गुरु नानक देव जी का दर्शन और भक्ति : डॉ. महिमा गुप्ता
गुरु नानक देव जी का दर्शन और भक्ति
पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में जब भारत अमानवीय जाति व्यवस्था से
पीड़ित था, जनता मानवीय अवगुणों से पीड़ित थे, जब विविध धर्मों के अनुयायियों के बीच
पारस्परिक सम्मान न के बराबर रह गया था और जब पूरी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था
(विशेष रूप से उत्तरी भारत में) पूरे धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में एक नए सुधार
की मांग कर रही थी, उस समय भारत में एक ऐसे आध्यात्मिक नेता के उदय
की दरकार थी जो भारत को पुनः अपने सम्मान और गौरव को दिलाकर जनता को सुकून दिला
सकें। ऐसे समय में भारत की भूमि पर नानक देव जी का अवतरण हुआ
। गुरु नानक जी ने अपने शुरुआती जीवन में ही
जाति व्यवस्था की अमानवीयता देखी थी, जातियों के बीच दुश्मनी और कई अन्य सामाजिक
समस्याएं थीं, उनसे
वह इतने अधिक परेशान हो गए थे कि उन्होंने धार्मिक और सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ
सांप्रदायिक संघर्षों का समाधान तलाशने की कोशिश की ।
आज भी दुनिया, धर्म के आधार पर विभिन्न धर्मों के लोगों के
बीच संघर्ष का सामना कर रही है । वे दूसरे धर्मों का नाम भी बर्दाश्त नहीं कर
सकते ।
वे किसी भी धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हैं। दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं है जो
धार्मिक सद्भाव और शांति को बढ़ावा न दे। लेकिन इन धर्मों की सच्ची शिक्षाओं को इन
कट्टरपंथियों ने दूषित कर दिया है जो अपने ही धर्मों को सही तरीके से समझने की
कोशिश नहीं करते। यही कारण है कि हमारे
बीच गलतफहमी को समाप्त कर विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए वर्तमान में गुरु
नानक के दर्शन का अध्ययन पहले की तरह अधिक आवश्यक है ।
इस अध्याय के द्वारा गुरु नानक जी का दर्शन और भक्ति को समझगें कि
क्या उनके दर्शन को अंतर-धार्मिक सद्भाव के लिए एक आदर्श की संज्ञा दी
जा सकती है ।
अपने बचपन से ही गुरु नानक देव जी को कई चीजों में दिलचस्पी थी और 5 साल की उम्र में ही उन्होंने जीवन के उद्देश्य
के बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया था। सात साल की उम्र में वे गांव के स्कूल
में गए, जिसे पंडित गोपाल दास चलाते थे। हमेशा की तरह
पंडित जी ने उन्हें वर्णमाला सिखाना शुरू कर दिया लेकिन युवा बालक नानक ने अपने
अध्यापक से वर्णमाला के आंतरिक अर्थ के बारे में पूछा ।
पंडित जी हैरान थे कि इस युवा बालक को वर्णमाला
के हर वर्ण और उसके अनुसार भगवान को साकार करने के लिये अर्थ का ज्ञान हैं। यह
गुरुनानक जी का पहला दिव्य संदेश माना जाता है।
वर्ष 1499 में एक दिन गुरु नानक ने नदी में अपना
अनुष्ठान स्नान करते हुए अपना पहला रहस्यवादी अनुभव किया
। इसे सिख धार्मिक परंपरा के अनुसार 'भगवान के साथ भोज' कहा जाता है जहां भगवान ने उन्हें पीने के लिए
अमृत का कप देते हुए सन्देश दिया कि -
"नानक, मैं तुम्हारे साथ हूँ.
