उदात्त सिद्धांत ( लोंगिनुस /लोंग्जाइनस )
पाश्चत्य काव्यशास्त्र में उदात्त सिद्धांत का विशेष महत्व है । प्लेटो और अरस्तू से भिन्न और उसके समकालीन साहित्य शास्त्र में उदात्त सिद्धांत को स्थान दिया गया है ।उदात्त का प्रतिपादन लोंगिनुस ने किया । लोंगिनुस मूलतः भाषणशास्त्री था , उसके द्वारा रचित पेरिहुप्सुस का एक तिहाई ही प्राप्त हुआ । जो अपने आप में विलक्षण ग्रन्थ है , यह साहित्य शास्त्र का सौभाग्य है कि यह ग्रन्थ अधूरे में ही सही मिला तो सही । इसके माध्यम से लोंगिनुस ने उदात्त सिद्धांत को साहित्य जगत के सम्मुख रखा । यह अपने आप में एक असाधारण लेख है , जिसमें एक प्रभावशाली रचना के गुणों का विवेचन किया गया है ।
लांगजाइनस सिद्धांत का प्रतिपादक - लोंगिनुस/ लांगजाइनस
उदात्त की महत्ता - उदात्त के प्रतिपादक तत्वों का समावेश कर किसी रचना को सर्वकालिक महान रचना बना सकते हैं, इसका महत्व सम्मोहन में है. लोंजाइनस ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन अपने विस्मयकारी ग्रन्थ पेरिहुप्सुस में किया.It is height of sublime. ( वाग्मिता का प्रकर्ष)
लोंगिनुस का समय प्रथम ई. से लेकर तीसरी ई. के बीच माना जाता है । लोंगिनुस के नाम और उअसके समय
को लेकर आलोचकों में एक मत नहीं है ,लेकिन उसके द्वारा प्रतिपादित
उदात्त को सभी ने मुक्त कन्ठ से स्वीकार किया है।कुछ विद्ववान इनका नाम लोंगिनुस
मानते हैं तो कुछ लोंग्जाइनस मानते हैं । यह अपने आप में एक विस्मयकारी ग्रन्थ भाव, भाषा अलंकार और पद-रचना सभी के बारे में विचार करते हुए लोंगिनुस जो बातें कहीं उसमें सम्मोहन करने
वाली रचना को उत्कृष्ट रचना के रूप में स्वीकार किया है । उदात्त के प्रतिपादक के रूप निम्नलिखित तत्वों को स्वीकार
किया है -
- महान
विचार के ग्रहण की क्षमता
- प्रबल
भावावेग
- समुचित
अलंकार योजना
- उत्कृष्ट
अभिव्यक्ति
- गारिममय
रचना विधान
प्रबल भावाबेग – भावों की तीव्रता और और उनका सम्प्रेषण उदात्त रचना के
आवश्यक है ।भावों की को लोंगिनुस ने उदात्त का निष्पादक तत्व माना है । महान विचार को
जितने प्रबल रूप में प्रस्तुत किया जायेगा रचना उतनी ही प्रभावी होगी , और पाठक को
सम्मोहित कर सकेगी । लोंगिनुस ने रचना के द्वारा सम्मोहन पर विशेष बल
दिया है ।
समुचित अलंकार
योजना – समुचित अलंकार से आशय रचना में
यथा-आवश्यक अलंकारों के प्रयोग से है । लोंगिनुस ने अपने सिद्धांत में अलंकारों सयास
प्रयोग के बजाय अनायास प्रयोग पर बल दिया है । अलंकार
विषय-वस्तु के सम्प्रेषण को सहज और प्रभावी बनाने के लिए किये जाने चाहिए ना की
अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए । समुचित अलंकारों के द्वारा ही रचना उदात्त बन सकेगी
।
उत्कृष्ट
अभिव्यक्ति – उदात्त के निष्पादक तत्वों में अभिव्यक्ति को विशेष स्थान
दिया गया है । अपने उदात्त सिद्धांत के द्वारा महान रचना के गुणों के
महत्व का प्रतिपादन करते हुए लोंगिनुस अभिव्यक्ति की मुखरता को महत्वपूर्ण अवयव के
