Posts

नदी के द्वीप

हिन्दी कथा साहित्य अपने आरम्भिक काल से ही व्यापक जनसरोकारों से जुड़ा रहा है। आधुनिक काल में गद्य लेखन का आरम्भ होने के साथ-साथ ही खड़ी बोली हिन्दी में कहानी एवं उपन्यास लिखा जाने लगा। परीक्षा गुरु से आरम्भ हुई हिन्दी उपन्यासों की माला को प्रेमचन्द्र ने न सिर्फ विस्तार प्रदान किया वरन आम जन की भाषा में रचना करके लोग के बीच में प्रतिष्ठित करने का भी कार्य किया। प्रेमचन्द व्यक्तित्व एवं कृतिव के सहायता के आचार्य के रूप में जाने जाते हैं। प्रेमचन्द्र ने जीवन जगत के व्यापक यथार्थ को अपनी रचनाओं में स्थान दिया। हिन्दी कथा साहित्य में जीवन जगत के बाह्य यथार्थ के अंकन मनो जगत के यथार्थ के अंकल की दृष्टि से जैनेन्द्र, अज्ञेय एवं इलाचन्द्र जोशी का योगदान विशिष्ट है। सिर्फ एक नई कथा दृष्टि दी, वदन भाषा साथ-साथ शब्दों की भांगला पर भी विशेष बल दिया। जैनेंद्र ने जिस भाषा परम्परा को आरम्भ किया, उसे अज्ञेय ने आगे बढ़ाने का कार्य किया। अज्ञेय हिन्दी साहित्य के विशिष्ट रचनाकार हैं, प्रयोगवाद के प्रवर्तन के माध्यम से जहाँ अज्ञेय ने कविता के क्षेत्र में नयी भाषा, भंगिमा और प्रयोगों पर बल दिया, वही हिन्दी

स्मृतियों में तुम

Image
 एक समय था जब मैं बहुत खुश रहता था और हंसता भी खूब था। मेरे आस-पास के लोगों मैं खूब हंसता था। फिर जिन्दगी में एक ऐसा दौर आया कि मैं से मैं कब हम में बदल गया मालूम ही नहीं हुआ। उस हमने ना जाने कब मुझे फिर से मैं पर छोड़ दिया। अब ना तो मैं हूँ और ना ही हम।       एक अर्सा बीत गया बात और मुलाकात हुए। बात का तो याद नहीं लेकिन हमारी आखिरी मुलाकात 15 मार्च 2020 को हुई थी। उस दिन मुझे यह कतई अन्दाज नहीं था कि यह हमारी आखिरी भेंट है। काश! फिर मिल पाते उनसे एक बार अजनबी की तरह.......।       अजनबी होना कितना अच्छा होता है। स्मृतियों में जीना सुखद लगता है। समय का पता ही नहीं चलता। कभी-कभी जिन्दगी में ऐसा मोड आता है कि व्यक्ति का पूरा व्यक्ति ही विलोम हो जाता है । हमेशा एकांत से दूर भागने वाला एकांत को अंगीकार कर लेता है, और एकांतवासी होकर उस आनंद को तलाश लेता है जो उसे दुनिया और दुनियादारी से कदापि नहीं मिल सकती। अक्सर अकेले में घेर लेतीं हैं  साथ बिताये क्षणों की स्मृतियाँ  वह तुम्हारा सुवर्ण रक्तिम चेहरा तुम्हारी मुख से आने वाली ध्वनि  का वह संगीत जो भी मन में  गुंजित होता रहता है।  वो खुशबू और