तुम्हारे माध्यम से मेरा नाम बढ़ाया जाएगा। जो
भी तुम हो, मैं
तुम्हारे साथ हूँ.प्रार्थना करने और मानव जाति को प्रार्थना करने के तरीके सिखाने
के लिए संसार में जाएं । संसार के तरीकों से कलुषित न हो। अपने जीवन को
शब्द (नम), दान
(दान), स्नान
(स्नान ), सेवा
(सेवा), और
प्रार्थना (सिमिरन) स्तुति से एक होने दें। मैं तुम से संकल्प लेता हूँ,
इसे अपने जीवन का ध्येय बना लो ” ।
इस घटना के बाद गुरु नानक
अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में घूमने लगे।
उन्होंने बांग्लादेश (वर्तमान में), असम, मथुरा, बनारस, गया जैसे भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों का
दौरा किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रसार हेतु अरब, बगदाद, श्रीलंका, नेपाल और अफगानिस्तान का भी दौरा किया।अपनी
यात्रा के दौरान मुस्लिम मरदाना और हिंदू भाई बाला उनका साथ दिया करते थे। गुरु
नानक अपनी यात्रा के दौरान शूद्रों को विशेष रूप से पवित्र स्थानों पर ले जाते थे।
1499 ईस. से दुनिया के कई हिस्सों की यात्रा करने के
बाद 1522 ईस. में गुरु नानक ने रावी नदी के तट पर
करतारपुर की स्थापना की। गुरुनानक अपने जीवन के अंतिम वर्षों में करतारपुर में
रहे। सिख लोगों की जीवनशैली इस दौरान गुरु नानक की शिक्षाओं से संस्थागत होने लगी।
गुरुनानक देव जी का निधन 22
सितंबर1539 ईस.को प्रातः काल में हुआ था प्रातः काल को वह
सबसे ज्यादा पसंद करते थे और उसे अमृत-वेला के नाम से पुकारते थे ।उनकी मृत्यु
लोगों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के उनके लंबे समय से पोषित
प्रयास का भी प्रतिनिधित्व करती है । जब गुरु नानक देव जी मृत्यु के निकट थे तो
मुसलमानों ने कहा: ' हम उन्हें दफनायेगें तो हिंदुओं ने कहा,
' हम उनका दाह-
संस्कार करेंगे । गुरु नानक देव जी ने इस समस्या को समझा और कहा- 'हिंदू मेरे दाईं ओर फूल रखें,
और मुसलमान बाईं ओर । जिनके फूल कल सुबह ताजा
रहते हैं, वह
सिद्ध करेगा कि क्या करना हैं । इसके बाद वहां एकत्र लोगों ने गुरु नानक के
निर्देशों के अनुसार उनके लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
अगले दिन सुबह दोनों समुदायों को उनके फूल ताजा
मिले लेकिन गुरुनानक का पार्थिव शरीर विलुप्त हो गया था
। यह घटना वास्तव में रहस्यमय है। इस घटना से
यह अनुमान लगाया जाता हैं कि गुरु नानक देव जी की कोशिश थी कि इस बात को लेकर
हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सीधा टकराव न हो। गुरुनानक देव जी को दफनाने या दाह
संस्कार को लेकर स्थिति खतरनाक हो सकती है लेकिन इस चमत्कारी घटना ने खुद इतिहास
को सांप्रदायिक दंगे से बचाने और अंतर-सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने में मदद
की । आज भी गुरु नानक देव जी को पंजाब में पवित्र संत के रूप में याद किया जाता है
जो हिंदुओं के लिए ' गुरु ' और मुस्लिमों के लिए '
पीर ' है ।
हालांकि गुरु नानक देव जी का पार्थिव शरीर विलुप्त हो गया था,
लेकिन उनके हिंदू भक्तों ने उनके लिये एक मंदिर
बनवाया और मुस्लिम श्रद्धालुओं ने उनके नाम पर एक कब्रिस्तान (मजार) बनवाया ।
लेकिन एक साल के भीतर ही रावी नदी के कटाव से मंदिर और मजार दोनों नष्ट हो गए। इस
विस्मयकारी घटना से लोगों को किसी अंतर सांप्रदायिक टकराव से भी बचने में मदद
मिली।
गुरु नानक देव जी का दर्शन और भक्ति:
गुरु नानक देव जी का कहना था :
"एक भगवान है । वह सर्वोच्च सत्य है।
वह निर्माता है,
बिना किसी डर के और बिना नफरत के है।
वह, सर्वव्यापी ब्रह्मांड में व्याप्त है।
वह अजन्मा हैं
और न ही वह दुबारा जन्म के लिये मरता है।
