सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं
सूर्यकान्त
त्रिपाठी "निराला"
'निराला' सार्वभौम प्रतिभा
के शुभ्र पुरुष थे। उनसे हिन्दी कविता को एक दिशा मिली जो द्विवेदीयुगीन
इतिवृत्तात्मकता, उपदेश-प्रवणता और
नीरसता के कंकड़-पत्थरों के कूट-पीसकर बनाई गई थी। वे स्वयं इस राह पर चले और अपने
काव्य-सृजन को अर्थ-माधुर्य, वेदना और अनुराग
से भरते चले गये। यही वजह है, कि उनका काव्य एक निर्जीव संकेत मात्र नहीं है।
उसमें रंग और गंध है, आसक्ति और आनन्द
के झरनों का संगीत भी है ,तो अनासक्ति और विषाद का मर्मान्तक स्वर भी है। उसे
पढ़ते समय आनन्द के अमृत-विन्दुओं का स्पर्श होता है, और मन का हर कोना अवसाद व
वेदना की धनी काली परतों से घिरता भी जाता है। इतना ही क्यों, उनके कृतित्व में "नयनों के लाल गुलाबी
डोरे" हैं, "जुही की
कली" की स्निग्ध, भावोपम प्रेमिलता
भी है ,तो विप्लव के बादलों का गर्जन-तर्जन भी है। "जागो फिर एक बार" का
उत्तेजक आसव भी है और जिन्दगी की जड़ों में समाते-जाते खट्टे-मीठे करुण-कोमल और
वेदनासिक्त अनुभवों का निचोड़ भी है।
वे यदि एक ओर "किसलय वसना नव-वय लतिका" के
सौंदर्य के चित्रकार हैं, तो दूसरी ओर अपने जीवन के डूबते दिनमान के गायक भी हैं।
उनकी अनेक कविताएँ इसकी गवाही देती हैं, कि उन्होंने आशा-उल्लास के शिखरों तक की
ही यात्रा नहीं की है, अपितु शिखरों से
उतरकर जीवन की वास्तविकताओं के वेदना-विरागयुक्त संदर्भों को भी गहराई से पहचाना
है। इसी से डॉ. रामविलास शर्मा को लिखना पड़ा कि उनकी कविताओं में जितना आनन्द का
अमृत है, उतना ही वेदना का विष भी
है। कवि चाहे अमृत दे, चाहे विष,
इनके स्रोत इसी धरती में हों तो उसकी कविता अमर
है। सच है कि 'निराला' के व्यक्तित्व में एक ओर परशुराम की क्रांति,
हुंकार और ओजभरी वार्ण तो दूसरी ओर बुद्ध की
करुणा व राग रंजित भी
'निराला' का स्थान विशिष्ट है। निश्चय ही वे कभी भुक्ति
से मुक्ति और कभी मुक्ति से भुक्ति और कभी अकेली भुक्ति या अकेली मुक्ति के गायक
रहे हैं। यों उनके काव्य का स्वर विविधात्मक है। ऐसे स्वर-वैविध्य के साधक की
साधना को शब्दों की अर्गला में कोई कैसे बाँध सकता है ? तभी तो जब-जब उनके कथ्य को कहने के लिए उपयुक्त शब्दों की
तलाश हुई है, तब-तब शब्द या तो
ओछे पड़ गये हैं या अनुपयुक्त लगे हैं। वस्तुतः निराला स्वयं ऐसे विशेष्य थे जिनके
लिए कोई भी एक विशेषण नाकाफी प्रतीत होता है।
निराला का काव्य- सृजन- निःसंदेह निराला जी का समय 1897 मे 1962 तक माना गया है। निराला जी का जीवन प्रारम्भ से ही अनेक
अभावों और विपत्तियों के बीच से आगे बढ़ता रहा है, किन्तु ये अपने निरालेपन के कारण न तो किसी के सामने झुके
और न कभी अपने स्वाभिमान को आहत ही होने दिया। निराला का मन और बुद्धि तो संघर्षों
