चलिए -छोड़िए : प्रीति श्रीवास्तव

 प्रीति श्रीवास्तव अपना व्यवसाय चलाने के साथ ही अपनी साहित्यिक रुचियों के कारण मर्मस्पर्शी काव्य सृजन करतीं हैं, आप प्रभात खबर की वरिष्ठ स्तम्भकार रहीं हैं.आज के समय में मानवीय संवेदना अपने अब तक के सबसे खराब समय से गुजर रही है. प्रस्तुत है, प्रीति जी की बेहद संवेदनशील और मर्मस्पर्शी कविता.....! 


चलिए ..... 
छोड़िए ! 
अब न माँगेगे
दिल आपका
शब्दो में आपका 
उल्झाना अच्छा रहा
चलिए 
कहिए
कोई और कहानी
झूठी या सच्ची
सुनते हुए अपको 
मन को बहलाना अच्छा रहा
आईए 
बैठिए
ओसारे में हमारे
बतिआईए किसी से
आपको देखने को
जंगले से झाकना अच्छा रहा
जाईए 
लौटिए
अब यहाँ से
कोई काम नही
आपसे किसी को
नदारती आपका अच्छा रहा
थे 
नही थे
ये याद भी नही
याद रखना भी नही
क्युं बाधना किसी को
आपका युं बिलाना अच्छा रहा।
प्रीति।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं