मुक्तिबोध : बहुत दिनों से

    मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य बहुपठित एवं बहुचर्चित हैं ,आपने अपनी कविता के माध्यम से जीवन जगत की वास्तविकता को समाज के समक्ष प्रस्तुत करने कार्य किया है . मुक्तिबोध एक नये  के प्रकार संवेदन के कवि के रूप में जाने जाते हैं . विरोध से विद्रोह तक का स्वर हम मुक्तिबोध की कविताओं में देख सकते हैं . बहुत दिनों से कविता के माध्यम से एक नए तरह को प्रस्तुत किया है . भाव ,भाषा और भंगिमा सभी दृष्टियों से यह कविता विशिष्ट है .


मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से 

बहुत-बहुत-सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना 

और कि साथ-साथ यों साथ-साथ 

फिर बहना बहना बहना 

मेघों की आवाजों से 

कुहरे की भाषाओं से 

रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना 

है बोल रहा धरती से 

जी खोल रहा धरती से 

त्यों चाह रहा कहना 

उपमा संकेतों से 

रूपक से, मौन प्रतीकों से 

............

मैं बहुत दिनों से बहुत-बहुत-सी बातें 

तुमसे चाह रहा था कहना 

जैसे मैदानों को आसमान ,

कुहरे की ,मेघों की भाषा त्याग 

विचारा आसमान कुछ 

रूप बदलकर रंग बदलकर कहे .

Comments

  1. बहुत ही अच्छी कविता है।
    और मेरे लिए मुक्तिबोध की
    ये नई कविता है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व