उसकी कृपा से शाह तू उनकी पूजा करता है।
समय से पहले ही
सच्चाई थी ।
जब समय के साथ जीवन चक्र शुरू हुआ
वह सत्य था ।
अब भी, वह सत्य है
और हमेशा प्रबल सत्य होगा।
नानक एकेश्वरवादी थे, इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है
और उनकी उपासना हिंदू- मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्ति-पूजा,बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक मानते थे। अतः
हिंदु और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था। यह सत्य है कि
उनके कुछ अनुयायी भगवान के अवतार में विश्वास करते थे लेकिन गुरु नानक देव जी ने
सीधे उस तरह के विचारों को खारिज कर दिया । उनके अनुसार भगवान को जन्म और
पुनर्जन्म की सीमा में सीमित नहीं किया जा सकता। ईश्वर को इस दुनिया में नियम
बनाने के लिए मानवीय चरित्र के रूप की जरूरत नहीं है। नानक ने मूर्ति पूजा के
विचार को अस्वीकार कर दिया क्योंकि लोग मूर्ति को प्रतीक मानने के बजाय उसकी पूजा
करते थे। उनका मानना था कि मानव निर्मित मूर्ति भगवान नहीं हो सकती, क्योंकि परमेश्वर अनंत है,और उसे मानव वचनों द्वारा परिभाषित नहीं किया
जा सकता है। ईश्वर के बारे में गुरु नानक देव जी कहते हैं:
"तू एक लाख आंखें है, फिर
भी कोई आंखें नहीं है तू।
तू एक लाख रूपों है, फिर
भी कोई रूप नहीं है तू।
ऐसे आकर्षण के साथ, हे
प्रभु, मोहिनी रूप तू ने मुझे मोहित कर दिया।
तेरी रोशनी हर जगह व्याप्त है ।“
इस संबंध में एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख किया जाता हैं। एक दिन
गुरुनानक देव जी मक्का स्थित एक मस्जिद में ठहरे हुए थे।
सोते हुए उनके पैर काबा की ओर थे
। काबा के काजी कुतुबुद्दीन उनके पास आए और
गुरु नानक देव जी को अल्लाह के घर की ओर अपने पैर करके सोने के लिए खूब फटकारा
। गुरु नानक देव जी ने काजी को कहा कि वह उनके
पैर उस दिशा की ओर मोड़ दे ,जिस दिशा में अल्लाह नहीं है। तब काजी
कुतुबुद्दीन ने गुरु नानक जी से पूछा कि क्या वह मुसलमान हैं
। जवाब में गुरु नानक जी ने कहा-मुझे नहीं पता
कि मैं मुस्लिम हूं लेकिन मैं जानता हूं कि मुस्लिम होना वाकई मुश्किल है ।
एक मुसलमान होना आसान नहीं है
केवल वही जो एक है, उसे
ही दावा करना चाहिए ।
उसे पहले उस पवित्र के नक्शे-कदम पर चलना चाहिए
और उनके कड़वे शब्दों को मीठा मान लेना चाहिए।
खुद को सांसारिक मोह से उसी प्रकार छुटकारा पा लेता है जैसे रेगमाल
से लोहे से जंग छुटकारा पा लेता है ।
गुरु नानक के सार्वभौम दर्शन की प्रमुख विशेषता यह है कि ईश्वर किसी
विशेष राष्ट्र से संबंधित नहीं है, बल्कि
वह सभी के लिए है। इसीलिए ईश्वर एक है।
गुरु नानक जी ने "सबद" या शब्द और "नाम" या
ईश्वर के नाम का जाप करने पर जोर दिया जो सभी के लिए आवश्यक है। एक बार गुरु नानक
जी से अपने ही गुरु के बारे में पूछा गया। नानक जी ने जवाब दिया- शब्द मेरा गुरु
है। ईश्वर के वचन द्वारा उनका अभिषेक किया गया। नाम के दो प्रकार के होते हैं; परमेश्वर के गुणात्मक नाम उसकी दया, शक्ति या अन्य गुणों और सच्चा नाम या सतनाम का
चित्रण करते हैं जो परमेश्वर का व्यापक नाम है। परमेश्वर का नाम जपने से जीव की
आत्मा शुद्ध होती है।
गुरु नानक कहते हैं"
नाम में प्रभु की आत्मा का डेरा है,
मुझ में नाम अन्तर्निवास हो सकता है
गुरु के बिना हम अंधेरे में रहते हैं
शब्द के बिना हम जीवन को नहीं समझते हैं।
'नाम' गुरु ग्रंथ साहिब की केंद्रीय विषय-वस्तु है और
इसे सभी कष्टों का इलाज माना जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब में नाम परमेश्वर का दूसरा
