लिखते हैं- वह पचास वर्ष से उपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था। चमड़े पर झुर्रियां तक नहीं पड़ी थी। वर्षा की झड़ी में पूस की रातों की छाया में कड़कती हुई जेठ की धूप में, नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था।..........नन्हकू सिंह निडर, निर्भय भाव से चौड़ीधार का गंड़ासा लिए हुए नंगे बदन काशी की सडकों पर घूमने वाला गुण्डा था।
वह पचास वर्ष से ऊपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था। चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं। वर्षा की झड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कड़कती हुई जेठ की धूप में, नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था। उसकी चढ़ी मूँछें बिच्छू के डंक की तरह, देखनेवालों की आँखों में चुभती थीं। उसका साँवला रंग, साँप की तरह चिकना और चमकीला था। उसकी नागपुरी धोती का लाल रेशमी किनारा दूर से ही ध्यान आकर्षित करता। कमर में बनारसी सेल्हे का फेंटा, जिसमें सीप की मूठ का बिछुआ खुँसा रहता था। उसके घुँघराले बालों पर सुनहले पल्ले के साफे का छोर उसकी चौड़ी पीठ पर फैला रहता। ऊँचे कन्धे पर टिका हुआ चौड़ी धार का गँड़ासा, यह भी उसकी धज! पंजों के बल जब वह चलता, तो उसकी नसें चटाचट बोलती थीं। वह गुंडा था।
इस कहानी की कथा वाराणासी के परिवेश पर आधारित है। ईसा की अठारहवीं शती के अन्तिम भाग में काशी में धार्मिक अनाचार भयंकर रूप धारण कर रहा था। न्याय ओर बुद्धिबल को शस्त्रबल के समक्ष परास्त होते देख एक नवीन समप्रदाय (वर्ग) का प्रसाद जी ने उल्लेख किया है। गुण्डा कहानी भाव प्रधान आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी में प्रेम, करूणा और आनन्द का पूर्ण संयोजन कर सामाजिक मर्यादाओं तथा मान्यताओं के प्रति विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है।
इस कहानी का कथानक अत्यन्त सशक्त एवं मार्मिक है। कथानक का आधार सांस्कृतिक चेतना, मनोवैज्ञानिक सौन्दर्य एवं प्रेम है। इसमें कथावस्तु की क्रमबद्धता के साथ ही कौतुहल ओर चमत्कार का भी देखने को महत्व है। इसमें तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नन्ह्कू सिंह जैसे नामधारी गुण्डे के बलिदान की कथा।
यह कहानी इन अथों में विशिष्ट कि नन्हकू सिंह के व्यक्तित्व
में प्रसाद ने एक आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया है। उस गुंडा ने अपने आदर्श प्रेम की
खातिर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। नन्ह्कू सिंह एक प्रतिष्ठित जमींदार का पुत्र थे। अपने जीवन के किसी असभ्य अभिलाषा को न पूरी होने पर वह विरक्त हो गया लेकिन वह विराग उसे सन्यासी न बना सका। वह एक नामी गुण्डा बन गया। वेश्यालय में जाना, जुआ खेलना तथा लोगों की मदद करना उसका शौक था। वह जुए में जीती हुई धनराशि गरीब, दुखियों में बांटने वाला गुंडा हो तो पात्र स्वतः ही विशिष्ट हो जाता है। वेश्यालय में मुजरा सुनने का शौकीन कुबरा मौलवी के क्रूर आचरण से क्रुद्ध होकर उन्हें बनारसी झापड़ मारता है। कुबरा अंग्रेजों की चापलूसी करने वाला दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति है। वह अंग्रेज रेजिडेंट के पास जाकर पूरा कथन सुनाता है।
