डा. सतीश की गजल

गीत -गजलों के माध्यम से आम जन की पीड़ा और मर्म को अभिव्यक्ति सतीश की गजलों को विशिष्ट बनाती हैं | प्रस्तुत है डा. सतीश की एक ऐसी गजल जिसमें निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति की मन:स्थिति को हम देख एवं महसूस कर सकते हैं-

मेरे हाकिम, मेरे सरकार, अभी मत काटो
हूँ गुनहगार पर पगार, अभी मत काटो

तुम्हारी रोज दिवाली है, ईद-होली है
मुझे बस रोटी की दरकार, अभी मत काटो

बूढ़े माँ-बाप की दवाएँ, फीस बेटी की
और बेटा भी है बीमार, अभी मत काटो

तुम्हारे लोग हैं, पैसा है, मान-शोहरत है
मेरी दौलत मेरा परिवार, अभी मत काटो

बाँध दो हाथ, गुलामी भी लिखा लो मुझसे
आदमी हूँ बड़ा लाचार, अभी मत काटो

मेरे हाकिम, मेरे सरकार, अभी मत काटो
हूँ गुनहगार पर पगार, अभी मत काटो

तुम्हारी रोज दिवाली है, ईद-होली है
मुझे बस रोटी की दरकार, अभी मत काटो

बूढ़े माँ-बाप की दवाएँ, फीस बेटी की
और बेटा भी है बीमार, अभी मत काटो

तुम्हारे लोग हैं, पैसा है, मान-शोहरत है
मेरी दौलत मेरा परिवार, अभी मत काटो

बाँध दो हाथ, गुलामी भी लिखा लो मुझसे
आदमी हूँ बड़ा लाचार, अभी मत काटो|

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