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उसने एक बात पकड़ ली : सारिका साहू

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  उसने एक बात पकड़ ली और मैं भी कमज़ोर हो रो पड़ी उसने अपनी बाहें फैलाई  मुझे स्वतः ही रुलाई आई  उसका ढांढस बांधना  मुझे अंदर तक खंगाल गया वो मुझे अपनी कसम दे गया मेरे दुखों का साझेदार बन गया  मेरी सिसकती आहें भाप गया रो पड़ी मै भी, बच्चों की भांति  जो उसने स्नेह से मेरा दामन थाम लिया मेरी भीतरी वेदना बह गई मैं उससे अपनी पीढ़ा कह गई आज मैने किस्मत को खूब कोसा क्यों नहीं मिला तुम जैसा? उसने पूछा मेरे जैसे क्यों? मैं क्यों नहीं? मैं चुप हो गई मैं अपने भीतर रह गई मैं उसकी वेदना समझ गई यहीं हमारी कहानी ख़त्म हुई।।।।।

उत्सव के बाद की भोर: सारिका साहू

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उत्सव के बाद की भोर कल जितनी चहल पहल थी आज उतनी ही खामोशी है  त्यौहार क्या दिन विशेष ही रहते  उसके बाद फिर वही सब शेष रहते           उत्साह था उमंग थी मन मलंग था          जाने अनजाने  वो सब संग था         वो गहरी काली अमावस्या वाली रात थी         आज  चुप्पी वाली सहर  में वो बात न थी रंगीन आतिशबाजी से अम्बर भी नारंगी  हो गया था विभिन्न रिवाज़ो से वसुंधरा भी  हरी भरी थी दीपों के उजालों से सड़के सजाई गई थी और आज सब वादियां मौन हो गई थी            मंगल मंगल करते आरती संजोए गई थी            मिठाइयों की मीठी महक से रसोई बनाई गई थी             आज जैसे मन में फूलझड़ी स्वयं  बुझा दी गई थी            और अपने उर में सब समेटकर दीवाली पूरी हो गई थी

मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी :सारिका साहू

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 मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी क्या तुम हर बार मुझे पठन करोगे? तुम्हारे विलक्षण रूप को अपनी  रचना में गढ़ूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय रूप को जान पाओगे? तुम्हारे संग का वह अलौकिक उपहार उजागर करूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय उपहार का स्वरूप समझ जाओगे? तुम्हारे साथ सुसज्जित स्वपन सलोने लिखूंगी  क्या हर बार वही संगी - साथी बने रहोगे। तुम्हारे  सुंदर चरित्र को कवितामय लिखूंगी। क्या तुम वो सुंदर चरित्र चरितार्थ कर पाओगे? मैं हर बार अपनी कविता का विषय तुम्हें ही लिखूंगी। क्या तुम हर बार मेरे चयन को स्वीकार कर पाओगे? हमारे संवाद को कविता में संजोकर रखूंगी  क्या बदलते वक्त के साथ तुम भी स्मरण रख पाओगे? मैं हर दिन तुम्हें अपनी रचना  में प्रश्न करूंगी। क्या तुम सब प्रश्नों के हल बन जाओगे? जीवन के उतार चढ़ाव में ,मैं कईं उदासीन कविता लिखूंगी। क्या तुम मेरे भीतरी वेदनाओं को सहजता से  समझ पाओगे। मैं हर दिन तुम्हारे नाम पर एक कविता प्रेषित करूंगी। क्या तुम अपने हिय में  उन रचनाओं को उतार पाओगे? मैं शायद हर बार उतनी सुंदर रचना न कर सकूं  क्या फ़िर भी मेरी कविताओं को श्रवण कर पाओगे  कईं बार विभिन्न सा

