इक्कीसवीं सदी का लोक और भोजपुरी सिनेमा

 साहित्य हमारी चित्तवृतियों का प्रतिबिम्बन करता है। हमारी चित्तवृतियों के भावों की अभिव्यक्ति में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है। अभिव्यक्ति के स्तर पर देखें तो श्रव्य और दृश्य  दोनों माध्यमों से साहित्य की अभिव्यक्ति होती है। दृश्य  माध्यम से सामाजिक मनोभावों एवं परिस्थितियों के अंकन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन काल से अब तक चली आ रही है। वर्तमान काल में दृश्य/श्रव्य माध्यम साहित्य के सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है। नाटकों से आरम्भ होने वाली परम्परा आज के तकनीकी समय में विभिन्न स्तरों पर हमारी सामाजिक स्थितियों एवं परिस्थितियों को अभिव्यक्ति प्रदान कर रही है। इस परम्परा में भारतीय सिनेमा के माध्यम से व्यापक सामाजिक सरोकारों का अंकन देखने को मिलता है।

भारतीय सिनेमा दुनिया भर में देखा और जाना जाता है। भारत में बोली जाने वाली बहुत सी भाषाओं में फिल्म निर्माण और फिल्मों के भाषान्तर की परम्परा चल रही है। इनमें सर्वाधिक फिल्में हिन्दी भाषा में निर्मित हो रही हैं। हिन्दी सिनेमा में भाषाई स्तर पर देखें तो अनेक प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं। क्षेत्रीय आकांक्षाओं और यथार्थ की अभिव्यक्ति के कारण क्षेत्रीय भाषाओं और अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों और उनकी वाक्य-संरचना को भी हिन्दी भाषा में स्थान मिलता रहा है। क्षेत्रीयता और राष्ट्रीय चेतना का सामंजस्य भारतीय परम्परा का मूल भाव है। इसी कारण आगे चलकर हिन्दी भाषा में सिनेमा के निर्माण के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में सिनेमा निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। सुचना-संचार क्रान्ति द्वारा यह भी संभव हुआ है कि देश या दुनिया के किसी भी क्षेत्र में रहते हुए हम अपनी मातृभाषा में फिल्में/समाचार/धारावाहिक इत्यादि देख सकते हैं। 

नयी सामाजिक परिस्थितियों और जीवन स्थितियों के परिणाम स्वरूप भोजपुरी भाषा में भी प्रचुर मात्रा फिल्मों का निर्माण आरम्भ हुआ। भोजपुरी में सिनेमा निर्माण की प्रक्रिया नयी संभावनाओं के द्वार खोले, जिसके परिणामस्वरूप भोजपुरी फिल्मों को विशेष ख्याति मिली। भोजपुरी फिल्मों के वर्तमान, भूत-भविष्य पर विचार करने से पूर्व भोजपुरी भाषा के गत और अनागत पर विचार करना श्रेयष्कर होगा।

भोजपुरी वर्तमान समय में एक ऐसी भाषा के रूप में विख्यात है जिसका तेजी से प्रसार हो रहा है। भोजपुरी शब्द का निर्माण विहार के प्राचीन नगर भोजपुर के आधार पर पड़ा। भाषाई परिवार के आधार पर देखें तो भेाजपुरी एक आर्यभाषा है। भेाजपुरी मुख्य रूप में विख्यात है जिसका तेजी से प्रसार हो रहा है। 

भोजपुरी वर्तमान समय में एक ऐसी भाषा के रूप मे विख्यात है, जिसका तेजी से प्रसार हो रहा है। भोजपुरी शब्द का निर्माण बिहार के प्राचीन नगर भोजपुर के आधार पर पड़ा। भाषाई परिवार के आधार पर देखे तो भोजपुरी एक आर्य भाषा है। भेाजपुरी मुख्य रूप  से पश्चिम  बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बोली जाती है। व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा है। हिन्दी की उपभाषा होने के कारण भोजपुरी अपनी शब्द-सम्पदा के लिए हिन्दी और संस्कृत की ऋणी है। अरबी/फारसी और उर्दू के शब्द भी भेाजपुरी में सामाजिक, सांकृतिक सम्मिलन के परिणाम स्वरूप हिन्दी में आ गये हैं ।