गुण्डा कहानी के पात्र बहुत ही सशक्त है। इसके पात्रों में नन्ह्कू सिंह, बौधी सिंह, मलूकी दुलारी, कुबरा मौलवी, पन्ना, राजा, चेतन सिंह, लेफ्टीनेन्ट इंस्पेक्टर तथा मनिहार सिंह आदि है। नन्ह्कू सिंह बाबू निरंजन सिंह के पुत्र है, साथ ही पन्ना से प्रेम करते हैं, लेकिन प्रेम में असफल होने के बाद गुण्डा का रूप धारण कर लेते हैं। पन्ना को प्राप्त न कर सकने के बावजूद उनकी प्रेम भावना पन्ना के प्रति कम नहीं होती है। संकट उत्त्पन्न होने पर पन्ना और उसके पुत्र चेतन सिंह को बचाने के लिए नन्ह्कू सिंह अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। यही उनके चरित्र का सर्वाधिक उदात्त पक्ष है। प्रसाद जी नन्ह्कू सिंह सिंह का चित्रण निम्न शब्दों में व्यक्त करते हैं- कमर में बनारसी शिल्क का फेटा है, जिसमें शिव की मूर्ति का विछुआ खुशा रहता है, उसके घुँघराले बालों पर सुनहरे पललेके साफ का चोर, उसकी चौड़ी पीठ पर फैला रहता था मुझे गंधे पर टिका हुआ चुड़ीदार का गंड़ासा यह थी उसकी ध्वंस पंजों के बल जवा चलता था। तो उसकी न सच न बोलती थी वह गुण्डा था। पन्ना कहानी की प्रमुख स्त्री पात्र है। वह धार्मिक प्रकृति की संगीत प्रेमी नारी है। यद्यपि पन्ना और नन्ह्कू सिंह में पारस्परिक प्रेम है किन्त कन्या का विवाह बलवंत सिंह से हो जाता है।
नन्हकू ने पूछा-''यह किसकी बारात है?''
''ठाकुर बोधीसिंह के लड़के की।''-मन्नू के इतना कहते ही नन्हकू के ओठ फड़कने लगे। उसने कहा-''मन्नू! यह नहीं हो सकता। आज इधर से बारात न जायगी। बोधीसिंह हमसे निपटकर तब
बारात इधर से ले जा सकेंगे।''
मन्नू ने कहा-''तब मालिक, मैं क्या
करूँ?''
नन्हकू गँड़ासा कन्धे पर से और ऊँचा करके मलूकी से बोला-''मलुकिया देखता है, अभी जा ठाकुर से कह दे, कि बाबू नन्हकूसिंह आज यहीं लगाने के लिए खड़े हैं। समझकर आवें, लड़के की बारात है।''
''जा बे, कह दे कि
हमको क्या मालूम कि बाबू साहब वहाँ खड़े हैं। जब वह हैं ही, तो दो समधी जाने का क्या काम है।'' बोधीसिंह
लौट गये और मलूकी के कन्धे पर तोड़ा लादकर बाजे के आगे नन्हकूसिंह बारात लेकर गये।
ब्याह में जो कुछ लगा, खर्च किया। ब्याह कराकर तब, दूसरे दिन इसी दूकान तक आकर रुक गये। लड़के को और उसकी बारात को उसके घर
भेज दिया।
मलूकी को भी दस रुपया मिला था उस दिन। फिर नन्हकूसिंह की बात सुनकर बैठे
रहना और यम को न्योता देना एक ही बात थी। उसने जाकर दुलारी से कहा-''हम ठेका लगा रहे हैं, तुम गाओ, तब तक बल्लू सारंगीवाला पानी पीकर आता है।''
''बाप रे, कोई आफत
आयी है क्या बाबू साहब? सलाम!''-कहकर
दुलारी ने खिडक़ी से मुस्कराकर झाँका था कि नन्हकूसिंह उसके सलाम का जवाब देकर, दूसरे एक आनेवाले को देखने लगे।
बताते हैं
इस प्रकार इस कहानी में प्रसाद जी ने जिन चरित्रों की सृष्टि की है वह कथावस्तु को सशक्त बनाने में पूर्णतः समर्थ है। विशेषतः नन्हकूसिंह
का चरित्र।
कथोपकथन की दृष्टि से गुण्डा कहानी में संवादों की बहुलता है लेकिन इसके संवाद कथ्य को गति प्रदान करते है साथ ही इनके काव्य सौन्दर्य में चारूता उत्पन्न करते है। इस कहानी में संवाद योजना में प्रसाद जी ने सहज भाषा का प्रयोग किया है।
''दुलारी! आज गाना सुनने का मन कर रहा है।''
''इस जंगल में क्यों?-उसने सशंक हँसकर
कुछ अभिप्राय से पूछा।
''तुम किसी तरह का खटका न करो।''-नन्हकू
सिंह ने हँसकर कहा।
''यह तो मैं उस दिन महारानी से भी कह आयी हूँ।''
''क्या, किससे?''
