लोक रंग की जीवन्तता के कलमकार:रेणु
फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी साहित्य के विरले एवं विशिष्ट कलमकार हैं, एक ऐसे कलमकार जिनके कलम में कागज पर जीवन -जगत के विविध एवं रंग-विरंगे चित्रों को जीवन्त रुप में उकेरने की अद्भुत क्षमता है| इनके कलम से जो कुछ भी रचा गया है, उसमें रुप और गंध के साथ जीवन की ध्वनि भी ध्वनित होती है| शब्दों के इस्तेमाल और कथा भाषा की नव्यता एवं ताजगी देखते ही बनती है | रेणु एक ऐसे सर्जक कलाकार हैं, जिनमें जीवन की विविध भंगिमाओं का अंकन जस का तस देखने को मिलता है|
रेणु की ख्याति आंचलिक कथाकार के रुप में है, और विशेषत: उपन्यासकार के रुप में ,जिसका आधार मैला आंचल है | लेकिन रेणु की कहानियों और अन्य उपन्यासों में लोक कथाओं, लोक विश्वासों, लोक गीतों और लोक की विविध छटाओं का व्यापक अंकन देखने को मिलता है| ठेस, लालपान की बेगम, रसप्रिया , पंचलाइट , तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुल्फाम इत्यादि | इन कहानियों में शब्दों में जो चित्र और ध्वनि देखने को मिलते हैं उनका आस्वादन करके हम उस लोक से साक्षात्कार कर लेते हैं, जिसका अंकन रेणु कर रहे होते हैं| शब्दों में चित्रों के साथ - साथ गंध, ध्वनि एवं लोक की विविधता मुग्ध करने वाली है|
तीसरी कसम कहानी में रेणु द्वारा किया गया प्रयोग देखते ही बनता है -
हू-ब-हू फेनूगिलासी बोली ..............
हिरामन के रोम-रोम .बज उठे ....उसके बैल भी कान खड़े करके इस बोली को परखते हैं | मेरा नाम है हिरामन , उसकी सवारी मुस्कराती है .........मुस्कराहट में खुशबू है .
उपरोक्त पंक्तियों में रेणु ने जो चित्र खिंचा वह तो इसका फिल्मांकन करते हुए भी भी जीवन्त ना हो सका | बैलों का भाव समझाना की और रोमांचित होना ,मुस्कराहट में खुशबू और हिरामन के मुह से बोली का ना निकलना ये सब कुछ रेणु के गहन जीवनानुभवों से निकालकर आता है और हमें रोमांचित कर जाता है | इसी तरह लला पान की बेगम कहानी में रेणु ने साड़ी की सुंदरी महक ,गुड़ की गंध ,और बैलों के गले की घंटी की टुनुर-टुनुर आवाज को इस तरह प्रस्तुत किया है कि गाँव का पूरा परिवेश हमारे समक्ष ही दृश्यमान हो उठता है -
अपने ही बैलों की घंटी है ,क्यों री चंपिया?
चंपिया और बिरजू ने प्रायः एक साथ ही कहा- हूँ-ऊँ-ऊँ .
चुप बिरजू की माँ ने फिसफिसा कर कहा ,शायद गाड़ी भी है ,घडघडाती है न ?
बैलों के गले की घंटी और गाड़ी की घडघड़ाहट जैसे प्रयोग हमारे समक्ष ध्वनि प्रस्तुत करते हैं , शब्दों में ध्वनि ,रंग,और गंध को हुबहू प्रस्तुत कर देना रेणु को विशिष्ट चित्रकार बना देती है | एक ऐसा चित्रकार और कलाकार जो बिना रंगों और कुची ,बिना वाद्य-यंत्रों के ही चित्र और ध्वनि से हमें रूबरू कराता है |
Very nice👍
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteआभार
Deleteसराहनीय
ReplyDeleteआभार
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