रूप में स्वीकार किया है । उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के माध्यम से ही रचना सम्मोहित
कर सकने में सक्षम होगी ।
गारिममय रचना
विधान – लोंगिनुस ने रचना विधान पर
विचार करते हुए विशिष्ट पद-रचना या गरिमामय रचना विधान पर जोर दिया है । रचना विधान से आशय विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण और शिल्प । लोंगिनुस के
अनुसार महान विचारों के प्रस्तुति के निमित्त रचना विधान भी विशिष्ट होना चाहिए । उदात्त निश्चित
ही साहित्यशास्त्र के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है ।
लोंगिनुस ने उदात्त की प्रतिपादक तत्वों के साथ-साथ उन तत्वों पर पर भी अपने विचार व्यक्त किया है, जो उदात्त के बाधक हैं । लोंगिनुस की मान्यता है रचना ऐसी होनी चाहिए की वह सदा और सर्वथा सबको समान रूप से सम्मोहीत करने में समर्थ हो । अपने इसी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए उसने उन तत्वों का भी विश्लेषण जो उदात्त के निष्पादन में बाधक होते हैं ।भाव ,भाषा और शैली की उत्कृष्टता के साथ-साथ विचार की महत्ता पर विचार करने के बाद लोंगिनुस ने निम्लिखित तत्वों को उदात्त का अवरोधक माना है –
1.
शब्दाडम्बर
2.
भावाडम्बर
3.
बालेयता
शब्दाडम्बर- शब्दाडम्बर से आशय ऐसे शब्दों के प्रयोग से है जो उच्च
विचारों के प्रतिपादन में बाधक ना हों । कभी-कभी रचनाकार ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है कि
मूल भाव तिरोहित हो जाते हैं, और शब्दों का ऐसा लोक निर्मित्त हो जाता है कि
रचनाकार जो कुछ भी कहना चाहता है वह संप्रेषित नहीं हो पता । लोंगिनुस के
अनुसार शब्दों के चयन में लेखक को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए ,जिससे रचना में
निहित भावों से सम्मोहन किया जा सके ।
भावाडम्बर- भावाडम्बर से आशय भावों के अत्तिश्यता से है , कभी-कभी
लेखक भावों की महानता के लिए ऐसे भावलोक बना लेता है ,जो मूलतः कुछ होते ही नहीं हैं ।अपने ग्रन्थ पेरिहुप्सुस में लोंगिनुस ने भावों के इस तरह
के प्रयोग को उदात्त का बाधक तत्व माना है ।
बालेयता – बालेयता और बच्च्कानेपन को भी लोंगिनुस ने उदात्त के
निष्पादन में बाधक माना है । रचना की रचना दृष्टि और शिल्प विधान उच्च स्तर का
होने से ही रचना प्रभावी होगी । उदात्त का
प्रभाव निर्मित करने के लेखक को बालेयता से बचना चाहिए ।
पाश्चात्य काव्यशास्त्र में लोंगिनुस द्वारा प्रतिपादित उदात्त सिद्धांत को विशेष स्थान दिया गया है । शास्त्रवादी और स्वच्छन्दतावादी आलोचक दोनों लोंगिनुस को खुले मन से प्रथम आलोचक के रूप में स्वीकार करते हैं । Scot James ने लोंगिनुस को प्रथम स्वच्छन्दतावादी आलोचक माना है । लोंगिनुस के सिद्धांत को वग्मिता का प्रकर्ष के रूप में स्वीकार किया गया है ।और उनकी पुस्तक को असाधारण लेख के रूप में स्वीकार किया गया है ।
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