भोजपुरी भाषा भारत में ही नहीं दुनिया भर में बोली एवं समझी जाती है। भोजपुरी भाषा को बोलने वाले लोग भारत के अतिरिक्त सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो, फिजी और मारिसस में बहुसंख्यक के रूप में है। इन महाद्वीपों पर ब्रिटिश राज के समय में मजदूर के रूप में भेाजपुरी भाषी लोगों को ले जाया गया और वो लोग वहाँ जाकर बस गये ब्रिटिश औपनिवेश के समाप्त होने के बाद ये ही लोग अधिकारिक रूप से वहाँ शासन करने लगे। इस कारण भोजपुरी व्यापक स्तर पर बोली एवं समझी  जाने लगी।

भोजपुरी भाषा की अनेक बोली शैलियाँ है। पश्चिमी बिहार की भोजपुरी पूर्वी उत्तर  प्रदेश की भोजपुरी से नितान्त भिन्न हैं, इसी तरह वैश्विक स्तर पर बोली एवं प्रयोग की जाने वाली भोजपुरी की अलग-अलग शैलियाँ हैं। बानी और पानी बदलने की परम्परा भारतीय समाज में कोश-कोश पर देखने को मिलती है। इसे शैली परिवर्तन या भाषा की विविध शैलियों में जाना एवं समझा जाता है। बिहार से निकलकर आज दुनियाँ के हर कोने में भेाजपुरी बोली एवं समझी जा रही है। इस भाषा के प्रसार में भोजपुरी क्षेत्र के लोगों का है, जो जहाँ भी जाते हैं, वहाँ अपनी भाषा के साथ अनुराग रखते हैं और बोलते एवं प्रयोग करते हैं।

भोजपुरी भाषा आज वैश्विक  स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है। इस पहचान के कारण भोजपुरी में बहुत सी फिल्में, धारावाहिक और अन्य मनोरंजक कार्यक्रमों का निर्माण और प्रसार वर्तमान समय में तेजी से हो रहा है। आज 21वीं सदी भोजपुरी सिनेमा एक मुकाम पर पहुँच चुकी है। इक्कीसवीं सदी के भोजपुरी सिनेमा का आज जो स्वरूप है, उसके निर्माण वीसवीं सदी उत्तरार्द्ध  में आरम्भ तब हुआ जब बंबई में आयोजित एक फिल्मी समारोह में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने लोगों से भोजपुरी में फिल्म बनाने का आह्वान किया।

सन् 1950 के वर्षांत में भारत के प्रथम राष्ट्रपति बंबई में आयोजित एक फिल्म समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘मैं जानता हूँ, यहाँ बैठे आप तमाम लोग फिल्मों से सम्बन्धित हैं, आप लोगों से मेरी भी एक मिन्नत है। शायद आप जानते होगें कि मेरी मातृभाषा भोजपुरी है, हालाँकि  साहित्यिक तौर पर समृद्ध तो नहीं, लेकिन सांस्कृतिक  विविधता में सनी बहुत ही प्यारी और संस्कारी बोली है। आप फिल्मकारों की पहल अगर इस ओर भी हो तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी।’’ उनके इस आह्वान से बिहार की सीमा पर स्थित गाजीपुर के निदेशक उनके पास पहुँचे और बोले- ‘‘डॉ0 समझी हम आजे से इ दिशा में प्रयत्नशील हो गइनी जा, रउवा शुभकामना करी।’’

इस शुभकामना और प्रेरणा के ही परिणाम के स्वरूप में हम भोजपुरी सिनेमा के व्यापक और समृद्ध इतिहास और वर्तमान को देख एवं जान रहे हैं। धरती माई, बिहारी बाबू, विदेसियां, गंगा मईया तोहे पियरी चढाईबो, लागी नाहीं छूटे राम, दंगल आदि प्रमुख भोजपुरी फिल्में हैं। भोजपुरी के समान हीं अन्यभाषायें हैं- अवधी, ब्रजी, कन्नौजी, बुन्देली, मगही, बघेली, छत्तीसगढ़ी, मैथिली इत्यादि। लगभग इन सभी बोलियों को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है, लेकिन भोजपुरी भाषा का विकास निरन्तर हो रहा है। इसका मुख्य कारण है कि भोजपुरी भाषा-भाषियों में अपनी भाषा के प्रति एक विशेष तरह का आकर्षण है। जो डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद के वक्तव्य में देखने को मिलता है।