नाम है। भौतिक और आध्यात्मिक-यह प्रत्येक वस्तु का स्रोत है।
नानक जी
का मानना था कि नाम के पाठ से कोई भी अपने अहंकार को जीत सकता है जो सबसे बड़ा शत्रु है। मनुष्य का अहंकार मोक्ष प्राप्ति के
मार्ग में प्रमुख बाधा है और ईश्वर के नाम का पाठ किए बिना, अहंकारी दृष्टिकोण को समाप्त करने
का और कोई उपाय नहीं है। यदि व्यक्ति अहंकार पर
जीत हासिल कर सकता है तो वह व्यक्ति अपने आप वासना, क्रोध, लोभ, मोह
और दंभ पर जीत हासिल कर सकता है जो अहंकार-जनित है।
"जब कपड़े गंदे और अपवित्र हो जाते हैं,
उन्हें साबुन से शुद्ध किया जाता हैं।
जब आत्मा पाप से अशुद्ध हो जाती है
तब यह उस परमेश्वर के नाम से शुद्ध की जा सकती हैं।"
गुरु नानक जी दूसरे धर्मों और उनके अनुयायियों का बहुत
सम्मान करते थे । उनके अनुसार, प्रत्येक मनुष्य समान है और किसी के धर्म के
अंतर के कारण उसे आँकना नहीं चाहिए। उनके मन में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद साहिब के
लिए गहरा सम्मान था। गुरु नानक कहते हैं:
"दीखा नूर मुहम्मदी, दीखा
नबी रसूल
नानक कुदरत देख के, ख़ुदी
गयी सब भूल।"
"मैंने आत्मा की दृष्टि से मुहम्मद के आलोक को देखा है । मैंने पैगंबर
और खुदा के दूत को देखा है। दूसरे शब्दों में, मैंने
उनके संदेश को समझा है/उनकी आत्मा को आत्मसात किया है । परमेश्वर की महिमा पर
विचार करने के बाद, मेरा दंभ पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था
।"
गुरु नानक जी स्वयं कई मुस्लिम विचारकों का सम्मान करते थे। उदाहरण
के लिए,महान
मुस्लिम कवि और दार्शनिक मुहम्मद इकबाल ने उन्हें 'इनसान-ए-कामिल' कहते हुए उन पर 'नानक' नाम से एक कविता लिखी।
गुरु नानक जी का वेदों, बाइबिल जैसे अन्य धर्मों के धार्मिक ग्रंथों के
प्रति गहरा सम्मान था । उन्होंने इन पवित्र ग्रंथों की आलोचना करने
वालों को आगाह करते हुए उनसे कहा कि वे इन ग्रंथों को झूठा न कहें; बल्कि
जो लोग उन्हें झूठा कहते हैं वे स्वयं झूठ की दुनिया में रहते हैं।
उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों से कहा कि कुरान और बाइबिल पढ़ना ही
पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें अपने मन से कुरान और बाइबिल की
शिक्षाओं को ग्रहण करके,अपने सभी संवेदी अंगों पर संयम रखना होगा।
मुसलमानों और ईसाइयों के लिए, गुरु
नानक ने सलाह दी:
"कुरान और बाइबिल की शिक्षाओं को अपने मन से अभ्यास करें; बुराई में जकड़ने से बचने के लिए दस संवेदी
अंगों को नियंत्रित करें। असुरी रुपी इच्छा को नियंत्रित करों, विश्वास, दान, संतोष को बनाये रखें और सब आप के अनुकूल होगा।
"
गुरु नानक जी कहते थे कि उनके अनुयायी बनने की पहली शर्त
यह है कि वह दूसरे धर्मों का भी सम्मान करें और सभी का ध्यान रखें ताकि सभी बिना
किसी अशांति के अपने-अपने धर्म का निर्वहन कर सकें
।
सूफियों और भक्तों ने आध्यात्मिक गुरु के होने पर जोर दिया लेकिन
नानक जी ने मोक्ष के लिए गुरु के होने पर अधिक जोर दिया। नानक जी ने गुरु को
आध्यात्मिक गुरु माना। एक गुरु का सम्मान किया जा सकता है लेकिन उनकी पूजा नहीं की
जा सकती । नानक जी
ने खुद को पैगंबर नहीं, मानवता का उपदेशक होने का दावा किया था। गुरु
को अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग रूपकों में समझा जाता है। वह भक्त के मन में 'नाम'(परमेश्वर) बैठाता है।
गुरु किसी भक्त को मोक्ष का मार्ग समझने और परमेश्वर को प्राप्त करने
का मार्ग समझने में मदद कर सकता है। लेकिन एक गुरु न तो पैगंबर है और न ही
उद्धारकर्ता । परमेश्वर गुरुओं के माध्यम से मनुष्य को
दिव्य ज्योति प्रदान करते हैं। गुरु नानक कहते हैं:
"गुरु दाता है,