की उपेक्षा करते हुए अि ये हैं—'अनामिका',
'परिमल','नीतिको 'बेला', 'कुकुरमुत्ता, 'अर्चना', 'आराधना',
'अणमा' और 'जय पत्ते' आदि। इनकी प्रबन्धात्मक कृतियों में “तुलसीदास”, "राम की शक्तिपूजा" और "सरोज स्मृति" को लिया
जा सकता है। 'तुलसीदास'
यदि सांस्कृतिक चेतना का काव्य है तो "राम
की शक्तिपूजा" सम्पूर्ण छायावादी काव्य की उत्कृष्ट उपलब्धि है। इसमें 'निराला' ने एक ऐतिहासिक संघर्ष के माध्यम से धर्म और अधर्म, न्याय और अन्याय, सत् और असत् के बीच द्वन्द्व को चित्रित किया है। 'पंचवटी प्रसंग' एक लम्बी कविता है जिसमें 'निराला' की छायावादी
चेतना तो व्यक्त हुई ही है, प्रेम का एक नया
और उदात्त रूप भी देखने को मिलता है। 'कुकुरमुत्ता' व्यंग्यकाव्य है।
‘अर्चना’, ‘आराधना', 'अणिमा' जैसे संग्रहों
में निराशा. विषाद के साथ साथ एक मानवीय करुणा व्यक्त हुई है।
अन्त में उनकी कविता आत्म-निवेदन और प्रार्थना विनय के
भक्तिपूर्ण भावों से आपूर्ण हो गयी है। पर 'निराला' की इस
काव्य-भूमिका को मध्ययुग के भक्त-कवियों की वैयक्तिक एकान्त साधना समझ लेना भी भूल
होगी। 'निराला' के प्रार्थना-काव्य में भी लोक-पीड़ा और
सामाजिक दृष्टि भरपूर पाई जाती है। अधिकांश गीतों में उन्होंने अपने प्रभु से
जन-जीवन के मांगल्य की कामना की है,
या उस परम महती शक्ति का
आह्वान किया है जो हमारी सामाजिक विषमताओं और विकारों का नाश कर दें। इस प्रकार
यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो सरह प्रतीत होगा कि 'निराला' का सांस्कृतिक मूल्यों की आकांक्षा का दार्शनिक
या बौद्धिक स्वर, जन-जीवन से बुला-मिला यथार्थवादी व्यंग्य
प्रधान आक्रोश और अंतिम मानान का स्वर-तीनों एक ही उद्देश्य सूत्र से जुड़े हुए
हैं निस्सन्देह कवि 'निराला' के काव्य का मेरुदण्ड
मानवतावाद है।
निराला हिन्दी साहित्य के एक ऐसे कवि के रूप में जाने जाते
हैं जिनके काव्य को को किसी एक समय या प्रवृत्ति की सीमाओं में परिसीमित नहीं किया
जा सकता है , निराला व्यक्तित्व और कृतित्व की असीमता के रचनाकार हैं । जूही की काली से आपकी रचनात्मक यात्रा आरम्भ
होकर सरोज स्मृति, तुलसीदास ,पंचवटी प्रसंग से होते हुए कुकुरुत्ता ,भिक्षुक और
स्नेह निर्झर वह गया तक जाती है । आपकी ये ही
विशेषता आपकी उपलब्धि है । छायावाद से लेकर
प्रगतिवाद ,प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों और कविताओं का मार्गदर्शन और प्रेरणा का
स्रोत है आपका रचना संसार । आधुनिक हिन्दी
साहित्य और कविता को आपने बहुविध प्रभावित किया है ,मुक्त छन्द में कविताओं का लेखन
कर आपने कविता की मुक्ति का मार्ग प्रस्शत किया । इसके साथ- साथ आपने कविता को नव-गति और नव- लय
से संवारा भी ।आपके कविताओं की
का प्रस्थान बिन्दु निश्चित ही छायावाद है ।
निराला के काव्य की छायावादी विशेषताएं –
1.