1960 के दशक से आरम्भ हुआ भोजपुरी सिनेमा और मनोरंजन का सफर बदस्तूर जारी है। आज भारत हीं नहीं भारत के बाहर भी भोजपुरी चैनल देखे जा रहे। भोजपुरी के प्रमुख चैनल हैं- दिशुम टी0बी0, हंगामा टी0बी0, संगीत भोजपुरी, भोजपुरी सिनेमा टी0बी0 भास्कर, मुवी भोजपुरी, बी4यू भोजपुरी, महुआ टी0बी0 इत्यादि।  इसके अलावा डी0डी0 बिहार, डी0 डी0 झारखण्ड, डी0डी0 उत्तर प्रदेश जैसे चैनलों के माध्यम से भी भोजपुरी सिनेमा एवं मनोरंजन के प्रसारण का कार्य किया जा रहा है।

20वीं सदी के अन्तिम दषक और 21वीं सदी के आरम्भिक दौर में भोजपुरी में फिल्मों के निर्माण में बहुत तेजी आयी है। भोजपुरी सिनेमा के महत्व के रेखांकित करते हुए महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा है कि- ‘‘हिन्दी के बाद षायद भोजपुरी ही एक ऐसी भाषा है, जो हिन्दुस्तान में  सबसे ज्यादा बोली जाती है। इसलिए मैं अपनी ओर से विशेष बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि लोग भी भोजपुरी सिनेमा को प्रोत्साहित करेंगे।’’

भोजपुरी सिनेमा के विकास में भोजपुरी भाषा ने अपना योगदान दिया। हिन्दी के बाद भोजपुरी ही एक भाषा है जिसका प्रसार निरन्तर हो रहा है। भोजपुरी भाषा के विकास और प्रसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका भोजपुरी क्षेत्र के लोगों की जो अपने घर-परिवार से बाहर रहकर भी भिन्न भाषा परिवेश में रहते हुए भी अपनी भाषा के प्रति अनुराग बनाये हुए हैं। इसी अनुराग के परिणाम स्वरूप भोजपुरी भाषी अपने मनोरंजन के लिए भी अपनी भाषा को एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में स्वीकार करते हैं।

भोजपुरी सिनेमा और भोजपुरी मे बनने वाले धारावाहिकों की सबसे बड़ी शक्ति भोजपुरी भाषीयों का अपनी भाषा के प्रति अनुराग ही है। भोजपुरी सिनेमा का विकास इक्कीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षो में तेजी से हुआ, इसके विकास की पृष्ठभूमि 1960 के दशक में ही आरम्भ हो गयी थी। क्षेत्रीय भंगिमा के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषा के प्रति रूझान हिन्दी सिनेमा में काफी समय से देखने को मिलता रहा है। रंगमंच और सिनेमा का अत्यन्त घनिष्ट संबंध है। रंगमंच का विकसित, परिष्कृत एवं परिमार्जित रूप ही सिनेमा है। हिन्दी सिनेमा के समान ही भोजपुरी सिनेमा को विकास की प्रक्रिया भी रंगमंच से ही होकर गुजरती है। 

भोजपुरी रंगमंच से गुजरते हुए भोजपुरी सिनेमा आज एक मुकाम पर पहुँच चुकी है। अपनी विकास यात्रा में भोजपुरी सिनेमा अनेकानेक आरोह-अवरोह से गुजरते हुए वैश्विक  फलक पर अपने आप को प्रतिष्ठत कर चुकी है। इक्कीसवी सदी में भोजपुरी सिनेमा का प्रसार सिने थियेटर के साथ-साथ टी0वी0 चैनल और मोबाइल तक पहुँच चुका है। भोजपुरी सिनेमा के वर्तमान स्वरूप के निर्माण में भोजपुरी क्षेत्र के लोगों का विशेष योगदान है। इस संबंध में विनय आनन्द का कथन है कि - ‘‘मै मुंबई का जरूर हूँ, लेकिन दिल से बिहारी हूँ, भोजपुरिया हूँ। मै भी चाहता हूँ कि भोजपुरी में मेरे दर्शक  समाज के हर तबके के लोग बनें। इसके लिए सोच थोड़ी बदलनी पड़ेगी।’’

