प्रयोगवादी कवि अज्ञेय

अज्ञेय और उनका रचना संसार ना जाने कितना नयापन अपने भीतर समेटे हुए है , भाव और शिल्प के स्तर पर जो कुछ नयापन आधुनिक हिन्दी साहित्य में देखने को मिलाता है उसका उत्स अज्ञेय के रचना लोक में हम देख सकते हैं . प्रयोगवाद के प्रवर्तक के रूप में अज्ञेय का महत्व सर्व विदित है ,लेकिन उनकी कविताओं में एक खास चेतना देखने को मिलाती है . रचना के विषय वस्तु से लेकर शिल्प और दर्शन सभी स्तरों पर अभिनव दृष्टि अज्ञेय को एक विशिष्ट कवि एवं शिल्पी के रूप में प्रतिष्ठित करती है . उनकी कविता कलगी बाजरे की की निम्नलिखित पंक्तियाँ उनके भावबोध की परिचायक हैं - अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका अब नहीं कहता, या शरद के भोर की नीहार – न्हायी कुंई, टटकी कली चम्पे की, वगैरह, तो नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है या कि मेरा प्यार मैला है। बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गये हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच। कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। उपरोक्त पंक्तियों में लोक में प्रचलित प्रतिमानों का प्रयोग करके अपनी लोक प्रखर चेतना को जीवन्त कि...