गुरु शांति का वैकुंठ है।
गुरु दीपक है
जो तीनों लोकों को रोशन करता है ”।
गुरु नानक देव जी ने सनातन मत की मूर्ति-पूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना
का एक अलग मार्ग मानवता के रूप में दिया। उन्होंने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतिओं का
सदैव विरोध किया । साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी ध्यान दिया, संत श्रेणी में नानक उन संतों की श्रेणी में
हैं जिन्होंने नारी को महत्व दिया है।
गुरु नानक किसी भी धर्म,जन्म,रंग,धन के आधार पर लोगों के बीच किसी भी तरह के
विभाजन के खिलाफ थे। उनका मानना था कि मनुष्य एक कौम है और किसी भी तरह का भेदभाव
लोगों की एकता का हनन करेगा। परमेश्वर ने मानव
जाति की रचना प्रेम से की है और उसके लिये न तो
कोई श्रेष्ठ है और न ही निम्न। बाल्यावस्था से ही गुरु नानक ने हिंदू समाज की
प्रचलित अमानवीय जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। जब वह युवा थे तो गर्व के
प्रतीक पवित्र धागा पहनने से भी इनकार कर दिया था
।
इस जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए गुरु नानक ने दो उपाय किये;
संगत और पंगत। संगत का अर्थ है कि सभी समान हैं,धर्म, जाति और संप्रदाय की परवाह किए बिना सबसे समान
व्यवहार किया जाएगा। पंगत का अर्थ है भोजन की एक ऐसी व्यवस्था जो गुरुद्वारा में
पकाया जायेगा और सभी को एक साथ बैठाकर समान रूप से भोजन परोसा जाएगा
।
इस व्यवस्था में गुरु नानक सफल रहे।संगत और पंगत की यह व्यवस्था
वर्षो तक चलती रही,आज यह विरासत पूरी दुनिया में किसी भी
गुरुद्वारा में देखी जा सकती है। इस संबंध में नीचे एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख
किया गया है ।
मुगल बादशाह (बादशाह) अकबर ने पंजाब के गुरुद्वारों का दौरा किया था।
लेकिन उसके साथ आम लोगों की तरह व्यवहार किया गया। जब उन्हें खाना परोसा गया तो
मुगल बादशाह को कोई कीमती थाली नहीं दी गई। बल्कि उन्हें पेड़ की पत्तियों से बनी
साधारण थाली दी गई और बैठने के लिए एक साधारण चटाई दी गई । इस तरह की अजीब
गतिविधियों को देखकर बादशाह अकबर के सहयोगी क्रोधित हो गये,
लेकिन बादशाह अकबर ने उनको रोक दिया । सर्व
प्रथम मुग़ल सम्राट अकबर इस पंगत व्यवस्था के अंतर्निहित दर्शन को समझना चाहते थे
और जब गुरु द्वारा उन्हें इसे समझाया गया तो वह वास्तव में प्रसन्न हुए। मुग़ल
सम्राट अकबर ने महसूस किया कि समानता की यह व्यवस्था समाज में एकता स्थापित कर
लोगों में शांति बढ़ा सकती है। बादशाह अकबर गुरु नानक द्वारा समानता की इन
शिक्षाओं को देखकर वाकई हैरान थे। तब मुग़ल सम्राट अकबर ने जानना चाहा कि क्या उनकी
सम्राट से कोई मांग है। सिखों ने उनसे जमीन का टुकड़ा मांगा और इसके प्रतिफल में
मुग़ल सम्राट अकबर ने उन्हें पांच सौ बीघा जमीन दे दी। बाद में इसी जमीन पर अमृतसर
शहर और स्वर्ण मंदिर की स्थापना हुई । सिखों ने स्वर्ण मंदिर का उद्घाटन मीर मिया
नाम के एक मुस्लिम पीर से कराया ।
गुरु नानक देव जी के पास संगत और पंगत की व्यवस्था स्थापित करने के
दो प्रमुख लक्ष्य थे।
अ - ताकि हिंदू जाति व्यवस्था को खत्म किया जा सके।
ब - प्रेम के आधार पर वर्गविहीन समाज की स्थापना करना जहां धर्म बाधा
नहीं बन सकता।
गुरु नानक देव जी ने कहा:
जब हम कहते हैं:वही पवित्र है वह अपवित्र है ।
गौर करों कि सभी चीजों में जीवन अप्रत्यक्ष है।
लकड़ी और गाय के गोबर सभी में कीड़े हैं,
रोटी में, मकई में,जमीन
में जीवन है।
पानी में जीवन है जो इसे स्फूर्तिमान/नम बनाता है।
जब रसोई में अशुद्धता फैली
हुई हो,तब वह कैसे साफ होगी?
