निबंधकार अज्ञेय
अज्ञेय आधुनिक हिंदी साहित्य के अत्यंत विशिष्ट लेखक रहे हैं। वह आधुनिक दृष्टि और अनुभव से संपन्न एक विचारक, कवि के रूप में सर्वमान्य हैं ।अज्ञेय को नई कविता का शालाका पुरुष कहा जाता है। कविता ,उपन्यास ,कहानी के अतिरिक्त अज्ञेय ने अनेक महत्वपूर्ण निबंधों की भी रचना की है। इनके निबंध को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-एक साहित्य चिंतन संबंधी विचारात्मक निबंध, दो यात्रा परक निबंध और तीन आत्माव्यंजक निबंध ।सबरंग और कुछ राग , आलवाल, भवंती, अंतरा ,लिखी कागज कोरे ,अद्यतन जोगलिखी, धार और किनारे अज्ञेय के महत्वपूर्ण निबंध संग्रह हैं। इनके निबंधों में बौद्धिक संवेदना का प्रखर चिंतन और भाषा का सौंदर्य पूर्णरूप देखने को मिलता है। इनके निबंध के विषय में विद्यानिवास मिश्र जी कहते हैं कि- “अज्ञेय ने हिंदी निबंध को सांस्कृतिक संवेदना के संप्रेषण का माध्यम बनाया और प्रमाणित किया कि व्यक्तित्व संपन्नता और अहं का विसर्जन कविता की ही तरह निबंध का मौलिक गुण भी है । बौद्धिक और रागात्मक संवेदना में गहरे रचे हुए अज्ञेय के निबंध सच्चे अर्थों में निबंध कहे जा सकते हैं, जिनमें बंधन और मुक्ति का सार्थक अद्वैत दिखाई देता है।”
अज्ञेय के निबंधों उनका एवं समृद्ध व्यक्तित्व झलकता हुआ प्रतीत होता है। अज्ञेय के पास देश
विदेश का व्यापक अनुभव है। वे पश्चिमी साहित्य एवं संस्कृति से भलीभांति परिचित हैं और उनका उतना ही उनका सरोकार भारतीय परंपरा से भी था । विदेश साहित्य ,संस्कृति
और विचार दर्शन का प्रभाव भी इनके निबंधों में देखने को मिलता है। गहरी रागात्मकता,
तटस्थता और प्रखर चिंतन इनके निबंधों की विशेषता है। अज्ञेय की भाषा में उपयुक्त शब्द चयन, व्यवस्थित वाक्य
रचना, विशेषणों का सभिप्राय प्रयोग और विचलन, नए उपमानों और
प्रतीकों की खोज, मिथकों की नई
व्याख्या और मुहावरे के सार्थक प्रयोग आपके निबंधों विशिष्टता है । निजीपन और
प्रांजलता आपके साहित्य में सर्वत्र देखने को मिलती है।
अज्ञेय की निबंधों में मूल्यों की खोज की चिंता दिखाई देती है। भाषा को लेकर
जितना गहरा विश्लेषण इनके निबंधों में मिलता है, वैसा आधुनिक साहित्य में दुर्लभ
है। कला साहित्य और
संस्कृति उनके निबंधों के मुख्य विषय हैं। इन्हें प्रयोगधर्मा साहित्यकार कहा गया है। और यह प्रयोगधर्मिता
का उनके निबंध में भी सर्वत्र देखने को
मिलती है। अज्ञेय के निबंधों
में आत्मा व्यंजना की तटस्थता और मूल्यचिंता
का विलक्षण संयोग देखने को मिलता है। इनके निबंध ने हिंदी निबंध विधा को नया रचनात्मक संस्कार दिया है। व्यंग्य
,लाक्षणिकता और बिम्बविधयानी शक्ति के कारण इनके निबंधों की भाषा अत्यंत समृद्ध है
। कला का स्वाभाव और उद्देश्य निबंध की निम्नलिखित पंक्तियों में हम आपकी भाषा
देख सकते हैं – “काव्य कला के बारे में आपने वाल्मीकि की कथा सुनी है-
कौंच- वध के फूटे हुए कविता के अजस्र निर्झर की बात आप अवश्य जानते हैं । वह कहानी
सुन्दर है, और उसके द्वारा कविता के स्वभाव की ओर संकेत होता है –कि कविता मानव की आत्मा के आर्त्त चीत्कार का सार्थक रूप
है उसकी कई व्याख्याएँ की जा सकती और की गयी हैं । लेकिन हम इसे एक सुन्दर कल्पना
से अधिक कुछ नहीं मानते । बल्कि हम कहेंगे किहम इससे अधिक कुछ मानना चाहते ही नहीं
। क्योंकि हम यह नहीं मानना चाहते कि कविता ने प्रकट होने के लिए इतनी देर तक
प्रतीक्षा की !”
उपरोक्त पंक्तियों की भाषा और कहन का ढंग विशिष्ट है ,अपनी बात को बहुत ही तर्कपूर्ण तरीके से अज्ञेय ने रखा है ।अज्ञेय इन्हीं अर्थों में एक विशिष्ट रचनाकार हैं कि बातों के कहने के ना जाने कितने ढंग उन्हें मालूम हैं ,इसी कारण उन्होंने हिन्दी साहित्य में नए प्रयोगों का मार्ग प्रशस्त किया ।
वाह गुरूजी
ReplyDeleteअज्ञेय के व्यक्तित्व के निबंधकार पक्ष से इतने अच्छे से रूबरू कराने के लिए आप का धन्यवाद💐
ReplyDeleteसराहनीय लेख आपने सच कहा कि अज्ञेय जी को भी बहुत दुख था कि अब हम जीवन मूल्यों को भूलते जा रहे हैं।
ReplyDeleteAmazing 🥰🥰
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