भोजपुरी सिनेमा में एक दौर ऐसा भी आया जब अश्लील फिल्मों का दौर आरम्भ हुआ, लेकिन आज भोजपुरी में ऐसी फिल्में बहुतायत बन रही हैं, जिन्हें हम अपने परिवार के साथ देख सकते हैं। 1979 में निर्मित ‘बलम परदेशिया’ ने भोजपुरी में सिने जगत में क्रान्ति की लहर पैदा कर दी। अस्सी और नब्बे का दशक भोजपुरी फिल्मों के लिए सुनहरा दौर था। अत्यधिक तादाद की प्रमुख भोजपुरी फिल्में - हमार बेटवा (1990), भाई (1991), उधार की बेटी (1991), कजरी (1991), हो जाईद नैना चार (1992), राम जईसन भईया हमार (1993), कब अइहैं दूल्हा हमार (1993), बैरी कँगना (1993), जुग-जुगजिया मोरे लाल (1993), लागल चुनरी में दाग (1994), चल सखी दूल्हा देखी (1994) आदि हैं।

बीसवीं सदी में भोजपुरी सिनेमा का जो सफर आरम्भ हुआ, वह इक्कीसवीं सदीं में भोजपुरी सिनेमा का प्रसार तेजी से हुआ। आज भोजपुरी सिनेमा का कारोबार 2000 करोड़ से अधिक का है। 2003 में ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’ का निर्माण हुआ, यह अब तक की सर्वाधिक कमाई वाली भोजपुरी फिल्म है। वर्तमान समय में निर्मित भोजपुरी फिल्में अपने सामाजिक सरोकारों और लालित्य पूर्ण संवादों के कारण उस समाज द्वारा भी स्वीकृत हो रही हैं, जिस समाज की मातृभाषा भोजपुरी नही है। यह हम भोजपुरी भाषियों की शक्ति ही है। भोजपुरी एक समृद्ध भाषा है और निरन्तर समृद्ध होती जा रही है। इसकी समृद्धि का आधार भोजपुरी क्षेत्र के लोगों द्वारा विश्व भर में आना -जाना और वहाँ रहकर भी अपनी भाषा को जीवन्त रखना भोजपुरी भाषा के प्रति अनिवार्य आकर्षण ही है।

भाषा और समाज का घनिष्ठ संबंध है। कोई भी भाषा तभी जीवित रहती है, जब उसे व्यवहार करने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ती रहे और उस भाषा में साहित्य रचा जा रहा हो। आज के समय भोजपुरी भाषा में फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ अच्छे से अच्छे गीत एवं संवाद लिखे जा रहे है। यही भोजपुरी फिल्मों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। भोजपुरी सिनेमा के महत्वपूर्ण सफर को रेखांकित करते हुए फिल्म समीक्षक अंशु त्रिपाठी ने लिखा है कि-

‘‘अपने संघर्ष से अपनी जमीन बनाने वाले भोजपुरी सिनेमा ने अपने सफर में कई उतार-चढ़ाव देखें हैं। सन् 1962 से लेकर अबतक करीब ढाई सौ भोजपुरी फिल्में बन चुकी है। और इसका सफर अब भी जारी है। यद्यपि बीच में ऐसे दौर भी आये जब इस भाषा में फिल्में बननी बंद हो गयीं। फिर भी इसका सिलसिला रूका नहीं। .....................वर्षो की एक लम्बी यात्रा तय करने के बाद भोजपुरी फिल्में आज उस सुखद ऐतिहासिक स्थिति में पहुँच गयीं है, जहाँ उसके संास्कृतिक अस्तित्व और व्यवहारिक महत्व से कोई इंकार नही कर सकता।’’

 भोजपुरी समाज की अपनी संास्कृतिक और धार्मिक मान्यता और आस्था है। इसका प्रभाव भोजपुरी सिनेमा पर इसी सांस्कृतिक आस्था का प्रभाव भोजपुरी फिल्मों के षीर्षक से भी द्योतित होता है- धरती मइया, गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाईबो, नदीया के पार, गंगा किनारे मेरा गांव, दुल्हा गंगा पार के, भैया दूज, बैरी सावन, बसुरिया बाजे गंगा तीरे, गंगया मैया कराद मिलनवा, गंगा और गोदना इत्यादि। अपनी धरती और प्रकृति के प्रति भोजपुरी सिनेमा की आस्था देखते ही बनती है। गंगा और गांव की महत्ता  भोजपुरी सिने जगत में आदि से लेकर अब तक देखने को मिल रही है। लोक जीवन और लोक संस्कृति के प्रति अगाध आस्था का भाव ही आज भोजपुरी फिल्म जगत को निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर किये हुए है।