हृदय की अशुद्धता लोभ है, जीभ
की अशुद्धता असत्य है,
आंख की अशुद्धता लालच, दूसरे
की दौलत, दूसरे की पत्नी और उसकी मनोरमता,कानों की अशुद्धता निन्दा को सुनना है ।
एक और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है, एक दिन मलिक भगो ने अपनी समृद्धि दिखाने के लिए
एक बड़ी दावत का इंतजाम करके गुरु नानक देव जी को आमंत्रित किया। गुरु नानक ने
उनके निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया और एक अन्य कार्यक्रम में भाग लिया जिसकी
व्यवस्था एक निचली जाति के गरीब हिंदू ने की थी। कार्यक्रम में भाग लेने के बाद वह
थोड़ा खाना लेकर मलिक भगो के घर गए जहां बहुत लोग जमा थे। जब गुरु नानक दूसरे
लोगों के साथ बैठे तो अचानक वह खड़े हो गए और उन्होंने अपने एक हाथ में गरीब का
खाना और दूसरे हाथ में अमीर आदमी का खाना रखा। इसके बाद उन्होंने अपने हाथ पर दबाव
डाला और भीड़ ने देखा कि अमीर के खाने से खून बह रहा है और गरीब के खाने से दूध बह
रहा है। इस घटना के दो महत्व हैं; हर कोई बराबर है,हक से महरूम कमाई हानिकारक और सख्ती से निषिद्ध
है।
सिख धर्म में संन्यास का कोई स्थान नहीं है
। गुरुनानक ने हिंदू धर्म की इस परंपरा के
खिलाफ बात की। दुनिया के कार्यों से बचने का कोई रास्ता नहीं है। सभी को कर्म करना
है और अच्छे कर्मों के माध्यम से ही मोक्ष प्राप्त कर ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है।
गुरुनानक जी का जीवन किसी भी तरह के संन्यास के खिलाफ उनके रुख का ज्वलंत उदाहरण
है। उनका एक परिवार था। उन्होंने निष्क्रिय रूप से नहीं,
सक्रिय रूप से मानवता की सेवा की। वे अलग रह
सकते थे लेकिन इस रास्ते को खारिज करते हुए उन्होंने मानवता के लिए काम किया । वह
लोगों को सिखाने के लिए सैकड़ों मील पैदल चले और अंत में करतारपुर में अपने परिवार
के साथ बस गए। गुरु नानक कहते हैं:
"योगी द्वारा पहनने वाले कोट में धर्म नहीं है,
न ही उसके अनुयायियों में वह है,
न ही उसके शरीर में राख में।
धर्म कान में नहीं बजाया जाता है,
सिर मुंडाने में नहीं,
शंख बजाने में भी नहीं।
अगर, सच्चे धर्म के मार्ग को देखना हैं
तो संसार की बुराईओं में, बुराईओं
से मुक्त हो ”।
गुरु नानक जी का सपना था कि वे भारतीय मानवतावादियों और ईश्वर-प्रेमी
लोगों के लेखन के साथ विशिष्ट धार्मिक मूलग्रंथ तैयार करें। लेकिन उनके समय में
उनका यह सपना सच नहीं हुआ। गुरु अर्जन देव ने एक पुस्तक संकलित करना शुरू किया और
उसका नाम 'आदि- ग्रंथ' रखा गया। इसे दसवें गुरु,
गुरु गोविन्द सिंह ने पूर्ण किया और इसे 'गुरु ग्रंथ साहिब'
नाम दिया
।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब को 36 रचनाकारों की
रचनाओं से संकलित किया गया था और इसमें से केवल नौ रचनाकार सिख गुरु थे। कुछ
मुस्लिम सम्प्रदाय से थे और कुछ हिंदू सम्प्रदाय से थे। कबीर एक बुनकर थे;
साधना कसाई थी, नामदेव संत थे, धना किसान था, सैन नाई था, रविदास मोची थे, फरीद मुस्लिम सूफी थे । यहां सिख धर्म की