''राजमाता पन्नादेवी से ''-फिर उस दिन
गाना नहीं जमा।
कथाकार कहानी की भाव प्रवणता में वृद्धि करने के लिए वातावरण की सृष्टि करता है। इस कहानी का वातावरण 18वीं शताब्दी का है। यद्यपि यह काल्पनिक है फिर भी कल्पना बहुत उच्चकोटि की है। लेखक की विशेषता है कि वह अतीत के किसी घटना में कल्पना के रंग भरके उसे वर्तमान से जोड़ देता है।
ईसा की अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में वही काशी नहीं रह गयी थी, जिसमें उपनिषद् के अजातशत्रु की परिषद् में ब्रह्मविद्या सीखने के लिए विद्वान ब्रह्मचारी आते थे। गौतम बुद्ध और शंकराचार्य के धर्म-दर्शन के वाद-विवाद, कई शताब्दियों से लगातार मंदिरों और मठों के ध्वंस और तपस्वियों के वध के कारण, प्राय: बन्द-से हो गये थे। यहाँ तक कि पवित्रता और छुआछूत में कट्टर वैष्णव-धर्म भी उस विशृंखलता में, नवागन्तुक धर्मोन्माद में अपनी असफलता देखकर काशी में अघोर रूप धारण कर रहा था। उसी समय समस्त न्याय और बुद्धिवाद को शस्त्र-बल के सामने झुकते देखकर, काशी के विच्छिन्न और निराश नागरिक जीवन ने, एक नवीन सम्प्रदाय की सृष्टि की। वीरता जिसका धर्म था।
ईसा की 18वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में वही काशी नहीं रह गई थी जिसमें उपनिषद के अजातषत्रु की परिषद में वह्मविद्या सीखने के लिए विद्वान ब्रह्मचारी आते थे। गौतमबुद्ध शंकराचार्य के धर्म दर्शन के बाद विवाद कई शताब्दियों से लगातार मंदिरों और मठो के ध्वंस और तपस्या के ग्ध के कारण प्रायः बन्द हो गए थे।
जयशंकर प्रसाद जी की भाषा परिष्कृत कलात्मक और संस्कृतनिष्ठ है तथा ललित शैली का माधुर्य, एकता और काव्यमय भाषा का गरिमा में प्रयोग उसकी चारूता को और बढ़ा देता है। कहानी के उदक्त एवं ऐतिहासिक धरातल के अनुरूप भाव चित्र एवं वातावरण उपस्थित करने में प्रसाद जी की कहानी पूर्णतया समर्थ है। भाषा शैली का स्वाभाविक कलात्मक एवं सशक्त कवितापूर्ण चित्रण, मोहक अलंकार विधान और तत्सम प्रधान भाषा के कारण यह प्रसाद जी की प्रतिनिधि कहानी कही जा सकती है। कहानी में
भाषिक रोचक और प्रसाद का अभिनव प्रयोग देखते ही बनता है।
अब कुबरा ने घूमकर उसकी ओर देखकर कहा-''कौन है
यह पाजी!''
