तलाकनामा

समय और समाज की में परिवर्तन के साथ साथ हमारी सामाजिक मान्यताएँ भी बदलती रहती है। सामाजिक मान्यताओं के बदलने के साथ-साथ हमारे कार्य-व्यवहार में भी परिवर्तन होता है। इन्ही परिवरतनों का परिणाम समाज को प्रभावित करता है। 
भारतीय परंपरा में विवाह को विशेष महत्व सौर मान्यता प्राप्त रहती है और ऐसा भी विश्वास है कि पति - पत्नी का संबंध जन्म – जन्मानतर तक का है लेकिन आज वैश्विक प्रमाव के कारण परिस्थितियाँ बदल चूकी हैं । इन्हीं बदली हुई परिस्थितियों में विवाह जैसी महत्वपूर्ण और गरिमामय संस्था पर भी प्रश्न - चिन्ह लगने लगा है। सामाजिक ताने-बाने में परिवर्तन के साथ हमारे समाज में तलाक का प्रचलन बढ़ा है। भारतीय हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक किया जाता है और धारा 13 के अंतर्गत ही तलाक की प्रक्रिया पूरी होती है। इसके अंतर्गत पति-पली आपसी रिश्ते को सामाजिक और कानूनी ढंग से समाप्त करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को लोक कहते है। हमारे देश में तलाक लेने की यो प्रक्रियाएँ है। 
1. आपसी सहमति से
2. किसी एक पक्ष द्वारा एकतरफा लगाकर तलाक लेने की प्रक्रिया आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया, अत्यत आसान सा और सुलभ होती है क्योंकि इसमें दोनों पक्षों की सहमति होती है। 
तलाक लेने की दूसरी प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है, क्यों दि एक पक्ष द्वारा तलाक की मांग की जाती है। अर्यातक पक्ष तलाक लेना चाहता है और एक पक्ष तलाक नहीं चाहता। एसे मे जो पक्ष, तलाक लेना चाहता है, वह न्यायालय के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करता है, जिससे यह प्रमाणित हो कि इस परिस्थिति में तलाक लेना ही बेहतर हैं।  स्थिति में कोर्ट द्वारा सूनवाई के दौरान गुजारा भत्ता और बच्चो की देखरेख  की ज़िम्मेदारी  माता-पिता में से किसी एक को दी जाती है जो कोर्ट द्वारा निधारित की जाती है।
तलाकनामा का प्रारूप 



Comments

  1. Arvind Kumar Meena

    ReplyDelete
  2. मेरे साथ धोका हुआ है मेरे मना करने के बावजूद बी मेरी सादी जबरदस्ती की थी

    ReplyDelete
  3. जब की वह लढकी मूझे पसन्द नही है

    ReplyDelete
  4. मेने केवल मेरी लाइफ मे समझोता कीया है वह औरत मेरी बात तक नही मान्ति सादी के बाद वह ओरत 4 महीनेभर तक अपने माईके मे रही है और ईस बार बी अपने मायके मे ही है तब लेने गया तब माता पिता व लड़की ने मना कर दीया और वापस लोट अपने गाँव लोट आया जय श्री कल्याण जी महाराज

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व