प्रकृति का
मानवीकरण
2.
आत्माभिव्यक्ति
3.
उदात्त प्रेमाभिव्यक्ति
4.
मुक्त छन्द
5.
संस्कृतनिष्ठ
भाषा
6.
लाक्षणिक शैली
प्रकृति का मानवीकरण – प्राकृति का मानवीकरण छायावाद की प्रमुख विशेषता है
,छायावादी कवियों ने प्रकृति के कार्य-व्यापारों में मानवीय कार्य-कलाप का आरोपण
किया हैं ।निराला ने अपनी कविता ‘संध्या
सुन्दरी’ में शाम के समय का अंकन एक सुंदरी के रूप में किया है –
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या-सुंदरी परी-सी
धीरे धीरे धीरे
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,—
किंतु गंभीर,—नहीं है उनमें हास-विलास।
हँसता है तो केवल तारा एक
गुँथा हुआ उन घुँघराले काले बालों से,
हृदय-राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।
अलसता की-सी लता
किंतु कोमलता की वह कली,
सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाँह,
छाँह-सी अंबर-पथ से चली।
नहीं बजती उसके हाथों में कोई वीणा,
नहीं होता कोई अनुराग-राग आलाप,
नुपुरों में भी रुन-झुन रुन-झुन रुन-झुन नहीं,
सिर्फ़ एक अव्यक्त शब्द-सा “चुप चुप चुप''
उपरोक्त
पंक्तियों में निराला ने प्राकृत के मानवीय रूप का चित्रण किया है , संध्या रुपी
सुंदरी के रूप का वर्णन करते हुए निराला ने उसके व्यापक प्रभाव और रूप माधुरी का
बहुत ही आकर्षक वर्णन किया है ,जिसे हम अपनई कल्पना के द्वारा महसूस कर अभिभूत हो
सकते हैं ।
आत्माभिव्यक्ति- छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताओं में आत्माभिव्यक्ति
है , कविता में बाह्य जीवन और जगत के विषय में इतना कुछ कहा जा चुका था की ह्रदय
अपनी अभिव्यक्ति के उमड़ पड़ा । प्रसाद ने अंशु
में लिखा है कि –
घनीभूत पीड़ा थी
जो मन में ,
दुर्दिन में है आंसू बनकर आज बरसाने आई ।
छायावाद के सभी कवियों प्रसाद ,पन्त ,महादेवी और निराला सभी
के काव्य में यह विशेषता देखने को मिलती है । निराला द्वारा रचित सरोज-समृत्ति हिदी साहित्य
एक मात्र शोक गीत है ,जिसमें निराला ने अपने जीवन के संघर्षों का उदघाटन किया है । साथ ही अपनी पुत्री के लिए कुछ ना कर पाने की
विवशता भी व्यक्त की है –
दुःख ही जीवन की
कथा राही
क्या कहूँ आज जो
नहीं कही
उदात्त प्रेमाभिव्यक्ति-छायावाद काव्य की विशेषताओं में उदात्त प्रेम
का चित्रण देखने को मिलाता है , निराला द्वारा रचित कविता ‘जूही की कली’ में प्रेम
का जो चित्रण देखने को मिलता है ,वह अपने आप में अभिनव है जूही की कली की
पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं –
मुक्त
छन्द निराला की सबसे बड़ी विशेषता है , निराला कविता और मानव मुक्ति के
प्रबल पक्षधर थे । अपनी कविताओं के माध्यम से आपने मुक्त छन्द
पर विशेष बल दिया –
मुक्त छन्द
निराला ने सहज भावों की
अभिव्यक्ति के लिए मुक्त छन्द की वकालत करते हैं ।
शोधपरख एवं सराहनीय लेख के लिये साधुवाद
ReplyDeleteVery nice 👍👍👍
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