श्रमिकों को भगवान लिखूँगा: डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव 'नैतिक' चेन्नई
डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव युवा कवि के रूप में खासी ख्याति अर्जित कर चुके हैं , आपके दो काव्य संग्रह चलो आदमी बना जाये और दर्द का व्याकरण प्रकाशित हो चुका है . आमियत के खोते हुए ज़माने में आदमी होने की ललक आपकी रचानाओं सर्वत्र देखने को मिलती है . सतीश एक जीवठ एवं मर्मस्पर्शी रचनाकार हैं ,आपकी रचनात्मकता विशेष पहचान भी मिली है ,इन्हें पंजाब एसोसिएशन चेन्नई द्वारा दो बार श्रेष्ठ युवा कवि सम्मान और पहली पुस्तक हिंदी गज़ल सग्रह 'चलो अब आदमी बना जाए' को प्रकाशक द्वारा बेस्ट सेलर अवार्ड भी मिल चुका है . मजदूर दिवस पर मजदूरों को समर्पित आपकी कविता प्रस्तुत है .
श्रमिकों को भगवान लिखूँगा
खून -पसीना, मिट्टी-चूना
खेत और खलिहान लिखूँगा
श्रम को मैं देवत्व लिखूँगा
श्रमिकों को भगवान लिखूँगा
नियम है लेकिन विचित्र है
कहीं धूल है, कहीं इत्र है
भू-पति मस्त, भूमि-सुत भूखा
उल्टी गंगा यहाँ मित्र है
तुम गाओ सामंती चारण
मैं किसान गुणगान लिखूँगा
श्रम को मैं देवत्व लिखूँगा
श्रमिकों को भगवान लिखूँगा
दिन में जलकर, रात में जगकर
चौबीसों घंटे लग-लगकर
स्वप्न सजाते हैं महलों का
रोज पसीने में पग-पगकर
तुम उनको मजदूर लिखोगे
मैं उनको वरदान लिखूँगा
श्रम को मैं देवत्व लिखूँगा
श्रमिकों को भगवान लिखूँगा
महल आप, मिट्टी मैं लिक्खूँ
गोबर और गिट्टी मैं लिक्खूँ
मॉल और महानगर लिखो तुम
चौपाल-चट्टी मैं लिक्खूँ
तुम चाहे जो कुछ भी लिक्खो
मैं तो जन कल्याण लिखूँगा
श्रम को मैं देवत्व लिखूँगा
श्रमिकों को भगवान लिखूँगा
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