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Showing posts from 2022

Break- Up

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Break Up (I have switched off my feelings. You should also do so) अमन बाबू अब तक अपने आप एकांत के लिए साध चुके थे।रुचि के छोडने के बाद  उस भावदशा और मनोदशा में एक अर्से तक रहे । फिर धीरे-धीरे एकांत और मौन उनके चरित्र में रच गया था। अब वो जरूरी होने पर ही संवाद करते थे। संवेदना के नाम पर कुछ यादें ही थीं जो उनके समग्र बजूद को झकझोरने के पर्याप्त थीं। इसके अलावा सब कुछ पहले से ठीकठाक था। यादों और बातों का विचित्र संयोग है।ये दोनों ही आपके बजूद को स्याह कर देतीं हैं। आज अमन बाबू फिर से स्याह और व्यथित मन के साथ अपने बिखरे हुए और ना समेटे जा सकने वाले बजूद को फिर निहार रहे हैं।आखिर रुचि के जाने के उस बन्द भाव जगत को किसी के दस्तक पर खोले ही क्यूँ? सामने यादें बिखरी हुईं पडीं थी - लिपस्टिक लगी  डिस्पोजल गिलास  और ऐसी ही पलास्टिक की गिलास, आंसू से भिगे और फिलहाल सुखे टिस्सू पेपर और ना जाने कितनी चीजें। बिखरी चीजें तो सिमट जायेंगी मगर .........................। का जाने अब खलिहर अमन बाबू का क्या होगा ?बातें बकवास और पागलोंवाली करता है अब ये अमनवा। Feelings thi Relation nahi. ...

असाध्य वीणा कविता की काव्यगत विशेषता.

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 असाध्य वीणा कविता का मूल पाठ असाध्य वीणा कथ्य एवं नामकरण अभिव्यक्ति पक्षः भाषा असाध्य वीणा:कथ्य एवं नामकरण - अज्ञेय द्वारा रचित यह कविता आंगन के पार द्वार काव्य संग्रह में संकलित है असाध्य वीणा की रचना उतराखण्ड के गिरि प्रान्त में जून 1961 के दौरान हुईथी। यह अज्ञेय की पहली लम्बी कविता है, जो जापानी कथा पर आधारित है। इसके मूल में रहस्यवाद और अहं के विसर्जन का कथ्य निहित है।  नामकरण- प्रस्तुत कविता का शीर्षक असाथ्य वीणा है जो स्वयं में कविता को सम्पूर्ण विषयवस्तु का आभास करने में समर्थ  है। कविता के आरम्भ में जब प्रियबंद केशकम्बकी राजा के यहॉं आते हैं, तो राजा इनको आसर देते हैं और राज के संकेत से उनके गण बीणा को लाते हैं और राजा उस बीणा के संबंध में प्रियबंद को बताते है कि बज्रकीर्ति ने इसे किरीटी तरू से अपने पूरे जीवन इसे गढ़ा था। बीणा पूरी होते ही उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। आगे राजा स्पष्ट करते हैं कि इसीवीणा को बजाने में उनकी जाने माने कलाकार भी सफर हूए। इसीलिए इस बीणा को असाध्य बीणा कहा जाने लगा। मेरे हार गये सब जाने माने कलावन्त सबकी विद्या हो गयी अकारथ, दर्प चूर को...

वाक्य और उसके भेद

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  वाक्य- शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं । जब कोई शब्द कारक चिन्हों के आधार पर दूसरे शब्द से जुड़ता है , और एक निश्चित भाव प्रकट करता है तो उसे वाक्य कहते हैं । वाक्य के अंग }   उद्देश्य-  वाक्य की पूर्णता भाव-सम्प्रेषण पर निर्भर होती है। इसके लिए दो वैयाकरणिक तत्त्वों की उपस्थिति अनिवार्य है। उनमें से एक है उद्देश्य अथवा विषय। उद्देश्य का तात्पर्य है वह व्यक्ति, वस्तु या स्थान जिसके बारे में वाक्य में सूचना, तथ्य या विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। व्याकरण शास्त्र में इस तत्व को विषय के नाम से जाना जाता है। विषय की उद्देश्य भी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है कि वाक्य के इस अंग के अन्तर्गत वाक्य की रचना, कथन या लेखन के उद्देश्यभूत विषय का कथन किया जाता है। उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम या क्रिया को रखा जा सकता है।  उदाहरण के लिए - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। व्यायाम से शरीर स्वस्थ तथा बलवान होता है। }   विधेय-  वाक्य का दूसरा अंग है-अभिधेय इस अंश के अन्तर्गत विषय के बारे में तथ्य सूचना या विचार प्रस्तुत किया जाता है। दूस...