सार्वभौमिकता को दिखाया गया है कि वे सभी लोगों को बराबरी का दर्जा दें, चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों
। और यही गुरुनानक देव जी का सपना था।
गुरुनानक जी के अनुसार पांच प्रार्थनाएं होती हैं जो सभी के लिए
अनिवार्य हैं। ये पांच हैं- सत्यवादिता , केवल वही लेना, जो किसी का देय है,सभी के प्रति सद्भावना,
शुद्ध इरादा और परमेश्वर की स्तुति। उन्होंने
कीर्त करो, नाम
जपो और वंड चखो पर जोर दिया जिसका अर्थ
है: काम, पूजा
और दान ।
नानक जी के अनुसार पूरा संसार दुखों से कराह रहा है। सुख क्षणभंगुर
होता है और कभी-कभी सुख अधिक दु:खों की ओर जाता है। दु:ख सत्य और सार्वभौमिक है।
नानक के अनुसार पांच तरह के दु:ख होते हैं। ये हैं- प्रिय लोगों से वियोग का दु:ख,
भूखे पेट का दु:ख,
अत्याचार और मृत्यु का दु:ख,
शारीरिक बीमारियों का दु:ख और मानसिक और
आध्यात्मिक दु:ख। पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर दु:खों
पर विजय प्राप्त कर सकता है। अपने हृदय को शुद्ध करने के लिए,
प्रत्येक को परमेश्वर के प्रेम को खोजना चाहिए,
इससे जाहिर होता है कि गुरु नानक देव जी का
प्रमुख ध्यान पूर्ण पुरुष पर था ।
मानव जीवन एक सुनहरा अवसर हैऔर आत्मबोध के लक्ष्य के लिए एक बड़ी
चुनौती है। गुरु नानक जी ने करमावदा
अर्थात कर्म करने पर जोर दिया, उस
आधार पर मनुष्य अपने पुण्य या दंड का एकमात्र कारण है। वे कहते हैं:
"दूसरों को दोष क्यों, अपने
कामों को दोष
क्योंकि जो बोता है उसका फल प्राप्त करता है ”।
सामाजिक समस्याओं को खत्म करने के लिए गुरु नानक देव जी के निर्देशों
पर विचार करना आवश्यक है।
ये निर्देश हैं:
1 दूसरों के बारे में बुरा मत बोलो;
2. अपने दुश्मन को अपने दोस्त के रूप में मानें;
3.आडंबरहीन रहें और दूसरों को सच्चरित्र मानें।
4. दूसरों
के बारे में बुरा मत सोचो;
5. दूसरों को नीचा न समझें;
6. जन्म के कारण दूसरों के साथ नीचा व्यवहार न
करें;
7. हमेशा
अच्छे कार्य करने की कोशिश करें;
8. बुरी
सोच से अलग रहो;
9. जैसा
कि हम परमेश्वर की संतान हैं,
अतः सभी को अपने परिवार के सदस्य के रूप में समझो;
10. इस
दुनिया में रहते हुए सार्वभौमिक भाईचारे व्यवहार में लाये;
11. ध्यान
रखें कि परमेश्वर हम में है, यह
सोच हमारे बीच भाईचारा बनाने में हमारी मदद करेगी
।
गुरु नानक ने नेक कामों के महत्व पर जोर दिया जिस पर मनुष्य का
आध्यात्मिक आकलन निर्भर करता है। यह तर्क बार-बार गुरु नानक के कई भजनों में
परिलक्षित होता है जैसे,
"पुण्य से
प्रबुद्धता ।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक शांति, एकता, प्रेम और मानव भाईचारे के देवदूत थे। उन्हें
नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति के लिए उनके अद्वितीय योगदान के लिए दुनिया भर के