लोक भाषा, लोक संस्कृति और लोक जीवन से भोजपुरी सिनेमा का सफर आरम्भ होता है। इक्कीसवी सदी में भी फिल्मों की विषय-वस्तु अधिकाषतः लोक जीवन और लोक संस्कृति ही है। बीसवीं सदी के आरम्भ से भोजपुरी सिने जगत में एक विषेष उत्साह देखने को मिलता है। 2003 में निर्मित मनोज तिवारी की ‘ससुरा बड़ा पैसा वाला’ ने अपने सरोकारों के कारण कमाई का नया कीर्तिमान स्थापित किया। यहाँ से भोजपुरी सिनेमा पुनर्नवित होकर निरन्तर विकासवान है। 2003 से लेकर अब तक भोजपुरी सिनेमा में जो नयापन आया उसमें सूचना एवं संचार क्रान्ति का विषेष योगदान है। सन् 2009 भोजपुरी मनोरंजन जगत के विषेष महत्व का है।

इस वर्ष हमार टी0वी0 और महुआ टी0वी0 समेत अनेक भोजपुरी चैनल आये। भोजपुरी चैनल के साथ-साथ भोजपुरी फिल्म की ट्रेड मैगजीन भोजपुरी सिटी एवं भोजपुरी संसार समेत कई सिनेमाई पत्रिकाओं का प्रकाषन आरम्भ हुआ। इसके साथ-साथ देष के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में और न्यूज पोर्टल पर भी भोजपुरी मनोरंजन जगत से जुड़ी खबरों का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इक्कीसवीं सदी में भोजपुरी एक भाषा के रूप में समृद्ध हुई ही है, इसके साथ-साथ सिने जगत में भी व्यापकता देखने को मिलता है।

इक्कीसवीं सदीं अपने आरम्भ से ही भोजपुरी सिनेमा के लिए बहुत उर्वर रहा है। या वह समय है जब भोजुपरी सिनेमा की ओर हिन्दी सिनेमा के नामी कलाकारोें का रूझान बढ़ा। भोजपुरी फिल्मों में कार्य करने वाले प्रमुख नायक/नायिका है- अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, लूही चावला, मिथुन चक्रवर्ती इत्यादि। धीरे-धीरे भोजपुरी सिनेमा में आय बढ़ी और आय बढ़ने के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों का बजट भी बढ़ा, और इसकी षूटिंग लंदन, मारिषस और सिंगापुर में भी होने लगी। इस दौरान हिन्दी फिल्मों के कई बड़े निर्माता-निर्देषक जैसे- सुभाष घई, सायरा बानो और राजश्री प्रोडक्शन आदि ग्रुप भोजपुरी फिल्में बनाने के लिए अग्रसर हुए। भोजपुरी भाषा और फिल्मों का विकास निरन्तर समानान्तर गति से होता रहा है। इसका प्रमुख कारण इसकी लोक के ¬प्रति अगाध जुड़ाव ही है। लोक पर्व, लोक जीवन, लोक गीत, लोक रंग और लोक संस्कृति के रूप भोजपुरी फिल्मों में देखने को मिलती है। भोजपुरी सिनेमा वर्तमान समय में देश-देशान्तर में देखी जा रही है। इसे दृष्टिगत रखते हुए अंशु त्रिपाठी वर्तमान समय को भोजपुरी सिनेमा का स्वर्ण युग कहते हैं- ‘‘भोजपुरी सिनेमा अपने विकास के स्वर्णिम युग में है। भोजपुरी समाज से इतर भी इसने अपना दर्षक वर्ग निर्मित किया है। बिहार और उत्तर  प्रदेश के अलावा देश के अन्य भागों में भी भोजपुरी फिल्में देखी जा रहीं हैं। भोजपुरी सिनेमा के निर्माण में बृद्धि से उत्तर  प्रदेश, बिहार के बहुत सारे सिनेमा घरों को जीवनदान मिल गया है, जो बंद होने के कगार पर आ गये थे। भोजपुरी सिनेमा ने उन सभी कलाकारों को कैरियर भी प्रदान किया, जो हिन्दी सिनेमा में अवसर तलाश कर रहे थे और जिनका कैरियर अपने ढलान पर था। भोजपुरी सिनेमा के सबसे सफल अभिनेता रविकिशन ने भी हिन्दी सिनेमा में असफल होने के बाद भोजपुरी का दामन था, जिसके बाद उन्होनें सफलता की ऊँचाइयाँ छुईं और भोजपुरी सिनेमा में सफल होने के वजह से ही हिन्दी सिनेमा में भी काम मिलना शुरू हुआ ,तथा एक अच्छे अभिनेता के रूप में उनकी पहचान बनी।’’

हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाएं एक ही भाषा परिवार की हैं। दोनों भाषाओं में व्याकरणिक एवं शब्दावली के स्तर बहुतायत समनताएँ हैं। भोजपुरी भाषा हमेशा  से हिन्दी भाषा एवं साहित्य को प्रभावित करती रही है। भोजपुरी साहित्यकारों ने हिन्दी सिनेमा को अनेक विषय-वस्तु प्रदान किया है। 1960 से आरम्भ हुआ भोजपुरी सिनेमा का सफर आज भी उŸारोंŸार विकासमान है। इक्कीसवीं सदीं में भोजपुरी सिनेमा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। अपनी माटी, अपनी भाषा और अपने लोगों के प्रति अगाध लगन एक महत्वपूर्ण कारण रहा। इसके साथ-साथ सूचना संचार की क्रान्ति ने भोजपुरी सिनेमा को उसके दर्शकों  और आस्वादकों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भोजपुरी सिनेमा के स्वरूप में जो भी विस्तार हुआ है उसका सबसे महत्वपूर्ण कारण इसकी मिठास और लोक संस्कृति मिठास और लोक संस्कृति के प्रति लगाव है। इक्कीसवीं सदी के भोजपुरी फिल्मों की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित है-

1. लोक जीवन का जीवन्त अंकन।

2. लोक गीतों एवं लोक धुनों का फिल्मांकन।

3. लोक संस्कृति के विविधता का अंकन और चित्रण।

4. भोजपुरी क्षेत्र में प्रचलित पर्वो एवं रीति-रिवाजों का अंकन।

5. भोजपुरी फिल्मों के माध्यम से भोजपुरी क्षेत्र की आकांक्षाओं को प्रस्तुत कर वैश्विक  स्तर पर पहुँचाने में योगदान।

6. भोजपुरी सिनेमा का हमारी भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता के सरंक्षण में विशेष योगदान।

इक्कीसवीं सदीं में भोजपुरी सिनेमा ने सिने जगत में भी अपना विशेष स्थान बना लिया है। भोजपुरी सिनेमा जगत का तेजी से विकास हो रहा है। इस विकास का सबसे बड़ा कारण भोजपुरी क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। गंगा भोजपुरी क्षेत्र की लाइफ लाइन है और यह जीवन धारा भोजपुरी फिल्मों का सशक्त आधार है। भोजपुरी भाषा की विशेषता  के सन्दर्भ में हिन्दी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन का कथन है कि- ‘‘ हिन्दी के बाद शायद भोजपुरी ही एक ऐसी भाषा है जो हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा बोली जाती है। इसलिए मैं अपनी ओर से बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि लोग भी भोजपुरी सिनेमा को प्रोत्साहित करेंगें। भोजपुरी सिनेमा को सबसे ज्यादा प्रोत्साहन भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी से मिला था। उसी क्रम में हमारे सिनेमा-जगत् के बहुत ही नामी हस्ती नजीर हुसैन साहब से भोजपुरी सिनेमा का बहुमूल्य योगदान प्राप्त हुआ। मैने स्वयं भी भोजपुरी सिनेमा में काम किया है, उम्मीद करता हूँ कि मेरी तरह और भी कलाकार भोजपुरी सिनेमा में काम करेंगे। जैसा कि मैं मानता हूँ, सिनेमा की भाषा एक होती है, वह चाहे हिन्दी में बने या भोजपुरी में- भावनाएँ तो एक ही होती है।’’

-


भोजपुरी सिनेमा और भाषा का उज्जवल भविष्य है। इक्कीसवीं सदी की सूचना संचार क्रान्ति ने भोजपुरी फिल्मों के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भोजपुरी सिनेमा और भाषा की व्यापकता आज वैश्विक  स्तर पर देखने को मिल रही है। भोजपुरी टी0वी0 चैनल, रेडियों चैनल, पत्र-पत्रिकाओं द्वारा भोजपुरी क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत के सहेजने की दिशा में जो भी प्रयास हो रहे हैं उसका आरम्भ भोजपुरी फिल्मों से ही हुआ है। समग्रतः भोजपुरी सिनेमा आज एक विशिष्ट  स्थान पर पहुँच चुका है, जिससे भोजपुरी क्षेत्र के लोगों को सांस्कृतिक, भाषाई समृद्धि के साथ-साथ आर्थिक स्तर पर भी लाभ हो रहा है।


Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व