सौन्दर्य और जीवन

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 सौन्दर्य में बासी को ताजा करने की अद्भूत क्षमता होती है। जीवन को उत्साह और उल्लास से भरने में उत्सवों और सौन्दर्य की भूमिका बहुत ही विशिष्ट होती है। इसी कारण भारतीय परम्परा में हर दिवस किसी न किसी त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। प्रथमा तिथि से लेकर अमावस्या एवं पूर्णिमा तक उत्सव की धूम बनी रहती है। सुहागन महिलाएँ विशेष रुप से व्रतों और उत्सवों का पालन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ करतीं हैं। सोलह श्रृंगार करके अपने आस-पास के समग्र परिवेश को खुशनुमा कर देतीं हैं। भारतीय परम्परा ऋंगार और सौन्दर्य का विशेष महत्व है।  हमारे यहाँ मनाये जाने उत्सवों का मूल उद्देश्य ही यही है कि जीवन की एकरसता को दूर कर नवीन ऊर्जा और ऊष्मा का संचार किया जाये। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में जीवन नित्य नवीन बनाने जो कला है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।  आज के समय में जिस तरह से लोगों के बीच निराशा और तनाव बढ रहा है ऐसे समय में उस भाव बोध की महती आवश्यकता है जो हमारी परम्परा में अनादि काल से चली आ रही है। इसी भाव बोध पूरित कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है - तुम एक पूरी कायनात हो  तन से ही नहीं, मन से भी  तू बेहद खुबसूर

संवेदना एवं भाषा की नव्यता के कवि : नरेश सक्सेना

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  संवेदनाओं से रिक्त होते समय में कविता का दायित्व अत्यन्त गुरुत्तर होता जा रहा है । आज के समय में जब मानवता और संवेदना के समक्ष गहराते संकट के बीच कविताओं के माध्यम से समाज को में संवेदना संरक्षित करने की दिशा में नरेश सक्सेना का महत्वपूर्ण स्थान है । नरेश सक्सेना की कविताओं में भाषा, संवेदना और तकनीकी का समन्वय तो है ही साथ ही साथ भावी पीढ़ी के लिए सन्देश भी है । विज्ञान और तकनीकी की पढाई और पेशे से अभियन्ता होने कारण आपकी कविताओं में एक नए किस्म की भाषाई चेतना देखने को मिलती है। आपकी की ख्याति खामोश कलाकार एवं रचनाकार के रूप में है । कविता के अलावा उनकी रचनात्मक सक्रियता के अन्य क्षेत्रों में भी है । आपने फिल्म, टेलीविज़न और रंगमंच के लिए लेखन किया है। नरेश सक्सेना जी ने भाव और भाषा के प्राथमिक स्तर से लेकर शीर्ष तक की संभावना पर विचार करते हुए कविता की रचना की है उनकी यही खासियत उन्हें समकालीन कवियों अलग पहचान दिलाती । आपकी ‘शिशु’ शीर्षक कविता में जीवन के आरम्भिक संगीत का अद्भुत अंकन देखने को मिलता है – शिशु लोरी के शब्द नहीं संगीत समझता है , बाद में सीखेगा भाषा अभी व

करवा चौथ

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*करवा चौथ व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है. करवाचौथ शब्द दो शब्दों* करवा चौथ का इतिहास बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है. माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी. ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की. ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी. ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया. ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया. उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. माना ज

नदी के द्वीप

हिन्दी कथा साहित्य अपने आरम्भिक काल से ही व्यापक जनसरोकारों से जुड़ा रहा है। आधुनिक काल में गद्य लेखन का आरम्भ होने के साथ-साथ ही खड़ी बोली हिन्दी में कहानी एवं उपन्यास लिखा जाने लगा। परीक्षा गुरु से आरम्भ हुई हिन्दी उपन्यासों की माला को प्रेमचन्द्र ने न सिर्फ विस्तार प्रदान किया वरन आम जन की भाषा में रचना करके लोग के बीच में प्रतिष्ठित करने का भी कार्य किया। प्रेमचन्द व्यक्तित्व एवं कृतिव के सहायता के आचार्य के रूप में जाने जाते हैं। प्रेमचन्द्र ने जीवन जगत के व्यापक यथार्थ को अपनी रचनाओं में स्थान दिया। हिन्दी कथा साहित्य में जीवन जगत के बाह्य यथार्थ के अंकन मनो जगत के यथार्थ के अंकल की दृष्टि से जैनेन्द्र, अज्ञेय एवं इलाचन्द्र जोशी का योगदान विशिष्ट है। सिर्फ एक नई कथा दृष्टि दी, वदन भाषा साथ-साथ शब्दों की भांगला पर भी विशेष बल दिया। जैनेंद्र ने जिस भाषा परम्परा को आरम्भ किया, उसे अज्ञेय ने आगे बढ़ाने का कार्य किया। अज्ञेय हिन्दी साहित्य के विशिष्ट रचनाकार हैं, प्रयोगवाद के प्रवर्तन के माध्यम से जहाँ अज्ञेय ने कविता के क्षेत्र में नयी भाषा, भंगिमा और प्रयोगों पर बल दिया, वही हिन्दी