Story of Cute Love in full flow of Heart :प्रेम और भाषा के सहजता की प्रथम कथा (उसने कहा था -1915)
उसने कहा था
हिन्दी साहित्य के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी हैं जिन्हें जितनी बार पढ़ा जाये उसमें ताजगी देखने को मिलती है ।ऐसी ही एक कहानी है "उसने कहा था"। उसने कहा था हिन्दी की आरम्भिक कहानियों में से है ,लेकिन शिल्प और भाषा की दृष्टि से इसका अवलोकन करें तो यह अपने आप में बेजोड़ है । मानवीय संबंधों और संवेदन के अनेकानेक रूपी जगत में आदर्श प्रेम की इस कथा को पढ़कर मन में एक अजीब सा सुकून उत्पन्न होता है । कहानी के आरम्भ में लेखक कहता है कि – बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जुबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है,और कान पक गये हैं , उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबुकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें । जब बड़े-बड़े शहरों चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट संबंध स्थापित करते हैं , कभी-कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने तरस खाते हैं .....................तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में हर-एक लद्धि वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमडाकर बचो खालसा जी हटो भाई जी ............. ।क्या मजाल कि जी और साहब सुने बिना किसी को हटना पड़े । यह बात नहीं की उनकी जीभ चलती नहीं,पर मीठीछुरी की तरह महीन मार करती हुई यदि कोई बुढिया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती ,तो उनकी बचानावाली के ये नमूने हैं –
हट जा जीर्ण जोगिए ,
हट जा करामावालिये,
हट जा पुता प्यारिये
,बच जा लंबी उमरावालिये ।
बोली का मरहम अपने आप में इस बात को ध्वनित करता
है कि कहानीकार भाषा और बोली में सहज मानवीय प्रेम के प्रति कितना सजग है । इस
प्रेममय परिवेश में यह क्यूट लव की कथा
विकसित होती है । अमृतसर के भीड़-भाड वाले इलाके में एक किशोर जोड़ा मिलता है और
उनके बीच संवाद होता है । लड़का रोज-रोज पूछता है तेरी कुडमाई हो गई और लड़की धत
कहकर चली जाती है , अनजाने ही उनके बीच में एक रिश्ता बंध जाता है और यह रिश्ता ताउम्र निभाया जाता है । इस कहानी के
माध्यम से चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी इस प्रेम कहानी को हमेशा के लिए अमर कर दिया
है ।
जब लड़के-लड़की बीच अमृतसर में आखिरी
मुलाकात होती है और लड़के को पता चलता है कि लड़की की कुडमाई हो गई है तब वह विचलित
हो जाता है , महीने भर के बातचीत के शिलाशिले के बाद जब लड़का पूछता है कि तेरी कुडमाई गई तो
लड़की कहती है –
हाँ , हो गई ।
कब ?
--कल ,देखते नहीं यह
रेश्म से कढ़ा हुआ सालू ।
इतना कहकर लड़की भाग जाती है । लड़की के जाने बाद लड़का सीधे अपने घर की ओर चल देता है ,और रास्ते में एक लड़के को नाली में ढ़केल देता है , एक छाबड़ी वाले की दिन भर कमाई गिरा देता है , कुत्ते को पत्थर मारता है .गोभी वाले के ठेले में दूध उड़ेलते हुए एक लड़की से टकरा कर अंधे की उपाधि पाते हुए घर पहुचता है ।
प्रेम का आदर्श तब घनीभूत हो जाता है ,जब सुबेदारिनी लहना सिंह को बुलाती है । क्षणिक मुलाकात और प्रेम अब आदर्श प्रेम में बदल जाता है ,और लहना सिंह का प्रेम जी उठता है । सुबेदारिनी लहना सिंह को बुलाती है और कहती है -
--मुझे पहचाना?
-- नहीं।
-- 'तेरी कुड़माई हो गयी? ... धत्... कल हो गयी...
देखते नही, रेशमी बूटों वाला सालू... अमृतसर में...
भावों की टकराहट से मूर्च्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला।
-- वजीरासिंह, पानी पिला -- उसने कहा था ।
स्वप्न चल रहा हैं । सूबेदारनी कह रही है-- मैने तेरे को आते ही पहचान
लिया। एक काम कहती हूँ। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है,
लायलपुर में ज़मीन दी है, आज नमकहलाली का
मौक़ा आया है। पर सरकार ने हम तीमियो की एक घघरिया पलटन क्यो न बना दी जो मै भी
सूबेदारजी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भरती हुए उसे एक ही
वर्ष हुआ। उसके पीछे चार और हुए, पर एक भी नही जिया ।
सूबेदारनी रोने लगी-- अब दोनों जाते हैं । मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन
टाँगे वाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे
प्राण बचाये थे। आप घोड़ो की लातो पर चले गये थे। और मुझे उठाकर दुकान के तख्त के
पास खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे
मैं आँचल पसारती हूँ।
यह कहना और लहना सिंह का उस क्षणिक किन्तु दीर्घ प्रेम के बदले अपना सर्वोच्च त्याग इस कहानी को विशिष्ट प्रेम की कथा के रूप में अमर कर देता है ।इस कहानी की विषय-वस्तु को आधार बनाकर हिन्दी में एक फिल्म का भी निर्माण हुआ है ,जो बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय हुआ ।
उसने कहा था. निर्देशक, मोनी
भट्टाचार्य. निर्माता, बिमल राय प्रोडक्सन्स. लेखक, चन्द्रधर
शर्मा 'गुलेरी'. अभिनेता, सुनील दत्त, नन्दा,
राजेन्द्रनाथ, दुर्गा खोटे, तरुन बोस।
प्रेम हृदय का दूसरा नाम है।जो सरसता तथा भाव से भरा होता है। उसने कहा था इस कथन का साक्ष्य है।
ReplyDeleteआभार आपका
ReplyDeleteVery nicely done sir.. kudos for the good work..
ReplyDeleteThanks Dear
ReplyDeleteयह कार्य में पड़ी है गुरु जी और आपने इस कहानी की बहुत ही अच्छी व्याख्या पर की है सच में यहां पर लहना सिंह का प्रेम एक आध्यात्मिक प्रेम है ....उनकी खुशी के लिए अपनी जान को न्योछावर करना और हर हाल में खुश रखना.... बहुत बहुत ही अच्छी व्याख्या
ReplyDeleteधन्यवाद आपका ।
ReplyDeleteSir aapne bahut sundar dang se eski prastuti ki h.sach much prem ka vastvik darshan h usne kaha tha kahani.esliy chandradhar ji ki yah kahani pathko ko hamesha hi utna hi Mohit karti h jitni bhi bar use padha jay.👍
ReplyDeleteThank You Too Much
ReplyDeleteThanks
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