गांव की चुल्हा -चक्की
गांव की वो चक्की जिसमें ना जाने कितनी माताओं ने गेंहू पीसा और वो चुल्हा जिस पर घर भर के पोषण का जिम्मा था, अब बन चुकी इतिहास है. अपने अमिटी ला स्कूल के निदेशक मित्र के साथ हमारा उनके गांव जाना हुआ. ना जाने क्यूँ गांव की आदिम महक आज भी हमें मोहित और आह्लादित करती है. जैसे निदेशक महोदय ने अपने गांव घोंसली जाने को कहा, मैं उनके साथ हो लिया.
माटी की सुगन्ध और गांव का आदिम अपनापन हमें बहुत ही ऊर्जावान बना देता है.ऊपर तस्वीर में जो चुल्हा और चक्की है ना वो मन में लोक की उस तस्वीर को उभार कर रख देती है, जिस लोक को फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में अक्सर पढता और महसूस करता आया हूँ. रेणु एक ऐसे कलमकार हैं जिन्होंने शब्दों में रंग, गंध और चित्र प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता का परिचय दिया है. घोंसली जाकर मन इतना रम गया कि क्या कहें, सचमुच यह यात्रा जीवन की तमाम यात्राओं में विशिष्ट इस कारण भी रही कि ठेठ गाँव और ग्राम्य भाषा से रुबरु होने के साथ- साथ सहज लोगों से मिलकर जीवन की जीवन्तता का एहसास भी हुआ. धन्य हैं वो लोग जो तमाम सुख सुविधा से वंचित रहते हुए भी जीवन का असली आनन्द ले रहे हैं, शायद यह आनन्द हम लोगों से दूर और बहुत दूर है.
Thanks Dr Amrendra to narrate the my village story.
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteNice
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