संबंध बोधक अव्यय

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  जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या   सर्वनाम   का संबंध अन्य शब्दों के साथ बताते हैं उन्हें संबंधबोधक कहते हैं. हम यह भी कह सकते हैं कि जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के बाद आकर वाक्य के दूसरे शब्द के साथ सम्बन्ध बताए उसे संबंधबोधक कहते. उदाहरण   : अन्दर , बाहर , दूर , पास , आगे , पीछे , बिना , ऊपर , नीचे आदि. ›   संबंधबोधक शब्द के मुख्य बारह भेद होते हैं : कालवाचक संबंधबोधक   – जिन शब्दों से हमें समय का पता चलता है उसे कालवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : पहले , बाद , आगे , पीछे , उपरांत आदि. स्थानवाचक संबंधबोधक   –   जो शब्द स्थान का बोध कराते हैं उन्हें स्थानवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : आगे , पीछे , नीचे , सामने , नजदीक , यहाँ , बीच , बाहर , परे , दूर. दिशावाचक संबंधबोधक   – जो शब्द दिशा का बोध कराते है उन्हें दिशा वाचक संबंधबोधक कहते है. जैसे : ओर , तरफ , पार , प्रति , आरपार , आसपास. साधनवाचक संबंधबोधक   – जिन शब्दों से किसी साधन का बोध होता है उन्हें साधनवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : द्वारा , जरिए , हाथ , बल , कर , माध्य...

अज्ञेय की काव्यगत विशेषताएँ

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सन् 1932 में ब्रिटेन में माइकेल राबर्टस ने न्यू सिगनेचर्स नामक एक काव्य संग्रह प्रकाशित किया था। इसमें आडेन, एम्पसन, जान लेहमन, स्पेन्डर आदि की रचनांए संग्रहीत थीं। इन कवियों ने परम्परागत काव्य पद्धतियों को अधूरा समझकर नई दिशाओं की खोज की; पुराने के प्रति असन्तोष तथा नए के अन्वेषण में सभी संलग्न थे। अज्ञेय द्वारा प्रकाशित तार सप्तक 1943  की भूमिका में न्यू सिग्नेचर्स की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। 1947 में अज्ञेय द्वारा प्रकाशित ‘प्रतीक’ पत्र इस काव्यान्दोलन को पुष्ट करता है। https://youtu.be/u-AAd-8Ud1M प्रयोगवाद शब्द का  प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी ने अपने निबन्ध प्रयोगवादी रचनाएं में किया। इस निबन्ध में मुख्यतः तार सप्तक की समीक्षा की गई है, जिसमें उन्होने लिखा है कि पिछले कुछ समय से हिन्दी काव्य क्षेत्र में कुछ रचनाएं हो रही है, जिन्हें किसी सुलभ शब्द के अभाव में प्रयोगवादी रचना कहा जा सकता है। दूसरा सप्तक की भूमिका में अज्ञेय ने बाजपेयी का उत्तर देते हुए तार सप्तक की रचनाओं को प्रयोगवादी कहना स्वीकार नहीं किया है। प्रयोग का कोईवाद नहीं हैं। अतः हमें प्रयोगवा...

उत्तर आधुनिकता क्या है ?

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उत्तर आधुनिकता आधुनिकता की तरह पाश्चत्य चिन्तन परम्परा की देन है ,जैसे - जैसे हमारे सामाजिक जीवन में परिवर्तन होते हैं, वैसे- वैसे हमारा चिन्तन भी बदलता जाता है. आज का हमारा जीवन बाजार पर आधारित हो चला है . उत्तर आधुनिकता उन्हीं में से एक अत्यंत जटिल प्रत्यय है। समाधी दर्शन के रूप में उसका कोई निश्चित निर्मित नहीं हो पाया है। कुछ लोगों द्वारा मार्क्सवादी दर्शन(हालैटिक्स) द्विधम सामाजिक परिवर्तनों राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संक्रमणों आदि के रूप में देखा जा रहा है। कभी-कभी उसे आधुनिकतावाद कारण अथवा विकिरण भी समझ गया है बौद्धिक मौका जे इसे एक जटिल अवधारणा विचार बना दिया है। उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टि आधुनिकतावादी धारणा के गर्भ से उत्पन्न क्रमण है। अतः आवश्यक है कि इस प्रत्यय को स्पांकित करने से पूर्व पश्चिम के वैचारिक परिदृश्य को दृष्टिपथ में रखा जाए और इस क्षेत्र को विधारणाओं को समुद्र कर कुछ पर पहुँचा जाये . उत्तर आधुनिकता उन्हीं में से एक अत्यंत जटिल प्रत्यय है। समाधी दर्शन के रूप में उसका कोई निश्चित निर्मित नहीं हो पाया है। कुछ लोगों द्वारा मार्क्सवादी दर्शन(हालैटिक्स) द्विधम सामाजिक परि...