अनुयायियों और विद्वानों- हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, सिख और अन्य लोगों द्वारा प्यार और सम्मान दिया
जाता है। उनका धर्म सर्व-धर्म समभाव का है। गुरु नानक देव जी ने परिवर्तनवादी के
रूप में धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्ट,कुप्रथाओं,अंधविश्वासों,चालाक,लालची ब्राह्मणों और मुल्लाओं द्वारा अज्ञानी
जनमानस के शोषण की कड़ी निंदा की ।
अब हम वैश्विक जगत में निवास करते हैं, जहां तेजी से बढ़ती तकनीकी उन्नति के कारण हमें
एक-दूसरे को जानने का एक सुनहरा अवसर है । अब समय आ गया है कि हमें गुरु नानक देव
जी की शिक्षाओं की वास्तविकता का ज्ञान होना चाहिए जिन्होंने लोगों के बीच
अंतरधार्मिक सद्भाव स्थापित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था।
लेकिन दुर्भाग्य से हम लोग मानवता को उचित सम्मान नहीं देते । हम हमेशा अपने आप को
एवं अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ के रूप में चित्रित करने की कोशिश करते है। कोई भी
हिंदू, मुस्लिम,
ईसाई या यहूदी नहीं है,
हर कोई अंतरधार्मिक सद्भाव बढ़ाने में अपने
प्रयास में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं से सबक ले सकता है ।
गुरुनानक कहते थे कि वह न तो मुसलमान हैं और न ही हिंदू। बल्कि
उन्होंने एक सच्चा इंसान होने पर जोर दिया जो बहुत मुश्किल लग सकता है । लेकिन यह
असंभव नहीं है। उन्होंने हमें एक-दूसरे से प्यार करने का रास्ता दिखाया। यही कारण
है कि उनकी शिक्षाएं विश्व के विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच अंतरधार्मिक सद्भाव
स्थापित करने के लिए एक सच्चा आदर्श हो सकती हैं । यह उम्मीद की जा सकती है कि
मानव एक-दूसरे के प्रति उचित सम्मान दिखाएगा, किसी की जाति के कारण किसी को निम्न नहीं माना
जाएगा ताकि विश्व में कोई साम्प्रदायिक संघर्ष नहीं होगा और इस प्रकार हम विश्व
में शांति स्थापित कर सकते हैं ।
ग्रंथसूची
1. सिंह, डॉ गोपाल ए हिस्ट्री ऑफ द सिख पीपल, एलाइड पब्लिशर्स लिमिटेड, मुंबई, 1979
2. सिंह; खुशवंत, सिखों
का इतिहास वॉल्यूम
-1, ऑक्सफोर्ड प्रेस, १९९९ विश्वविद्यालय
3. सिद्धू, जी एस, सिख
धर्म की अवधारणा, सिख मिशन सेंटर, सिडनी, 2007
4. जोशी, एल. एमए एड, सिख
धार्मिक परंपरा। पंजाब यूनिवर्सिटी, पटियाला, 1980
5. सिंह, दलजीत, सिख
विचारधारा, गुरु नानक फाउंडेशन, नई दिल्ली,1984
6. सिख
मिशनरी केंद्र, सिख धर्म, डेट्रायट, मिशिगन, 1990.
7. दास, सुबोध चंद्र, श्री गुरु नानक देवजी थेक श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, फॉर्च्यून्स लिमिटेड, ढाका, 2010।
8. सिंह, हरबंस,
सिख धर्म का संदेश, तीसरा एड., गुरुद्वारा
परबंधक कमेटी, दिल्ली, 1968
9. इस्लाम, काजी नुरुल, "गुरु ग्रंथ साहिब: इंटरफेथ समझ के लिए एक मॉडल"
10. इस्लाम, काजी नुरुल, 'गुरु
नानकर समप्रीतिर दरसाना',
देव मेमोरियल लेक्चर, ढाका विश्वविद्यालय, 2011
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