कवि मन जनी मन

Image
  आदिवासी समाज अपनी जमीन और जमीर को बचाने के लिए कृत संकल्प है । अपने संघर्ष एवं सृजन दोनों स्तरों पर यह समाज लड़ाई लड़ रहा है । वर्तमान समय में जो हमारी चिन्तायें मुखर हो रहीं हैं , उन्हीं को लेकर आदिवासी समाज वर्षों से संघर्षरत है । आदिवासियों ने अपने जंगल ,पहाड़ और जमीन को बचाये रखने के लिए ना सिर्फ संघर्ष किया वरन आज भी अपनी चिंताओं को लेकर बहुत ही सजग हैं । इस सजगता को आदिवासी रचनाकारों द्वारा रचित साहित्य में भी देखा जा सकता है । आदिवासी साहित्य को हम अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन स्तरों पर देख सकते हैं, यह आधार भाषा का ही है – “पहला अंग्रेजी भाषा में ,दूसरा हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओँ और तीसरा आदिवासी भाषाओँ में लिखे जा रहे हैं।”   इन सब में आदिवासी जन की संवेदना को बहुत ही मुखर रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है । आदिवासी कवियत्री वन्दना टेटे ने बहुत ही गंभीर तैयारी के साथ आदिवासी कवियत्रियों की कविताओं को संकलित कर एक काव्य संग्रह संपादित किया है । जिसका शीर्षक है “कवि जनी मन” ( आदिवासी स्त्री कविताएँ ) । इस संग्रह में ग्यारह कवियत्रियों की कविताओं में आज के वैश्विक समय की

उच्च-मध्य्वार्गीय जीवन की विसंगतिपूर्ण संवेदन का आख्यान : अंतिम अरण्य

मध्यवर्गीय जीवन के बिडम्बनाओ के अंकन की दृष्टि से निर्मल वर्मा का साहित्य विशिष्ट है। निर्मल वर्मा के अधिकांश साहित्य उच्च मध्यवर्गीय जीवन को आधार बनाकर लिखे गये हैं। आपके द्वारा रचित 'अन्तिम अरण्य' उपन्यास इस परम्परा का एक विशिष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास संवेदना एवं शिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे रेखांकित करते हुए गोपाल राय ने लिखा है कि "निर्मल वर्मा का अन्तिम अरण्य भी संवेदना की दृष्टि से उनके अन्य उपन्यासों से भिन्न नहीं है। इसका परिवेश भी बहादुरगंज नामक कोई पहाड़ी जगह है, जिसका नाम तक नक्शे में नहीं आता। 'नरेटर के अनुसार इस जगह का नाम नक्शे में नही है, वह एक खोया हुआ शहर है, जिसमें उसने अपने को खोजा था।      एक खोये हुए शहर में स्वयं को खोजना अपने आप में एक खोज है जिसे हम मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक स्तर पर देख एवं समझ सकते है। इस उपन्यास या यह कह लें कि इस खोये हुए शहर का मुख्य पात्र मिस्टर मेहरा है। मिस्टर मेहरा एक सम्भ्रान्त बृद्ध व्यक्ति हैं, इनके अतिरिक्त मिस्टर मेहरा की पत्नी और पुत्री को लिया, एक जर्मन औरत अन्ना, निरंजन बाबू और घरों की देख

पुनर्नवा का उपन्यास शिल्प : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

Image
       सामाजिक विकास और इतिहास बोध का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। हमारे समाज का विकास इतिहास के परिमार्जन के साथ होता रहता है। इस दृष्टि से जितना महत्व आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संसाधनों का है , उतना ही महत्व हमारे इतिहास का भी है। भारतीय इतिहास में बहुत-सी ऐसी ज्ञान राशि संचित है , जिन का उपयोग हम अपने वर्तमान जीवन को बेहतर बनाने में कर सकते हैं। इस दृष्टि से हमें हमारे इतिहास का ज्ञान होना चाहिए। अपने इतिहासबोध से ही हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं। इतिहासबोध और संचयन की दृष्टि से साहि इतिहासकारों ‌द्वारा लिखे गए इतिहास के साथ-साथ साहित्य की परम्परा का भी विशेष महत्व है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इतिहास दृष्टि गहन और सूक्ष्म है। इतिहास और वर्तमान की सापेक्षता   उनके रचना कर्म में सर्वत विद्यमान है। द्विवेदी जी के निबन्ध हो या उपन्यास सबका आधार लगभग इतिहास ही है। लेकिन उन्होंने इतिहास या पुराण के तथ्यों को उ‌नका में नहीं प्रस्तुत किया है , जिस सन्दर्भ में वे रहे हैं। द्विवेदी जी इतिहास दृष्टि और आलोचना दृष्टि में सर्वत्र उनकी भारतीय चेतना झलकती रहती है। उनका मानवतावादी नजरिया