''तुम्हारे चाचा बाबू नन्हकू सिंह!''-के साथ ही पूरा बनारसी झापड़ पड़ा। कुबरा का सिर घूम गया। लैस के परतले
वाले सिपाही दूसरी ओर भाग चले और मौलवी साहब चौंधिया कर जानअली की दूकान पर
लडख़ड़ाते, गिरते-पड़ते किसी तरह पहुँच गये।
जानअली ने मौलवी से कहा-''मौलवी साहब! भला आप भी उस गुण्डे के मुँह लगने गये। यह तो कहिए कि उसने गँड़ासा नहीं तौल दिया।'' कुबरा के मुँह से बोली नहीं निकल रही थी। उधर दुलारी गा रही थी'' .... विलमि विदेस रहे ....'' गाना पूरा हुआ, कोई आया-गया नही। तब नन्हकू सिंह धीरे-धीरे टहलता हुआ, दूसरी ओर चला गया। थोड़ी देर में एक डोली रेशमी परदे से ढँकी हुई आयी। साथ में एक चोबदार था। उसने दुलारी को राजमाता पन्ना की आज्ञा सुनायी।''
गुण्डा कहानी एक ऐसी प्रेम प्कहानी है, जिसमें वासना नहीं केवल भावना ही प्रधान है। कहानी का नायक नन्ह्कू सिंह अपना प्रेम न पाकर अपना जीवन उद्देश्य बदल देता है, लेकिन चरित्र को नहीं गिराता है। वह प्रारम्भिक प्रेम के ताप को जीवन पर्यन्त महसूस करता है। और अविवाहित रहता है। ऐसा नहीं कि वह जो नन्हकू सिंह के
मन में था, उससे राज माता पन्ना अनभिज्ञ हों, जब दुलारी नन्हकू सिंह का
जिक्र करती है तो राजमाता का मुख रंगहीन हो जाता है
''कौन बाबू नन्हकू सिंह!''
दुलारी ने सिर नीचा करके कहा-''अरे, क्या सरकार को नहीं मालूम? बाबू निरंजन सिंह के लड़के! उस दिन, जब मैं बहुत
छोटी थी, आपकी बारी में झूला झूल रही थी, जब नवाब का हाथी बिगड़कर आ गया था, बाबू निरंजनसिंह
के कुँवर ने ही तो उस दिन हम लोगों की रक्षा की थी।''
राजमाता का मुख उस प्राचीन घटना को स्मरण करके न जाने
क्यों विवर्ण हो गया। फिर अपने को सँभालकर उन्होंने पूछा-''तो बाबू नन्हकूसिंह उधर कैसे आ गये?''
गुंडा कहानी एक आदर्श चरित्र की कहानी है। जिसमें नन्हकू
सिंह के व्यक्तित्व को प्रसाद जी ने प्रस्तुत किया है। यह कहानी आदर्श प्रेम और
त्याग की कहानी है। नन्हकू सिंह गुंडा होते हुए भी एक सहृदय और निर्मल मन के धनी
व्यक्तित्व हैं। आज के समय में यह कहानी इन अर्थों में भी प्रासंगिक है कि किस तरह
हम बिना किसी प्रकार की उम्मीद के अपने प्रिय के लिए अपना सर्वोच्च देने के तत्पर
रहें। नन्हकू सिंह गुंडा होते हुए भी बेदाग छवि के व्यक्ति है। इस कहानी के माध्यम
से प्रसाद ने एक ऐसे चरित्र को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है,
जो हमें बहुत कुछ सीखने और समझने को प्रेरित करता है।
सन्दर्भ :
1.
हिन्दी साहित्य का इतिहास, डॉ नगेन्द्र, डॉं हरदयाल पृष्ठ सं 566 मयूर बुक्स दिल्ली, 2018।
2.
https://www.hindisamay.com/content गुंडा –प्रसाद
3.
https://www.hindisamay.com/content गुंडा –प्रसाद
4.
https://www.hindisamay.com/content गुंडा –प्रसाद
5.
https://www.hindisamay.com/content गुंडा –प्रसाद
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